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मुझे तो डॉ साहब भीष्म जैसे लगते हैं और सोनिया गाँधी ?

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the accidental prime minister credit you tube  मुझे तो डॉ साहब भीष्म जैसे लगते हैं यह एक नई फिल्म का संवाद है जिसे लेकर कांग्रेस परेशान और भाजपा खुश है। मेरा सवाल केवल इतना है कि एक निर्देशक को कैसा लगता होगा जब उसकी फिल्म दर्शकों की बजाय राजनीतिक की शरण में चली जाए।  बड़ा ही दिलचस्प समय है।  एक फीचर फिल्म के ट्रेलर को एक राजनीतिक दल ने अपने ऑफिशिअल ट्विटर हैंडल पर शेयर किया है कि कैसे एक  राजनीतिक परिवार ने  दस साल तक प्रधानमंत्री की कुर्सी को बंधक बनाए रखा ताकि उसके  उत्तराधिकारी की ताजपोशी हो सके ।  दल ने अपने बयान  के साथ फिल्म का ट्रेलर लिंक भी साझा  किया है। ये राज-प्रतिनिधि थे पूर्व प्रधामंत्री  डॉ मनमोहन सिंह और उत्तराधिकारी राहुल गाँधी। फिल्म का नाम है द  एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर,निर्देशक विजय आर गुट्टे हैं। हम सब जानते हैं मनमोहन  सिंह की भूमिका में अनुपम खेर हैं और फिल्म में अच्छी खासी भूमिका सोनिया गाँधी की भी है जिसे जर्मन कलाकार सुज़ैन बर्नर्ट  ने निभाया है।   राजनीति पर पहले भी कई फ़िल्में बन चुकी हैं लेकिन जिस फिल्म का नाम तुरंत  ध्यान आता है वह है आंधी

जनरल आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी

वाकई हैरानी और दुःख है सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत के बयान पर कि फिलहाल वे भारतीय सेना में महिलाओं को लड़ाई में आगे रखने के स्थिति में नहीं है। वे कहते हैं महिलाएं कहेंगी वे हमें देख रहें हैं और फिर हमें उनके लिए आवरण का इंतज़ाम करना पड़ेगा। माफी चाहेंगे जनरल लेकिन आप उन झाँकने वालों का इंतज़ाम कीजिये , महिलाओं के एतराज़ का नहीं। हो सकता है कुछ व्यावहारिक  परेशानियों हो लड़ाई में लेकिन आप वे शख़्स नहीं होने चाहिए जो ये सब बातें बताएं,आपको यह बताना चाहिए की महिलाएं कैसे  इन चुनौतियों से मुकाबला करें । आपको नए और साहसी तरीकों पर बात करनी चाहिए। आप कैसे पुराने और बने -बनाए ढर्रों पर चलने की बात कर सकते हैं। कौन साठ  साल पहले यह यकीन कर सकता था कि बॉक्सर मैरी कोम ना केवल मर्दों की दुनिया में प्रचलित खेल को अपनाएंगी बल्कि वर्ल्ड चैंपियन भी होंगी। तीन बच्चों की माँ ने साबित किया है कि वह परिवार और प्रोफेशन दोनों मोर्चे बखूबी संभाल सकती हैं। बछिन्द्री पाल का  एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचना भी वैसा ही साहस है। कल्पना चावला का अंतरिक्ष में रहना भी उन लोगों को मुँह तोड़ जवाब है जो स्त्री को केवल बंधी-बंधा

my life is not your porn

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दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में महिलाओं का सबसे बड़ा प्रदर्शन photo getty image   अगर कोई सवाल करे कि तेज़ रफ़्तार तकनीक ने  क्या तकलीफ पहुंचाई है तो क्या जवाब होंगे आपके ? सोच को थोड़ा और तकलीफ़ देते हुए स्त्री के सन्दर्भ में पूछा जाए तब ? वैसे यह इतना भयावह है कि आम कल्पना में  जवाब बनकर आ भी नहीं सकता। इस तकनीक के फरेब और जालसाजी ने स्त्री की निजी दुनिया का हरण  कर लिया है। वह चैजिंग रूम ,सार्वजनिक शौचालयों में  जाने से बचने लगी है। स्विमिंग पूल्स और होटलों के कमरे उसे और भी असुरक्षित लगते हैं। कहां, किधर, किस जासूसी कैमरा ने उसे फोकस कर रखा हो,मालूम नहीं लेकिन इस मालूमात के वजह से कि ऐसा हो रहा है ,वह हमेशा डरी हुई रहती है।  एक लड़की के जीवन को इन जासूसी कैमरा  के डर   ने ऑक्टोपस की भुजाओं सा जकड़ रखा है। ये कैमरा पेन ,जूतों की नोंक, सिगरेट के पैकेट ,पानी की बोतल ,आईने ,चश्मे, टॉयलेट पेपर किसी भी जगह हो सकते हैं। इस तेज तर्रार तकनीक के युग में अपराधी को बस इतना ही करना है  कि वह तस्वीर उतारे और इंटरनेट की दुनिया में उसे प्रसारित कर दे या फिर किसी गिरोह को बेच दे जो इस टुकड़े का

डर से आगे प्रेम है

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दुनिया में केवल दो ही तरह के भाव हैं पहला डर और दूसरा प्रेम। डर आपको दर्दनाक, नफ़रत , विषैले और जीवन को तबाह करनेवाले मोड़ पर छोड़कर आ सकता है जबकि प्रेम ख़ुशी, ख़ूबसूरती और नए क्षितिज की और ले जाने वाली उड़ान का रास्ता दिखाता है। कुछ नहीं यह नन्हीं  तितली यूं ही दरवाज़े पर आ बैठी मुझे अनायास प्रेम और ख़ुशी देने के लिए। ऐसा अक्सर होता है जब मैं अपने ही ख़यालो में गुम होकर उदास या दुखी होती हूँ ऐसे मंज़र मुझे भयमुक्त कर देते हैं। बेशक ये मुझ पर असर करते हैं लेकिन बालकनी में इठलाता कबुतरों का जोड़ा शाम को निश्चित समय पर क़रीब से गुजरने वाले तोतों का झुंड और मुंडेर पर पैनी निगाह लिए बैठा शिकरा। सच कहूँ तो ये मेरा इंतज़ार हैं। कोई कह सकता है कि वक़्त त से पहले बुढ़ाना इसी को कहते हैं लेकिन मुझे लगता है कि जीवन से निग़ाह मिल रही है फिर मेरी। फिर प्रेम हो रहा है। डर छूट रहा है। यही सब तो हुआ था जब तुम मिले थे। सच डर से आगे प्रेम है।