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जुलाई, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

टंच स्त्रियाँ और चंट राजनेता

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आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल  सांसद मीनाक्षी नटराजन  अगर जो निलंबन का आधार दुर्गा शक्ति नागपाल की गिराई मस्जिद की दीवार है, जिसके लिए  कोई अनुमति नहीं ली गयी थी तो नेताओं की ऐसी सोच विकास की कौनसी सीढ़ी चढ़ेगी नहीं  कहा जा सकता । यह तो जबरदस्ती उन मुद्दों को हवा देना है जिसकी ओर देश का ध्यान ही नहीं था.   माफिया से राजनेताओं की साँठ-गाँठ  है  जो  इस व्यवस्था को और   पंगू बना रही है.एक पढ़े-लिखे युवा मुख्य मंत्री ने यह कार्यवाही कर निराश किया है तो  दूसरे   पढ़े-लिखे मुख्य मंत्री ने मंदसौर की सांसद मीनाक्षी नटराजन को सौ  टंच माल कहकर साफ़ ज़ाहिर कर दिया है कि  वे स्त्री के लिए चीज़ और माल से बेहतर कोई  उपाधि नहीं खोज सकते एक सियासत में अच्छे मुकाम पर हैं, तो दूसरी ब्यू रोक्रेसी में अच्छे ओहदे पर। करिअर में खुद को ऐ सी जगह देखने की ख्वाहिश में कई युवतियां दिन-रात मेहनत कर रही हैं, लेकिन मेहनत की दुनिया से निकलने के बाद होता क्या है? मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रवक्ता महिला सांसद को ' सौ टंच माल' कह देते हैं और दूसरी को उत्तर  प्रदेश के य

बोतल में बार, बार में डांस

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रोजी सबका हक है  फिर चाहे वह नाचकर ही क्यों न कमाई जा रही हो ….    बुरा लगता  है  तो इस अनपढ़,बेबस,लाचार आबादी को  काम दीजिये उसके बाद इस पेशे को  जी भरकर कोसिये … मेरी   राय में तो यदि पुरुषों  के नाच में महिलाओं को आनंद आता है तो उन पुरुषों को भी   पूरा हक़ है कि वे अपने पेशे को जारी रखें बार डांसर्स पर कवर फोटो के लिए जब तलाश शुरू हुई तो किसी भी फोटो पर निगाह ठहर न सकी। इन तस्वीरों में मौजूद बेबसी, लाचारी और दोहराव की मजबूरी को, मोटे मेकअप की परत भी छिपा नहीं पा रही थी। तस्वीरों के किसी भी हिस्से में सुकून नहीं था। ना बार डांसर्स के चेहरों पर और न उन निगाहों में जो उन्हें  देखने वहां आई थीं। नतीजतन, कवर पर ऐ सी किसी भी तस्वीर का फैसला तर्क हो गया । जाहिर है जिस काम के छायाचित्र ही आप में ऊर्जा का संचार नहीं करते, वह पेशा कैसे जारी रखा जा सकता है? सर्वोच्च न्यायालय को क्योंकर जरूरी लगा कि डांस बारों को बंद करने का महाराष्ट्र सरकार का फैसला गैर-कानूनी था और महाराष्ट्र सरकार को ऐ सा भरोसा क्यों था जो वह मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गई?  दरअसल

इश्क़ करूँ या करूँ इबादत इक्कोइ गल है

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  मिल्खा सिंह ने चोरी-चकारी के जीवन को तज कर दौड़ जी तने के लिए जिस मेहनत  से  इश्क़  किया वही जज़्बा   और जूनून राकेश ओम  प्रकाश मे हरा की टीम ने भी रचा  है  " जब से देश आजाद हुआ है, तब से केवल पांच एथलीट ओलंपिक्स   के फाइनल मुकाबलों में पहुंचे हैं लेकिन मेडल कोई नहीं जीत पाया। मैं, गुरुजीत सिंह रंधावा, पीटी उषा, राम सिंह और अंजू बॉबी जॉर्ज। मैं जब तक जिंदा हूं मेरी आंखों में एक ही सपना रहेगा कि भारत का तिरंगा वहां लहराता देखूं" - मिल्खा सिंह     अठ हत्तर  साल के मिल्खा सिंह यानी भारत के वो एथलीट, जिन्होंने जान की बाजी लगाकर पसीना बहाया। कई बार तो इतना कि मुंह से खून बनकर निकला। सारी दुनिया को लगता था कि चार सौ मीटर का गोल्ड मेडल तो मिल्खा ही जीतेंगे , क्योंकि  उन्होंने ८० में से ७७ दौड़ें अपने नाम की थीं, लेकिन सेकंड के सौंवे हिस्से से मिल्खा चूक गए। ओलंपिक का पदक उनके हाथ से निकल गया और एक अफसोस उनके भीतर हमेशा के लिए पैबस्त हो गया। मिल्खा के पास जब निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा आए, तो उनके गोल्फर बेटे जीव मिल्खा सिंह ने कहा कि पापा अगर आप पर कोई फिल्म बनाए, तो य

xxx और 00 !! आप नहीं समझेंगे

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चौदह जुलाई को किया जानेवाला तार भारत का अंतिम तार होगा , इसी के साथ १ ६ ० साल पुरानी  यह तकनीक हमेशा के लिए अलविदा कह देगी  य ह समय तार को शोक संदेश भेजने का है। आज  के बाद तार इतिहास बनकर रह जाएगा। वह तार जिसका अतीत वाकई सुनहरे लफ्जों में लिखा है। इतना सुनहरा कि इसके बारे में जानते-समझते हुए आपका दिमाग रोशन होता हुआ मालूम होता है। संदेश भेजने की भूख इंसान में हमेशा से रही है। इमारतों से निकलते धुंए  , दूत, नगाडे़, कबूतर, बोतल में रखी चिट्ठी से भी जब इंसान का मन शांत नहीं हुआ, तो वह सुनियोजित डाक की ओर मुड़ा। खत वक़्त  लेते थे और आवाजाही की बेहतर व्यवस्था ही इन्हें सुगम बनाती थी, लेकिन तार विद्युत तरंगों से उपजी ध्वनि को पढऩे की तकनीक थी। गर्र गर्र..गट्ट गट्ट.. की आवाज से ट्रेंड टेलीग्राफिस्ट मैसेज को नोट करता था। अगर जो संदेश ००० श्रेणी का है, तो वह पहली प्राथमिकता के साथ भेजा जाता। संदेश आते ही तुरंत 'बॉय पियन' को आवाज दी जाती थी। वह दौड़ता हुआ आता था । उसकी उम्र 16 से 20 तक की होती थी ताकि स्फूर्ति से दौड़ सके, संदेश रिकॉर्ड में दर्ज होता और

सलाम तो सीधे खुदा को जाता है

क्यों करता है वह सलाम और क्यों ऊंचा हो जाता है मेरा कद रोज़ मेरे आस-पास ऐसा ही होता फिर एक दिन अचानक मेरे ही पाले से आती है एक आवाज़ सलाम हुज़ूर!! सलाम बजानेवाला चौंक उठता है ये मेरी आवाज़ में कौन बोला मेरा सुर इस कंठ में कैसे गूंजा  .....तभी से मैं और वह हो लेते हैं इस आवाज़ के साथ जो कहता है मैं कहूं, तुम कहो क्या फर्क पड़ता है न कहने वाला छोटा न लेने वाला बड़ा सलाम तो सीधे खुदा को जाता है .

तीसरा तेरह साल बाद

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शाहरुख खान और गौरी खान के घर तीसरी संतान अब्राहम का आगमन हुआ है। यह उनका सरोगेट बेबी है यानी जैविक रूप से वे दोनों ही बच्चे के माता-पिता हैं, लेकिन उसे जन्म देने वाली यानी नौ माह कोख में रखने वाली मां कोई और है। इस मामले में सरोगेट मां की भूमिका गौरी की भाभी नमिता छिब्बर ने अदा की है। बच्चे का जन्म समय से दो माह पहले ही हो गया और उसे मुंबई के प्रमुख अस्पताल की इंटेसिव केअर युनिट में रखना पड़ा। पूरी देखरेख डॉ. इंदिरा हिंदुजा की रही, जिन्होंने १९८६ में   देश के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म करवाया था। शाहरुख-गौरी के दो बच्चे पहले ही हैं। बेटा आर्यन पंद्रह साल का है और बेटी सुहाना तेरह साल की। शाहरुख पर इलजाम है कि उन्होंने अपने तीसरे बेटे का लिंग परीक्षण पहले ही करा लिया था। अभिनेता शाहरुख से जब पत्रकार इस मसले पर बात करना चाहते हैं, तो वे चुप्पी साध लेते हैं और उन्हें अब्राहम की बजाय अपनी नई फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस के बारे में बात करना ज्यादा सुहाता है। बहरहाल, शाहरुख खान के निजी मसलों पर न्यायाधीश बनने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन सवाल उठता है कि ऐसे फैसले आखिर उनके चाहने