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जुलाई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बिना विचारे लक्ष्मण

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फिजा में भीनी महक है। त्योहारों की मिठास और जीवन का उल्लास घुला हुआ है। मनभावन सावन में तरुणी का सिंजारा आ चुका  है। लहरिये का रंग खूब सुन्दर है कावडि़यों के जयकारों की भी गूंज   है। ईद की सिवइयों का जायका भी होठों पर है, जो पूरे तीस दिन के रोजे और इबादत के बाद नसीब हुआ है। बारिश की बूंदों ने हर शै को बरकत भर दी है। ये बूंदे हैं ही इतनी पवित्र कि रूखे मन और सूखे ठूंठ में भी प्राण फूंकने का माद्दा रखती है। एेसे माहौल में कोई बेतुकी बात नहीं होनी चाहिए खासकर इन मीडिया चैनलों की तरह तो बिल्कुल नहीं जो केवल चीखने-चिल्लाने को बहस का नाम दे बैठे हैं। बहस में हर पक्ष को सुना जाता है । धैर्य और समन्वय का परिचय देते हुए सुंदर नतीजे पर पहुंचा जा सकता है, लेकिन शायद सुंदर नतीजों को टीआरपी नहीं मिलती तभी जी टीवी पर एक वक्ता दूसरे को   'टुच्चा' संबोधित कर रहे थे। वे कह रहे थे आप टुच्चे हैं। चले जाइए इस देश से। ये एंकर महाशय जो अर्णव गोस्वामी की हिंदी नकल हैं, उन्होंने पहले तो पूरा वार्तालाप हो जाने दिया फिर कह दिया कि चैनल इस तरह की शब्दावली से इत्तेफाक नहीं रखता।            जिन दो मुद्

चीर हरने पर हुई थी महाभारत

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द्वापर युग में भी कृष्णा (द्रौपदी) का सम्मान दांव पर लगा था। कौरवों ने सरे दरबार कृष्णा का चीरहरण किया, लेकिन वहां उसे बचाने के लिए द्रौपदी के आराध्य,सखा कृष्ण आ गए। दु:शासन के हाथ जवाब दे गए, लेकिन कृष्ण के हाथ से चीर कम नहीं हुआ। यह कलियुग है। यहां कोई कृष्ण नहीं आया। दु:शासन तो कामयाब हुआ ही दरबारियों ने भी तन पर कपड़ा रखना जरूरी नहीं समझा ।  लखनऊ की मोहनलालगंज तहसील में सत्रह जुलाई को घटी यह घटना दिल्ली की निर्भया से भी जघन्य और भयावह मालूम होती है। सोलह दिसंबर 2012  को छह दरिंदे जब निर्भया को दुष्कर्म के बाद सर्दी की रात में फेंक गए थे तब उसकी सांस बाकी थी। उसके साथ उसका मित्र था, जो उन दरिंदों को पहचानता था, निर्भया के नग्न शरीर को ढंक दिया गया था और किसी ने उसकी निर्वस्त्र तस्वीर चारों ओर नहीं फैलाई थी। लखनऊ की बत्तीस  वर्षीय स्वाभिमानी, गर्विता (कृष्णा) अपने साथ हुए इस भयावह हादसे को बताने के लिए जीवित नहीं है । उसकी तस्वीरों को वाट्स एप पर वायरल की तरह फैलाने के अपराध में उत्तरप्रदेश सरकार ने छह पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया। इसलिए नहीं कि उन्होंने जांच में कोई कोत

माहौल में ठंडक बातों में उमस

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shobha dey and her daughter...          image mahesh acharya jaipur women... image  rakesh joshi जयपुर में शनिवार की वह दोपहर उमस से भरी हुई थी लेकिन एक सुंदर होटल का एक सुंदर हिस्सा महिला अतिथियों से गुलजार था। माहौल में कोई भारीपन नहीं था, बल्कि इंतजार था लेखिका शोभा डे का। इंतजार खत्म हुआ, शोभा डे अपनी बेटी के साथ दाखिल हुईं। इस स्वागत के बारे में शोभा ने बाद में खुद ही कहा कि मैं दुनियाभर में घूमी हूं, लेकिन एेसा शानदार स्वागत मेरा कहींं नहीं हुआ। वैसे यदि पता न हो कि यहां शोभा डे एक व्याख्यान देने आई हैं, जिसका विषय बैंड-बाजा और कन्फ्यूजन है, तो यही लगता है कि आप किसी बॉलीवुड की अवॉर्ड सैरेमनी नाइट में बैठे हैं  और सामने से अभी कोई साड़ी के फॉल सा दिल मैच किया रे ... गाते हुए धमक जाएगा। बहरहाल, सुरभि माहेश्वरी और फिक्की फ्लो की जयपुर चैप्टर की अध्यक्ष अपरा कुच्छल ने प्रभावी एंकरिंग के साथ शोभा डे को मौजूद अतिथियों से रू-ब-रू कराया। दरअसल बैंड-बाजा-कन्फ्यूजन विषय से ही स्पष्ट है कि भारत सदी के नहीं, बल्कि सदियों के भीषण बदलाव से गुजर रहा है। शादी की पारंपरिक मान्यताएं नए

तनु शर्मा के हक़ में

बाईस जून 2014 से पहले तनु शर्मा इंडिया टीवी में एंकर थीं। इस दिन उन्होंने चैनल के दफ्तर के आगे खुदकुशी करने की कोशिश की। वे चूहे मारने की दवा को पी गईं थी लेकिन तुरंत चिकित्सा मिल जाने से बचा ली गईं। तनु ने एेसा करने से पहले चैनल के दो वरिष्ठों (जिनमें एक महिला हैं) के बारे में अपने फेसबुक स्टेटस पर लिखा कि बहुत मजबूत हूं मैं, सारी जिंदगी मेहनत की, स्ट्रगल किया, हर परेशानी से पार पाकर यहां तक पहुंची। चैनल ने मेरे साथ जो किया वो भयानक सपने से कम नहीं। मैं आपको कभी माफ नहीं करूंगी। अफसोस रहेगा मरने के बाद भी कि मैंने यह चैनल जॉइन किया और एेसे लोगों के साथ काम किया, जो विश्वासघात करते हैं, षड्यंत्र करते हैं। मैं बहादुर हो होकर थक चुकी हूं। बाय। तनु का कहना है कि सीनियर एडिटर्स  हमेशा जलील करते रहे। उनके कपडे़, हेअर स्टाइल पर तो टिप्पणियाँ होती ही थी, यह भी कहा जाता कि  आप बिल्कुल भी ग्लैमरस नहीं। आपकी आवाज भी ठीक नहीं, जबकि मैं कई कार्यक्रमों में अपनी आवाज दे रही थी। वे कहती हैं, अगर आवाज इतनी ही खराब थी तो मुझे वॉइस ओवर के लिए €यों लिया जाता? तनु का आरोप है कि उससे उ्मीद की जाती थी कि व