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महाराष्ट्र, पवार के नए वार से कौन होगा पॉवरफुल

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महाराष्ट्र की सियासत की तुलना अगर शतरंज के खेल से की जाए तो एनसीपी के नेता शरद पवार उस ऊंट की तरह हैं जिनकी चाल  टेढ़ी  ही होगी यह तो  समझ आता है लेकिन किस करवट होगी यह कभी समझ नहीं आता। उनकी अपनी पार्टी नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) टूटकर शिवसेना की तरह ही दो फाड़ हो जाएगी या महाविकास अघाड़ी का अभिन्न हिस्सा बनी रहेगी यह प्रश्न अब सियासत के हर गलियारे में पूछा जा रहा है। अफवाह गर्म है कि  एनसीपी  छिन्न -भिन्न होकर भाजपा को टेका लगा देगी और इसी अफ़वाह के बीच एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना के प्रवक्ता ने कह दिया है कि अगर  एनसीपी से टूटकर अजित पवार भाजपा की झोली में गिर जाते हैं तो वे छिटक जाएंगे। चुनाव भले ही कर्नाटक में होने वाले हों लेकिन चुनाव के बाद भी स्थिरता की कोई गारंटी नहीं इसकी पूरी गारंटी इन दिनों महाराष्ट्र की सियासत दे रही है। शरद पवार ने पिछले हफ़्ते अडानी के मामले में जेपीसी के गठन की मांग को गैर ज़रूरी बताकर विपक्षी एकता की हवा तो निकाली ही थी गुरूवार को मुंबई में दो घंटे गौतम अडानी के साथ बंद कमरे में  एक बैठक भी कर ली। दो टूक शब्दों में कहा जाए तो  शरद पवार फिलहाल उस  कंपनी

सरगना जिस ज़मीन दफन वहां उग आई है ज़हरीली बेल

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एक समय था जब विचाराधीन कैदियों की आत्महत्या या सामान्य मौत पर भी सरकारें सवालों से घिर जाती थीं, बचाव की मुद्रा में आ जाती थीं,लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब की सरकारें तो ऐसा होने  के बाद पुलिस की पीठ थपथपाती  हुई नज़र आती है। बीते सप्ताह प्रयागराज में सरेआम दो विचाराधीन कैदियों की हत्या के बावजूद उत्तर प्रदेश  सरकार के चेहरे पर शिकन तो दूर उल्टे  सीना ठोकने का भाव था। कम अज़ कम उनके मंत्रियों के बयान तो यही ज़ाहिर करते हैं। वे प्राकृतिक न्याय की बात कहते हैं। ऐसे में  न्यायालयों की दरकार ही क्या रह जाती है, पुलिस राज जिसे चाहे उसे सज़ा  दे दे और  सरकार जब चाहें तब शाबाशी । अपनी-अपनी सरकारें और अपने-अपने दुश्मन। दरअसल व्यवस्था में  यकीन का पतन कोई नया नहीं है।  प्रयागराज के करीब अयोध्या में ही सहस्त्राब्दियों से जनमानस को प्रेरित करने वाले राजा राम का राम राज्य भी रहा हैं। आखिर अयोध्या के मर्यादा पुरोषत्तम राजा राम उत्तरप्रदेश के योगी राज को किस तरह देख रहे होंगे ? नारा तो हत्यारों ने भी भगवान राम के नाम का ही लगाया। रावण को राम के बजाय कोई और मार देता तब भी क्या रामायण बुराई पर अच्छाई की विजय

राजस्थान में आखिर किसके हाथ से फिसल रही रेत

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राजस्थान की धरती अब तपने लगी है। इस मरुप्रदेश को ‘धरती धोरा री’ भी कहा जाता है यानी रेत के टीलों की धरती। रेगिस्तान मे दूर तक फैली गर्म रेत को जब मुट्ठियां भींच कर थामने की कोशिश की जाती है तो वह और भी तेज़ी से फिसलने लगती हैं। सचिन पायलट के हाथ से भी यह रेत यूं ही फिसल रही है। एक नौजवान और सक्रिय नेता के हाथ से रेत का फिसलना कोई नई बात नहीं होती है लेकिन हालिया फिसलन से  उनकी छवि ऐसी बनी है जैसे उनका पंजा किसी और के हाथों में खेल रहा हो। पायलट ने जो तीर अभी चलाया है वह अशोक गहलोत सरकार की दिशा में तो तना हुआ है ही, पूर्व मुखमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को भी निशाने पर लेता हुआ दिखता है। पायलट कह रहे हैं कि हमें चुनाव में जाने से पहले वह वादा पूरा करना चाहिए जिसमें हमने वसुंधरा सरकार पर भ्रष्टाचार के इल्ज़ाम लगाए थे और जांच की बात की थी। ध्यान देने वाली बात है पायलट वसुंधरा का नाम ले रहे हैं ,भाजपा सरकार का नहीं। इस बढ़िया चाल के बाद प्रधानमंत्री  वंदे भारत ट्रेन के साथ–साथ अशोक गहलोत को भी हरी झंडी दिखा देते हैं जिसकी बराबरी फिर अशोक गहलोत ने एक ट्वीट से की । दरअसल जयपुर से दिल्ली की ओ

सुनवाई से ठीक पहले बहाल हो गए सांसद

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सप्ताह ख़त्म होते -होते देश की सियासत फिर वहीं आ गई है जहाँ से चली थी। राहुल गांधी का विदेशी धरती पर बयान , सत्तापक्ष का संसद को ठप (विपक्ष तो करता ही है) करना फिर बिना बहस के बजट बिल पास कर देना ,राहुल गांधी को  बिजली की गति से लोकसभा से निष्कासित करना , कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की तारीख़ और फिर कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह का जर्मनी के बयान पर उस देश को धन्यवाद कहना। भारतीय जनता पार्टी के हाथ फिर गोला बारूद का आना और संसद का अगले तीन अप्रैल तक के लिए स्थगित हो जाना। यही हासिल है पिछले एक महीने का भी और संसदीय प्रणाली से चल रही सियासत का। इस हंगामे में उस मतदाता की हैसियत ही क्या रह जाती है जिसमें कहा जाता है कि तुम हमें चुनों ,वोट दो ,हम तुम्हारे सवाल ,तुम्हारी समस्या संसद में उठाएंगे। यही मौजूदा सियासी परिदृश्य है , 360 डिग्री का फुल सर्कल। सबकुछ इसी में गोल-गोल घूमता रहता है लेकिन इन सबके बीच जो दिशा देता हुआ मालूम होता है, वह है सर्वोच्च न्यायालय की एक मामले में टिप्पणी। न्यायाधीश द्वय ने कहा है कि सरकार नफरती भाषा पर चुप्पी नहीं साध सकती और जब तक धर्म और राजनीति अलग-अलग नहीं हो