महाराष्ट्र, पवार के नए वार से कौन होगा पॉवरफुल

महाराष्ट्र की सियासत की तुलना अगर शतरंज के खेल से की जाए तो एनसीपी के नेता शरद पवार उस ऊंट की तरह हैं जिनकी चाल टेढ़ी ही होगी यह तो समझ आता है लेकिन किस करवट होगी यह कभी समझ नहीं आता। उनकी अपनी पार्टी नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) टूटकर शिवसेना की तरह ही दो फाड़ हो जाएगी या महाविकास अघाड़ी का अभिन्न हिस्सा बनी रहेगी यह प्रश्न अब सियासत के हर गलियारे में पूछा जा रहा है। अफवाह गर्म है कि एनसीपी छिन्न -भिन्न होकर भाजपा को टेका लगा देगी और इसी अफ़वाह के बीच एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना के प्रवक्ता ने कह दिया है कि अगर एनसीपी से टूटकर अजित पवार भाजपा की झोली में गिर जाते हैं तो वे छिटक जाएंगे। चुनाव भले ही कर्नाटक में होने वाले हों लेकिन चुनाव के बाद भी स्थिरता की कोई गारंटी नहीं इसकी पूरी गारंटी इन दिनों महाराष्ट्र की सियासत दे रही है। शरद पवार ने पिछले हफ़्ते अडानी के मामले में जेपीसी के गठन की मांग को गैर ज़रूरी बताकर विपक्षी एकता की हवा तो निकाली ही थी गुरूवार को मुंबई में दो घंटे गौतम अडानी के साथ बंद कमरे में  एक बैठक भी कर ली। दो टूक शब्दों में कहा जाए तो शरद पवार फिलहाल उस  कंपनी के वयोवृद्ध बुजुर्ग की तरह नज़र आ रहे हैं जिनकी अगली पीढ़ी शायद बंटवारे के लिए उनकी ओर ताक रही है। 

यह दुखद है कि अधिकांश सियासी दल इनदिनों किसी कॉर्पोरेट कल्चर में ढलते हुए दिखाई दे  रहे है। छोटे दलों में कुछ ज़्यादा ही छटपटाहट देखी जा रही है। देश अब भी आबादी की अधिकता और काम की कमी से जूझ रहा है ,किसान को उसकी उपज का दाम नहीं मिल रहा है लेकिन जनता के लिए लड़ने का दिखावा करने वाली इन पार्टियों को इसी कॉर्पोरेट कल्चर में लोट -पोट होने की पड़ी है। शरद पवार की एनसीपी में उनके आलावा उनकी बेटी सुप्रिया सुले और भतीजे अजीत पवार हैं। बेटी सुप्रिया राष्ट्रीय राजनीति का चमकता सितारा है तो भतीजा अजित राज्य की। वे महाराष्ट्र के सहकारिता संगठन में भी बड़ा दखल रखते हैं। ये वही हैं जो चुनाव के नतीजों के बाद अपनी पार्टी से टूटकर सुबह-सुबह देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर शपथ ले चुके थे। तब प्लान कामयाब नहीं हो सका, एनसीपी टूटते-टूटते बच गई और महाविकास अघाड़ी का गठबंधन अस्तित्व में आया। कांग्रेस,एनसीपी और शिवसेना का गठबंधन। भाजपा ने इसे 'अनहोली अलायन्स 'कहा था लेकिन जाने कैसे यह पवित्र गठजोड़ में बदलकर चलने लगा। इसकी साख जमने लगी।भाजपा इस कदर असुरक्षित हो गई कि उसने  शिवसेना को तोड़कर उसके एक विधायक एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया और खुद के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस को  डिप्टी सीएम बनाकर सरकार हथिया ली।

 नई सरकार की  नैया के खिवैया एकनाथ शिंदे  बन गए। उद्धव ठाकरे की शिवसेना से नाम ,चुनाव चिन्ह सबकुछ छिन गया। केंद्रीय सरकारी एजेंसियों का दबाव तब इनके  दर्जन भर विधायकों पर था और आगे की गिनती बदस्तूर जारी थी । एकनाथ शिंदे जो पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के अच्छे मित्र और तमाम बड़े मंत्रालयों के मुखिया थे। उन्होंने कह दिया था  कि भाजपा के हिंदुत्व के साथ ही सरकार बनाएंगे,कांग्रेस और एनसीपी उन्हें  बिलकुल मंजूर नहीं।पहले सभी विधायक सूरत में इकट्ठा हुए फिर गोहाटी में शतरंज की बिसात बिछी  । मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सरकारी निवास वर्षा को छोड़ निजी निवास मातोश्री चले गए थे , वही निवास जहां से बाला साहब ठाकरे की सियासत चलती थी। वे खुद कभी सीएम नहीं बने लेकिन शक्ति ऐसी कि उनके रिमोट से सारी मुंबई और प्रदेश चलता था। उद्धव ठाकरे ने कई रवायतें तोड़ी थीं । मुख्यमंत्री का पदभार लेना और कांग्रेस का समर्थन बड़ा कदम था । उस समय भाजपा को अपनी सरकार और शक्ति का निर्माण एकनाथ शिंदे के जरिए ही फलीभूत होता दिखाई देता था । अब यहाँ भी उसका भरोसा डगमगाने लगा  है।  इस गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। डर यह भी है कि एकनाथ शिंदे की शिवसेना के विधायक अयोग्य घोषित हो गए तब क्या होगा। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। अब की बार ये नैया फिर हिचकोले खा रही है और नए समीकरण बन रहे हैं।  यह समूची धरपकड़ इसी डर का नतीजा है। एनसीपी इस हाल में अधिकतम मोलभाव कर लेना चाहती है। अजित पवार ने पार्टी टूटने की अटकलों को अफवाह बता  दिया लेकिन अब शरद पवार खुद जुट गए लगते हैं। 

महाराष्ट्र की राजनीति में सरकार से जुड़े दलों की हालत मुंबई लोकल ट्रेन के उस डिब्बे की तरह हो गई है जिसमें घमासान मचा हुआ है। चढ़ने -उतरने का खेल रोचक तो है ही साथ ही यह भी बता रहा है कि दलों को सिर्फ सत्ता चाहिए। भाजपा की कोशिश महाराष्ट्र की कुर्सी बचाए रखने में तो है ही निगाह 2024 के लोकसभा पर भी हैं। महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं और मौजूदा परिस्थितियां बता रहीं हैं कि टूटी हुई शिवसेना और भाजपा का गठबंधन इसमें कोई मदद नहीं कर सकता है । जनता में कोई साख इस अवसरवादी गठजोड़ की नहीं है। विनोद तावड़े समिति की रिपोर्ट ने भाजपा की चिंता और बढ़ा दी है। तीन सदस्यीय इस समिति ने भाजपा की हालत को राज्य में खस्ता बताया है। रिपोर्ट से परेशान केंद्रीय नेतृत्व ने भाजपा प्रदेशाध्यक्ष  चंद्रशेखर बावनकुले और मुंबई  भाजपा अध्यक्ष आशीष शेलार को दिल्ली तलब किया। हालात ऐसे ही रहे तो लोकसभा ,बीएमसी के चुनावों में  भी भाजपा को झटका लग सकता है। नतीजतन भाजपा और एनसीपी फिर क़रीब दिखाई पड़ रहे हैं। उपचुनावों में भी भारतीय जनता पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। मुंबई की अंधेरी ईस्ट सीट पर लोकसभा का उपचुनाव शिवसेना (उद्धव ठाकरे ) की प्रत्याशी ऋतुजा लटके ने 66 हज़ार से भी अधिक मतों  से जीता था। 

शरद पवार और गौतम अडानी की मुलाकात ने बता दिया है कि आखिर क्यों पवार अडानी पर नरम पड़े थे,वह भी तब जब समूचा विपक्ष अडानी के खिलाफ जेपीसी की मांग कर सरकार को घेर रहा था। पवार ने यह कहकर कि सुप्रीम कोर्ट की जांच काफी है, वे जेपीसी  को ज़रूरी नहीं मानते विपक्ष के वार को कमज़ोर करने की कोशिश की थी। बाद में उन्होंने बात को बनाते हुए कहा कि वे भले ही इसे ज़रूरी नहीं मानते लेकिन विपक्ष की मांग का विरोध भी नहीं करेंगे। अब जब वे गौतम अडानी से मिल रहे हैं ,तृणमूल  कांग्रेस  सांसद महुआ मोइत्रा ने तीखा विरोध दर्ज़ कराया है। उन्होंने कहा है कि जब तक सरकार गौतम अडानी के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लेती तब तक किसी भी राजनेता को उनसे नहीं मिलना चाहिए। वे ट्वीट करती हैं -"मुझे मराठाओं से कोई डर नहीं लगता है। मैं उम्मीद करती हूँ कि वे  पुराने  रिश्तों से ज़्यादा देश को अहमियत देंगे।  ऐसा कहकर मैं विपक्षी एकता को कमज़ोर नहीं कर रही हैं बल्कि जनता के हित की बात कर रही हूँ । " ज़ाहिर है महाराष्ट्र की राजनीति ने नया रास्ता  ले लिया है खासकर शरद पवार के नए दांव ने स्थानीय सियासत के साथ देश की सियासत को भी चौंकाया है। भाजपा किसी कीमत पर महाराष्ट्र की सत्ता खोना नहीं चाहती। पहले एकनाथ शिंदे थे अब फिर अजित पवार हैं। अब जनता के वोट से सरकार नहीं बनती बल्कि वोट के बाद की सौदेबाज़ी से चलती है। शरद पवार के नए वार से विपक्षी एकता को तो धक्का ही लगा है।   महाराष्ट्र की जनता साक्षी है और जागरूक भी। अगला चुनाव वहां किसी भी दल के लिए आसान नहीं होगा। अवसरवादियों के लिए तो बिलकुल भी नहीं।


  

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