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पाँच हजार रुपये में बेच दी बच्ची

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बाज़ार में इन दिनों जहाँ कबाड़ से लेकर महल तक बिक रहे हैं वहीँ जिंदगियां भी दाव पर लगी हैं उसने अपनी नवजात बच्ची को बेच दिया. यह पहली बार नहीं था कि धन के नीचे संवेदना कुचली गयी हो. नवरात्र में कन्या जिमाने का दस्तूर है लेकिन उसने अपना अंश किसी और के सुपुर्द कर दिया था. अगर आप मान रहे कि वह बिटिया थी इसलिए ऐसा हुआ तो आप भूल करेंगे यह बेटी तेईस साल की भव्या की चौथी संतान है। पति नंदू खास कमाता नहीं। पड़ोसी थे, शादी कर ली। दोनों के माता-पिता की सहमति इस शादी में नहीं थी। अपनी संतान से मुंह मोड़ पाना कब किस के बस में रहा है [लेकिन भव्या -नंदू के बस में तो है]वे धीरे-धीरे जुड़ने लगे। धन का अभाव अमावस के अंधेरे की तरह इनके साथ लगा हुआ था। कामचोर पति का साथ निभाते हुए भव्या ने कई छोटी-मोटी नौकरियां की, लेकिन कोई भी कायम नहीं रही। पहली संतान एक बेटा हुआ, जो कुपोषण का शिकार था। दो महीने बाद ही वह दुनिया छोड़ गया। दसवीं फेल भव्या कभी किसी पार्लर में, कभी कैटरिंग सर्विस में और कभी सेल्स में काम करती रही। बेटे की मौत के एक साल बाद दूसरी संतान उसकी गोद में थी। पालने के लिए न समय था, न पैसा। भव्या की स

हर चेहरा विदा....

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क्या वाकई तिथियों के साथ गम भी विदा हो जाते हैं ? काश यादों का भी तर्पण हो सकता और यदि नहीं तो कागे की जगह एक बार ही वह दिखाई दे जाता जिसके लिए आँखों से नमी का नाता टूट ही नहीं पा रहा है. सांझ सां .....झ हर चेहरा विदा. अन्तिम तीन पंक्तियाँ कवि अशोक वाजपेयी की हैं जो उन्होंने 1959 में लिखी थीं । क्या वाकई हर चेहरा विदा है? विदा होते ही सब कुछ खत्म हो जाता है कि कुछ रह जाता है तलछट की तरह। सालता, भिगोता, सुखाता और फिर सराबोर करता। कभी किसी प्रेम में डूबे को देखा है आपने? एक ऐसे सम पर होता है जहां चीजें एक लय ताल में नृत्य करती हुई नजर आती हैं। इतना सिंक्रोनाइज्ड कि कोई चूक नहीं। समय से बेखबर बस वह उसी में जड़ हो जाता है। यह जड़ता तब टूटती है जब दोनों में से कोई एक बिखरता है। विदा होता है। अवचेतन टूटता है। चेतना जागती है। तकलीफ, दुख, पीड़ा जो भी नाम दें, सब महसूस होने लगते हैं। एहसास होता है जिंदा होने का। एहसास होता है उस ...ताकत का जो इस निजाम को चला रही है। इससे पहले तक लगता है जैसा हम चाह रहे हैं वही हो रहा है। हमने यह कर दिया, वह कर दिया। हमारे प्रयास से ही सब बेहतर हुआ। फि

हाउ अनहैप्पी इज हर टीचर्स डे ?

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happy teachers day की ध्वनियों के बीच वह कहीं उदास कोने में बैठी होगी.लड़ रही होगी हालात से.बिखर रही होगी या शायद बिखरकर जुड़ रही होगी वह 14 की और प्रिंसिपल 48 शिक्षक दिवस यानी डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन। हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति और एक समर्पित शिक्षक। हमेशा की तरह इस दिन को भी श्रद्धा भाव से मनाने की कोशिश थी। गुरु को ईश्वर से भी बड़ा दर्जा देने वाले इस देश की परंपरा में कुछ और विचारने का मन भी नहीं करता, लेकिन जब जयपुर के महाराजा पब्लिक स्कूल के संचालक और प्रिंसिपल का कृत्य उजागर हुआ तो लगा जैसे शिक्षक ही इस परंपरा को चुनौती दे रहे हैं। वे इस दर्जे से नाखुश हैं। यह वाकये का सामान्यीकरण करने की कोशिश नहीं है, लेकिन अनेकानेक घटनाएं हैं, जो नैतिक पतन की ओर इशारा करती हैं। हमें यह बिलकुल नहीं भूलना चाहिए कि दुष्कर्म की शिकार इस बच्ची की उम्र चौदह है और अपराधी की 48। रिपोर्टर की छानबीन बताती है कि दुष्कर्म के बाद स्कूल संचालक ने लड़की को अच्छे नंबरों से पास करने का लालच दिया। लड़की की मां ने ताड़ लिया था, लेकिन डर के मारे उसने कुछ भी नहीं बताया। दूसरे दिन उसने वही हरकत फिर द