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मेरी कुड़माई में

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 मेरी कुड़माई  में  मुझे मिले थे माटी के गणेशजी और एक लकड़ी की कंघी  वही जो आदिवासी लड़का लड़की को देता है  मैं भी हो गयी थी तेरी  सदा के लिए. क्या कोई मंतर था   मिटटी और लकड़ी के टुकड़ों में  या थी वो नज़र  जो  सिवाय भरोसे  के  कुछ और देती ही नहीं थी. समझ रही हूँ  मिटटी-लकड़ी देने का सबब सच, तुम्हारी निगाहें बहुत दूर तक  देख  लेती थीं .

खांकर बजती है राह बनती है

अपने जीते जी मैं कभी शृंगार नहीं करूंगी लेकिन अंत्येष्टि के समय वे मुझे सजा देंगे। वसीयत में साफ-साफ लिख देने पर वे ऐसा नहीं करेंगे । क्यूं लिखूं मैं? करने दो उन्हें, जिंदगी में एक बार मैं खूबसूरत लगूंगी -वेरा पावलोवा   वेरा रूसी कवयित्री हैं, जो शायद अपने सादगी पर फिदा हैं और इसी को ही अंतिम सांस तक कायम रखना चाहती हैं। कोई  ख्वाहिश नहीं सुंदर दिखने की फिर भी एक ख् वाहिश कि मरने के बाद भी खूबसूरत लगूं। सुंदर दिखना हम में से हरेक की चाहत होती है, लेकिन क्या सुंदरता केवल लिबास और अंगों की होती है। मुझे तो छतीसगढ़ के बस्तर जिले में जगदलपुर के पास कोटमसर गांव की वह आदिवासी स्त्री भी बहुत खूबसूरत लगती है जो सड़कों पर धान फैला रही होती है और वह मेवाती स्त्री भी जो अलवर के गांव में प्याज़  उगा रही है। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की वे स्त्रियां भी जिन्होंने अपने दम पर खोए हुए वन फिर से विकसित कर लिए हैं। अपने पुरुषों का पलायन रोक दिया है। उन्होंने अपना पानी, अपना चारा, अपना ईंधन तो पाया ही है, अपना स्वाभिमान भी ऊंचा रखा है। वे बारी-बारी से इस वन की रक्षा करती हैं। इसके लिए उनके पास एक ला

हम भरे-भरे ही हैं दोस्त

उसने कहा  मुझसे  फिर क्यों नहीं  मैंने कहा  प्याला रीतता  ही नहीं  ख़ालीपन के  एक निर्वात  दो आंसूं  तीन हिचकियों  चार बातों  और अनगिन यादों  के बाद  फिर भर उठता है  अजब जादूई मसला है कभी मैं रीतती हूँ  तो प्याला मुझे भर देता है  और प्याला रीतता है तो मैं  हम भरे-भरे ही हैं दोस्त.

अच्छे लोग मेरा पीछा करते हैं

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अच्छे लोग मेरा पीछा करते हैं ढूंढ ही लेते हैं मुझे  आखिरकार    बावजूद कि मैं हद दर्जा बेपरवाह   ज़िन्दगी का सबसे कीमती तोहफा भी ऐसे ही मिला मुझे  मैं बेखबर  वह कुर्बान  मैं जड़ वह  चैतन्य   मैं सुप्त वह जाग्रत मैं ठूंठ तो वह हरा वट   मैं तार वह सितार    मैं  बुत  वह   प्राण     मैं   इंतज़ार वह इश्क़  तेरा लाख शुकराना मेरे रब दे तौफीक   मुझे   के मैं  कर सकूं पीछा   अच्छाइयों का  जो न कर सकूं अच्छे लोगों का तो .