खांकर बजती है राह बनती है


अपने जीते जी मैं कभी शृंगार नहीं
करूंगी लेकिन अंत्येष्टि के समय वे
मुझे सजा देंगे। वसीयत में साफ-साफलिख देने पर वे ऐसा नहीं करेंगे
क्यूं लिखूं मैं? करने दो उन्हें, जिंदगी
में एक बार मैं खूबसूरत लगूंगी -वेरा पावलोवा

 वेरा रूसी कवयित्री हैं, जो शायद
अपने सादगी पर फिदा हैं और इसी
को ही अंतिम सांस तक कायम


रखना चाहती हैं। कोई  ख्वाहिश नहीं
सुंदर दिखने की फिर भी एक
ख्वाहिश कि मरने के बाद भी
खूबसूरत लगूं। सुंदर दिखना हम में
से हरेक की चाहत होती है, लेकिन
क्या सुंदरता केवल लिबास और
अंगों की होती है। मुझे तो छतीसगढ़
के बस्तर जिले में जगदलपुर
के पास कोटमसर गांव की वह
आदिवासी स्त्री भी बहुत खूबसूरत
लगती है जो सड़कों पर धान फैला
रही होती है और वह मेवाती स्त्री भी
जो अलवर के गांव में प्याज़  उगा
रही है। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल
की वे स्त्रियां भी जिन्होंने अपने दम
पर खोए हुए वन फिर से विकसित
कर लिए हैं। अपने पुरुषों का
पलायन रोक दिया है। उन्होंने अपना
पानी, अपना चारा, अपना ईंधन तो
पाया ही है, अपना स्वाभिमान भी
ऊंचा रखा है। वे बारी-बारी से इस
वन की रक्षा करती हैं। इसके लिए
उनके पास एक लाठी है। इसके
ऊपरी सिरे पर बड़े आकार के दो-
चार घुंघरू लगे हैं। इस असाधारण
लाठी का नाम है खांकर। खांकर
लेकर वे निकल पड़ती हैं। नीरव
 चुप्पी के बीच जब कदम चलते हैं
और खांकर बजते हैं तो बेहद
संगीतमय राह बनती है, जो आगे
खड़ी स्त्री की खांकर से जुड़ जाती
है। शाम को वन की रखवाली के
बाद जब ये स्त्रियां लौटती हैं तो
खांकर किसी और के दरवाजे पर
रख देती हैं। इसका मतलब है कि
कल उन्हें वन की रखवाली करनी
है। बाईस बरसों से जारी यह
सिलसिला दूधातोली (पौड़ी गढ़वाल)
के 136 गांवों को आत्मनिर्भर बना
चुका है। वन के पनपने से पानी की
समस्या भी नहीं रही है। पानी
संरक्षित होने लगा है तो जंगल में
लगने वाली आग भी नियंत्रित हुई है।
जंगल में आग की तरह कुछ फैल
रहा है तो वह है वन संरक्षण का
संदेश। उल्लेखनीय है कि
मध्यप्रदेशन शासन ने 2011 का
प्रतिष्ठित राष्ट्रीय गांधी सम्मान
दूधातोली लोक विकास संस्थान को
प्रदान किया है। ये स्त्रियां बहुत ही
सुंदर और सुगढ़ हैं। वैसी ही भव्य
और आकर्षक है जैसे कोई शास्त्रीय
नर्तकी अपने नृत्य और अभिनय से
कोई जादू जगा रही हो।
अंग्रेजी में कई पत्रिकाएं
निकलती हैं, जिनके चमकीले और
चिकने पन्ने एक तरफ कॉस्मेटिक
आइटम के विज्ञापनों से रंगे होते हैं
तो दूसरी ओर भव्य रजवाड़ी वैभव
का प्रदर्शन करती वहां की महिलाएं
होती हैं। रजवाड़ों के साथ आजकल
नए औद्योगिक रजवाड़े भी पनप गए
हैं। वहां भी स्त्रियों के लिबास और
ब्रांड के
ब्योरों के अलावा कुछ नहीं
होता। खबर होती है कि अंबानी
बहुएं जो कभी पारंपरिक परिधानों में
ही नजर आती थीं, अब पश्चिमी
परिधानों में भी सार्वजनिक कार्यक्रमों
में शामिल होने लगी हैं। उन्होंने
अपना वजन भी काफी घटा लिया है।
बीबीसी पर खबर थी कि हैलो
नामक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका अब
पाकिस्तान से अपना संस्करण शुरू
करने जा रही है। जाहिर है यहां भी
धनी लोगों की नकली मुस्कानों की
नुमाइश लगेगी। इनकी वार्डरोब में
झांककर आम 
शख्स भी दर्जियों के
यहां दौड़ते फिरेंगे। रजवाड़ों की
विरासत पर जमीं धूल हटेगी और
मैगजीन के पैर जमेंगे। गरीब मुल्क
के संघर्ष की दास्तां की गुंजाइश इन
पन्नों में नहीं है।
बहरहाल, सुंदरता के पैमाने
चाहे जो हों, पसीना बहाकर निखरी
कुंदन आभा के आगे जिम में निखरी
देह की तस्वीरें सूनी और नकली ही
मालूम होती है। बेहतरीन लाइट
इफेक्ट्स के साथ छपी इन तस्वीरों
में दूधातोली की पहाड़ी स्त्री और
जगदलपुर की आदिवासी स्त्री की
पेंटिंग-सा जादू नहीं हो सकता है।
वेरा धन्य हो तुम जो तुमने अंतिम
सांस तक अपना वजूद कायम रखने
की ठानी है, मशहूरी के बावजूद देह
की नहीं दिल की सुनी है।

[मनोज  पटेलजी   की अनुदित कविता उनके ब्लॉग  पढ़ते-पढ़ते से साभार है ]

टिप्पणियाँ

  1. I Think those models who are shedding clothes for PETA and other organisational ads to spread awareness for environment and Animal protection, should learn something from these super ladies. I used word 'Super Ladies' b'coz they are not stripping off for any advertisement(money), they are actually doing what is needed, instead of using a platform to show boldness...This is my personal perception...

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. "पसीना बहाकर निखरी
    कुंदन आभा के आगे जिम में निखरी
    देह की तस्वीरें सूनी और नकली ही
    मालूम होती है।"

    पढ़कर अच्छा लगा।

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  4. aman, anuraagji, anupji aapka shukriya aur kya khoob sanyog ki aap teenon ke naam a se shuru hote hain.

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