देश के बाहर देश के लिए उठे दो बड़े क़द

हम अक्सर नेताओं के भाषण सुनते हैं। लगभग सबका यही दावा होता है कि हम जो कह रहे हैं वही जनता के हित में है। ये अवसर मिलते ही हर मुद्दे पर बोलते हैं फिर चाहे उस मुद्दे पर इनका ज्ञान लगभग शून्य ही क्यों ना हो। ऐसे में देखा गया है कि विशेषज्ञ और बड़े पदों पर बैठे बुद्धिमान और ज़िम्मेदार दिमाग ज़्यादातर चुप्पी साध लेते हैं क्योंकि वे जब भी बोलते हैं सत्ता के पिट्ठू या तो समझ नहीं पाते या फिर उन्हें इस तरह घेरते हैं जैसे उन्होंने कोई देश विरोधी बात कह दी हो, गुनाह कर दिया हो। वही घिसे-पिटे चेहरे टीवी चैनलों पर आकर उन्हें दोषी ठहराने लगते हैं। कई गंभीर मुद्दे यहां 'ऐलिस इन वंडरलैंड' की तरह खो जाते हैं। सियासी दलों को भले ही तुरंत लाभ मिल जाता है लेकिन देशहित में कोई सार्थक विचार कभी आगे नहीं बढ़ पाते। शायद यही वजह है कि विशेषज्ञ देश के भीतर कुछ बोलने में हिचकते हैं लेकिन जब अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बोलने का अवसर मिलता है तो वे बेहद सधे हुए ढंग से अपनी बात रखते हैं क्योंकि  बड़े मंचों पर आप केवल 'पॉलिटिकली मोटिवेटेड' नहीं हो सकते,वहां आप अपने विषय के विशेषज्ञ हैं । इस सप्ताह देश के दो बड़े ओहदों से देश के बाहर से ज़रूरी बातें सामने आई हैं जिसे सबको सुनना चाहिए। ये दो आवाज़ें हैं भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी आर गवई और चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ सीडीएस जनरल अनिल चौहान की। 




भारत के सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत को हुए नुकसान को स्वीकार करते हुए कहा कि सामरिक गलतियों के कारण हवाई संपत्तियों का शुरुआत में नुकसान हुआ, लेकिन स्थिति को जल्दी ही संभाल लिया गया। जनरल ने यह भी कहा कि ऑपरेशन सिंदूर में 15 फ़ीसदी  समय फ़र्ज़ी खबरों से निपटने में लगा। सिंगापुर में शांगरी-ला डायलॉग में बोलेते हुए जनरल ने कहा कि भारत की रणनीति तथ्यों पर आधारित रही, फिर भले ही जवाब देने में थोड़ी देरी हुई हो। उन्होंने कहा कि इससे साफ होता है कि भारत को सूचना युद्ध (इनफार्मेशन वारफेयर ) के लिए एक अलग और विशेष शाखा की जरूरत है। जनरल चौहान ने कहा कि आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो बिना लड़ाई के लंबे समय तक सेना को तैनात करना बहुत महंगा पड़ता है। इसलिए भारत ऑपरेशन के बाद जल्दी से डिसइंगेज कर लेता है। लंबे युद्ध देश के विकास में बाधा डालते हैं और यह बात दुश्मन भी जानता है । जनरल चौहान ने  शनिवार (31 मई) को सिंगापुर में आयोजित शांगरी-ला डायलॉग में ब्लूमबर्ग और रॉयटर्स को दिए इंटरव्यू में भारत-पाकिस्तान संघर्ष को लेकर जो बातचीत की उसे ऑपरेशन सिंदूर पर दी गई बेहद दुर्लभ और आधिकारिक जानकारी माना गया है। अजीब यह है कि ऐसे संवाद अब देश के भीतर सुनने को नहीं मिलते। 


उनकी तीन खास बातों में पहले दिन भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान खोने का ज़िक्र भी था। जनरल चौहान ने पहली बार यह स्वीकार किया कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा शुरू किए गए सैन्य अभियान ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की पहली रात भारतीय वायुसेना के कुछ लड़ाकू विमान नष्ट हो गए थे।  उन्होंने इन ‘प्रारंभिक नुकसानों’ के लिए रणनीतिक चूक को जिम्मेदार ठहराया। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि कितने विमान गिरे थे। उन्होंने पाकिस्तान के उस दावे को ‘पूरी तरह ग़लत’ कहा, जिसमें छह भारतीय फाइटर जेट्स को मार गिराने की बात कही गई थी।  जनरल चौहान ने ज़ोर दिया कि संख्या नहीं, बल्कि यह समझना ज़रूरी है कि ये नुकसान क्यों हुए और उनसे कैसे सबक लिया गया। इन नुकसानों के बाद, भारतीय वायुसेना ने लगभग दो दिन तक अपने सभी फाइटर जेट्स की उड़ानें रोक दी थीं। इस दौरान रणनीति की समीक्षा की गई और सुधार किए गए। ब्लूमबर्ग से बातचीत में जनरल चौहान ने कहा, ‘हमने यह समझा कि हमने किस स्तर पर टैक्टिकल गलती की थी, उसे ठीक किया, उसमें सुधार किया और दो दिन बाद फिर से सभी विमान उड़ाए, और लंबी दूरी से लक्ष्य साधा। ’ इस रणनीतिक विराम से वायुसेना को फिर से संगठित करने और पाकिस्तान के भीतर गहराई तक सटीक हमले करने का मौका मिला। एक और बात जिससे पाकिस्तान को 'कट्टर दुश्मन' बताने का भारतीय मीडिया का नैरेटिव ख़राब होता है वह भी जनरल चौहान ने कही कि तनावपूर्ण स्थिति के बावजूद, दोनों देशों ने संयम और समझदारी दिखाई। किसी भी पक्ष ने स्थिति को परमाणु युद्ध की ओर नहीं बढ़ने दिया। रॉयटर्स से बातचीत में उन्होंने कहा,- ‘ऑपरेशन सिंदूर के हर चरण में दोनों पक्षों ने सोच-समझकर और जिम्मेदारी से कदम उठाए।’ उन्होंने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की संभावना को ‘बहुत दूर की बात’ कहकर खारिज किया और यह भी बताया कि दोनों देशों के बीच संवाद के रास्ते खुले रहे, जिससे संकट को नियंत्रित किया जा सका। 


होना तो यह चाहिए था की इन गंभीर बातों का गंभीरता से लिया जाता लेकिन देश के ज़िम्मेदारों की रूचि  तो तीनों सेना प्रमुखों को आईपीएल मैच देखने के लिए न्योता देने में (जिसे स्वीकार नहीं किया गया ), कर्नल सोफ़िया कुरैशी के परिवार से सरकार पर फूल बरसवाने में और मध्यप्रदेश के उप मुख्यमंत्री कि सुने तो देश की सेना भी हमारे नेता के चरणों में नतमस्तक हैं बताने में रही। अफ़सोस कि देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की प्रतिबद्धता के साथ जीने वालों की शान के ख़िलाफ़ आए इस बयान पर कोई सशक्त प्रतिकार सत्ता पक्ष की ओर से नहीं आता । बहरहाल जनरल चौहान की टिप्पणियों के बाद अब सरकार से यह मांग उठनी शुरू हो गई है  कि ऐसे संवेदनशील मामलों पर आधिकारिक रूप से और ज़्यादा पारदर्शिता बरती जाए, क्योंकि यह अहम खुलासे देश के बाहर, विदेशी धरती पर किए गए थे। वैसे शांगरी-ला डिफ़ेंस कॉन्फ्रेंस प्रमुख देशों के रक्षा मंत्रियों का सम्मलेन भी है। सवाल ये भी हैं कि हमारे रक्षा मंत्री क्यों नहीं गए ? जवाब मिलना चाहिए कि जो नुकसान हुआ वह राफेल का था या  किसी और फाइटर जेट का ,क्या पाकिस्तान को पहले सूचना देने का भी इस  हानि से कोई ताल्लुक है और जब सीडीएस खुद मान रहे हैं कि चूक हुई है तब क्या भारत ने पाकिस्तान के पास मौजूद चीनी मिसाइलों को अनदेखा किया और क्या यह भी एक चूक ही कही जाएगी कि भारत ने मान लिया कि बालाकोट की तरह इस बार भी पाकिस्तान चुप रहेगा? जो तात्कालिक नुक़सान साफ़ दिख रहा है वह ये कि दुनिया अब भारत-पाकिस्तान को एक पलड़े पर रखती हुई नज़र आ रही है। 


विदेशी धरती से दूसरी बड़ी आवाज़ भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई की सुनाई दी है जो मंगलवार को लंदन में आयोजित ब्रिटिश सुप्रीम कोर्ट की  चर्चा में भाग ले रहे थे। उन्होंने  रिटायरमेंट के बाद जजों की सरकारी पदों पर नियुक्ति और चुनाव लड़ने को लेकर कहा कि ये गंभीर नैतिक चिंताएं हैं। उन्होंने कहा- "अगर कोई जज रिटायर्मेंट के तुरंत बाद सरकार से कोई पद लेता है या चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे देता है तो इससे कई सवाल खड़े होते हैं। लोगों को लगने लगता कि न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं है। उन्हें  लगता है कि जज सरकार से फायदा लेने की कोशिश कर रहे हैं। इस तरह की चीज़ें न्यायपालिका की ईमानदारी पर सवाल उठाती हैं। लोगों को लगता है कि जजों ने भविष्य में पद पाने के लिए फैसले दिए थे।"  दरअसल 2014 से, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर (आंध्र प्रदेश के राज्यपाल नियुक्त) और न्यायाधीश रंजन पी. गोगोई (राज्यसभा में नियुक्त) को सेवानिवृत्ति के बाद पद मिले। कलकत्ता हाई कोर्ट के जज अभिजीत गंगोपाध्याय ने पद से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी से चुनाव लड़ा और आज सांसद हैं। ऐसे मामलों से इस बात पर बहस होती है कि क्या ये नियुक्तियां  न्यायिक अखंडता से समझौता नहीं करती, जिसकी ओर सीजेआई साफ इशारा करते हैं।सीजेआई ने यह भी कहा कि मैंने और अन्य जजों ने ऐलान किया है कि रिटायरमेंट के बाद पद नहीं लेंगे। इस चर्चा में उन्होंने न्यायपालिका के भीतर व्याप्त  भ्रष्टाचार की बात भी कही । हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं जिनके दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद की गई थी। विडंबना है कि देश के विशेषज्ञ बाहर तो अपनी बात  समझा पाते हैं लेकिन देश के भीतर हम मजबूर किए जाते हैं नकली बहस और कुतर्की बयान सुनने के लिए। मीर तकी मीर का एक शेर है 


ताब किसको है जो हाल-ए-मीर सुने हा

ल ही और कुछ है ,मजलिस का 


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