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जुलाई, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रंग ए उल्फ़त

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सोच रही हूँ मेरे तुम्हारे बीच कौन सा रंग है स्लेटी, इसी रंग की तो थी कमीज़ जो  पहली  बार तुम्हें तोहफे में दी थी तुमने उसे पहना ज़रूर पसंद नहीं किया . लाल, जब पंडित ने कहा था लड़की से कहना यही रंग पहने... हम दोनों को रास नहीं आया ख़ास पीला, तुम्हारे उजले रंग में खो-सा जाता था  गुलाबी,  में तुम्हे छुई-मुई लगती तुम ऐसे नहीं देखना चाहते थे मुझे सफ़ेद , में तुम फ़रिश्ता नज़र आते यह लिखते हुए एक पानी से भरा बादल घिर आया है हरा और केसरिया इन पर तो जाने किन का कब्ज़ा हो गया है नीला यही, यही तो था जिस पर मेरी तुम्हारी युति थी नीले पर कोई शक शुबहा नहीं था हमें फ़िदा थे हम दिलों जान से . अब ये सारे रंग मिलकर काला बुन देते हैं मेरे आस-पास. मैं हूँ कि वही इन्द्रधनुष बनाने पर तुली हूँ  जो था हमारे आस-पास नीलम आभा के  साथ   |

यूं ही दो ख़याल

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प्रेम  तुम थे तो थी  जिद  तकरार  अनबन  उलझन  केवल तब ही था  संगीत  सृजन हरापन  ...और बस  तब ही  तब ही तो हुआ था मुझे प्रेम | हिचकी नहीं  सिसकी  अरसा हुआ कोई हिचकी नहीं आई उसे  जुबां भी नहीं दबी  दाँतों के नीचे बस, याद....  शायद, हिचकी अब  सिसकी हो गयी है |

हमें अफ़सोस है पिंकी प्रमाणिक

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लेकिन ख़ुशी  है कि लिंग प्रमाणित  होने से पहले तुम्हारी ज़मानत हो ग यी पि छले दिनों हम सबने एक खबर पढ़ी कि एशियाई खेलों की स्वर्ण पदक विजेता एथलीट पिंकी प्रमाणिक पर पश्चिम बंगाल के 24 परगना क्षेत्र में एक स्त्री ने आरोप लगाया कि वह एक पुरुष है और उसके साथ दुष्कृत्य करने की कोशिश की। खबर ने चौंका दिया कि एशियाई एथलेटिक्स जैसी स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक विजेता महिला के महिला होने पर ही संदेह हो गया है। लगा था कि पुलिस और अस्पताल मिलकर जल्दी ही परिणाम दे देंगे लेकिन यह इतना आसान नहीं था। एक लाइन की पुख्ता  खबर किसी को नहीं मिली है कि पिंकी का जेंडर क्या  है। इस बीच इस एथलीट के साथ कई अनाचार हुए। उन्हें पुरुषों की जेल में रखा गया। पुलिस ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया और लिंग परीक्षण के मेडिकल मुआयने के दौरान उनका एमएमएस भी बनाकर लीक कर दिया गया। शायद, यही सोचकर कि यह तो पुरुष की देह है, क्या फर्क पड़ता है, लेकिन दो मिनट ठहरकर विचार कीजिए कि जिसने पूरी जिंदगी खुद को स्त्री माना हो और वैसी ही पहचान रखी हो उसे यकायक आप कैसे बदल सकते हैं। वह कैसे प्रस्तुत हो सकती

जयपुर के अदबी ठिकाने और एक किताब

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किताबों के लिए हमारे हृदय में पूजा भाव है। सर माथे लगाते हैं हम उन्हें। कभी गलती से पैर भी लग जाए तो पेशानी से लगा लेते हैं, जैसे माफी मांग रहे हों। क्यों न हो रामायण, कुरान शरीफ, बाइबल और गुरुग्रंथ साहब, सभी किताबें ही तो हैं। लिखे शब्दों का हम सभी एहतराम करते हैं ,पूजते हैं। इन ग्रंथों को बड़ी पवित्रता के साथ शुद्ध कपड़ों में लपेटकर रखने वाले  हम सभी ने देखे हैं। जाहिर है हम किताबों को इज्जत देने वाला समाज हैं। यहां से चलकर किताबें किस होड़ में शामिल हो गई हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। एक पूरा मार्केट है जो लेखक और लेखन की पैकेजिंग करता है। कुछ ऐसे भी हैं जो बहुत कम दाम में ज्यादा किताबें पढ़ाने का बीड़ा उठाए हुए हैं। कुछ ऐसे भी लेखक हैं, जिन्हें लगता है अगर दो साल में एक किताब ना निकली तो व्यर्थ है जिंदगी, फिर चाहे उस किताब से जिंदगी के तत्व कोसों गायब हों। खैर, इस चिंता में ना पड़ते हुए पिछले दिनों जिस किताब से नजरें मिली उसका जिक्र। किताब की दुकान किसी हीरों की दुकान-सी लगती है। हीरे तिजोरी के अंधेरे को रोशन कर देते हैं तो नई किताब दिमाग के अंधेरे में र