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नवंबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हमने चुनी जयपुर की लेडी मेयोर

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हमारे शहर जयपुर की प्रथम महिला को हमने सीधे चुना है। किसकी पतंग कटेगी और किसकी उड़ेगी, उससे भी ज्यादा जरूरी है कि कौन शहर की आबो-हवा को खुशनुमा रखेगा। आबो-हवा के मायने शहर की आत्मा को समझने से है। क्या है जयपुर? शानदार ऐतिहासिक विरासत का शहर या मॉल्स, मल्टीप्लैक्स जैसी ऊंची आधुनिक इमारतों का शहर। हम इसके छोटी काशी के स्वरूप से स्नेह करते हैं या आधी रात को सिगरेट के लच्छे बनाते-लहराते युवक-युवतियों के डिस्को थेक से निकलने पर? नहीं यह मोरल पुलिसिंग नहीं है। नैतिकता तजते हुए तो लोग पवित्र परिसरों में भी देखे जा सकते हैं, लेकिन जयपुर दर्शन के लिए आने वाला सैलानी यहां कतई मॉल्स में शॉपिंग करने या डिस्को में थिरकने नहीं आता। शायद इन से भागकर ही आता है। तभी तो कल जयपुर पधारे ग़ज़ल गायक पंकज उधास ने भी कहा 'जयपुर आकर जो शांति और सुकून मिलता है वह दुनिया के किसी कौने में नहीं मिलता बड़े शहरों में सिवाय बिल्डिंग्स और मोल्सके कुछ नजर नहीं आता' सैलानी आता है उस मरुस्थल को महसूस करने, जहां कभी जिंदा रहना सिर्फ मानवीय जिजीविषा का ही नतीजा था। यहां का बाशिंदा न केवल जिंदा रहा, बल्कि राजस्थान प

भटेरी की भंवरी देवी

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कैसी हैं वे सामूहिक बर्बरता के १७ साल बाद ? उन्हीं दिनों दूरदर्शन पर एक कार्यक्रम आया करता था परख। प्रस्तुत करते थे विनोद दुआ। उसी कार्यक्रम के जरिए इंदौर में रहते हुए राजस्थान के भटेरी गांव की भंवरी देवी की आवाज सुनी थी। आवाज क्या थी दर्द और आक्रोश में डूबा हाहाकार था। इंटरव्यू में भंवरी देवी ने स्वयं पर हुए अत्याचार को जुबां दी थी। वह एक-एक कर पांचों आरोपियों का नाम लेकर खुद पर हुए जुल्म का ब्यौरा दे रही थी। उनका सामूहिक बलात्कार हुआ था। देखने वालों के दिल में उनकी तकलीफ नश्तर की तरह धंसती जा रही थी। यकीन मानिए वह आवाज आज भी कौंधती है। फिर एक सुबह बाखबर करने वालों का एक एसएमएस मिला कि शहर में आठ महिलाओं की चित्र प्रदर्शनी लग रही है। "द मेल " शीर्षक के इर्द-गिर्द ही चित्रों का ताना-बाना बुना गया है। बतौर अतिथि भंवरी देवी आमंत्रित हैं। न्याय की राह देखती सामूहिक बलात्कार की शिकार स्त्री से द मेल चित्र श्रखला का उद्घाटन। खैर, इस अवधारणा की दाद देने या आलोचना में पड़ने के बजाय बेहतर यह जानना होगा कि आज सत्रह साल बाद भंवरी देवी किस हाल में हैं? वह भंवरी देवी जो साथिन थीं , है

चला रहा है निजाम ए हस्ती...वो ही खुदा है

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ॐ जय जगदीश अल्लाह ओ अकबर बोले सो निहाल सत् श्री अकाल जय यीशु यह महज शब्द नहीं बल्कि उस परम पिता परमेश्वर का जय घोष है जो दुनिया के निजाम को चला रहा है। यह दिन-रात जोर-जोर से दोहराने, पुकारने का नाम भी नहीं है। यह हर हाल में अपने मानस को तनाव से मुक्त रखने के लिए है। क्या हम पूछ सकते हैं कि आज के माता-पिता अपने बच्चों में इसे रोपने का दायित्व कितना निभा पा रहे हैं ? कल ही की बात है। नन्हा मोनू दरवाजे से टकराकर गिर गया और जोर-जोर से रोने लगा। घबराई मां दौड़कर रसोई से बाहर आई और मोनू को गोद में उठा पुचकारने लगी। मोनू का रोना कम नहीं हुआ। मां ने एक जोरदार प्रहार दरवाजे पर किया और कहा देख दरवाजे की पिटाई हो गई अब वह रो रहा है। दरवाजे को पिटते देख मोनू चुप हो गया। मोनू की मां अकसर कभी दरवाजे को पीटकर तो कभी जमीन पर धप लगाकर मोनू के लिए झूठ-मूठ की चीटियां मरवाती रहती हं उस दिन साहिल भी स्कूल से चोट लगवाकर आया। हाथ पर घाव था और पट्टी बंधी हुई थी। मां से बेटे का दुख देखा ना गया। चल पड़ी स्कूल राहुल को ढूंढ़ने क्योंकि साहिल ने यही बताया था कि राहुल ने उसे धक्का दिया। दरअसल, यह बहुत ही सेडिस्ट