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दिशाहीन सरकारें ही 'दिशा' के मिलने पर होती हैं बदहवास

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  जब मैं अपने टीन्स में थी तो आरक्षण विरोधी आंदोलन में मेरी आस्था बढ़ती गई और फिर बाबरी मस्जिद ढहाने के  कृत्य में भी मेरी पूरी रुचि और समर्थन था। फिर निर्भया के समयकाल में अन्ना हज़ारे से भी हमदर्दी रही। तब कोई ब्लॉग या ट्विटर अकाउंट होता तो मेरे पोस्ट इनके ही हक़ में होते। देश पिछले कुछ महीनों से किसान आंदोलन का साक्षी है। कई लोग सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर अपनी हमदर्दी और नाराजगी ज़ाहिर कर रहे हैं। नए समय के नए माध्यम हैं अपनी बात कहने के । एक गूगल डॉक्यूमेंट बनता है ,कुछ समूह उसे सम्पादित करने का अधिकार भी समूह के सदस्य को देते हैं। आंदोलन को गति देने के लिए के लिए अपनी अभिव्यक्ति इसके जरिए हो सकती है। फ्री स्पीच का अधिकार हमारे संविधान ने दिया है बशर्ते कि वह किसी भी तरह की हिंसा को प्रोत्साहित नहीं करता हो।  आज यही  फ्री स्पीच देशद्रोह के अपराध में लपेट दी गई है और देशद्रोह के ऐसे आरोप अभूतपूर्व संख्या में बढे हैं। कहीं से भी उठाके जेल में डाल दो । ताज़ा आरोप दिशा रवि का है जिसे बैंगलोर से पुलिस ने उठा लिया। दिल्ली हाईकोर्ट में पेश किया लेकिन उसेअपने किसी वकील की  सुविधा भी नहीं दी गई।