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अपराध की जात बताओ भैया

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पिछले सप्ताह खुशबू की कवर स्टोरी गायत्री मांगे इंसाफ (http://dailynewsnetwork.epapr.in/290314/khushboo/18-06-2014#page/1/1 ) पर पाठको की खूब प्रतिक्रियाएं मिलीं। ज्यादातर गायत्री के हालात पर दुखी थे तो कुछ का यह भी मानना था कि ये सांसी जाति तो यूं भी आजीविका के लिए शराब और देह व्यापार के अपराध में लिप्त होती है। ये तो पुलिस रिकॉर्ड में भी ‘जरायम पेशा ’ के नाम से दर्ज होते हैं। जरायम फारसी भाषा का शब्द है जिसके मायने अपराध चोरी-डकैती को पेशा बनाने वाली बिरा दरी से है। अंग्रेजों के शासनकाल में एेसी कई जातियों को जरायम पेशा समूह में रखा गया था। उनका मानना था कि इन जातियों के समूह के समूह अपराधिक गतिविधियों में लिप्त हैं और यही उनका पेशा है और इनके साथ कोई ढील नहीं बरती जाए।अंग्रेजों से आजाद हुए देश को 67 बरस हो चले हैं लेकिन हमारी पुलिस अब भी इस नजरिए से आजाद नहीं हो पाई है। पुलिस ऐसा ही मानती है और सरकार व समाज ने कभी इस दायित्व को नहीं समझा कि आखिर कब तक हम इन्हें यूंही संबोधित करते रहेंगे और एेसा ही बनाए रखेंगे। इन्हें मुख्यधारा में लाने के

और कितना तपोगे थार

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  शून्य से पचास  डिग्री के बीच झूलते थार में इन दिनों मामला एकदम दूसरे छोर पर है।  जयपुर भी पचास को छूकर अब भारी उमस की चपेट में है  लेकिन थार की जुबां  उफ़ जैसे शब्दों के लिए नहीं है । रंगीलो राजस्थान का कोई रंग फीका नहीं है। गर्मी से थर्राते थार का मानस जाने कैसे कूल बना रहता है लेकिन तुम और कितना तपोगे थार   सोमवार की  जेठ दोपहरी इस लिहाज से बहुत शानदार थी कि  चलती सड़क के  दोनों ओर से कुछ सेवाभावी युवा हाथ में शरबत और नीबू पानी लेकर आ खड़े हुए। तपती गर्मी में नीबू पानी एक ही सांस में भीतर उतर गया। इस राहत के  भीतर जाते ही एक दुआ-सी बाहर आई।  वाकई जयपुर में श्याम नगर से सिविल लाइंस तक  इन छोटे-छोटे तंबूओं से उस दिन सुकून और राहत बांटी जा रही थी । यह निर्जला एकादशी का  दिन था। माना जाता है की इस दिन सूखे कंठों  को  शीतल जल, शिकंजी  शरबत पिलाकर पुण्य अर्जित किया जाता है। कितना सुन्दर फलसफा कि  राहत पहुंचाओ पुण्य कमाओ। निर्जला एकादशी का  संदर्भ जानने के  लिए वैद्य हरिमोहन शर्मा जी को  फोन से दस्तक  दी। वैद्य जी ने बताया कई  कि संदर्भ महाभारत से जुड़ता है। पांडवों में भीम को  सर्व