और कितना तपोगे थार
शून्य से पचास डिग्री के बीच झूलते थार में इन दिनों मामला एकदम दूसरे छोर पर है। जयपुर भी पचास को छूकर अब भारी उमस की चपेट में है लेकिन थार की जुबां उफ़ जैसे शब्दों के लिए नहीं है। रंगीलो राजस्थान का कोई रंग फीका नहीं है। गर्मी से थर्राते थार का मानस जाने कैसे कूल बना रहता है लेकिन तुम और कितना तपोगे थार
सोमवार की जेठ दोपहरी इस लिहाज से बहुत शानदार थी कि चलती सड़क के दोनों ओर से कुछ सेवाभावी युवा हाथ में शरबत और नीबू पानी लेकर आ खड़े हुए। तपती गर्मी में नीबू पानी एक ही सांस में भीतर उतर गया। इस राहत के भीतर जाते ही एक दुआ-सी बाहर आई। वाकई जयपुर में श्याम नगर से सिविल लाइंस तक इन छोटे-छोटे तंबूओं से उस दिन सुकून और राहत बांटी जा रही थी । यह निर्जला एकादशी का दिन था। माना जाता है की इस दिन सूखे कंठों को शीतल जल, शिकंजी शरबत पिलाकर पुण्य अर्जित किया जाता है। कितना सुन्दर फलसफा कि राहत पहुंचाओ पुण्य कमाओ। निर्जला एकादशी का संदर्भ जानने के लिए वैद्य हरिमोहन शर्मा जी को फोन से दस्तक दी। वैद्य जी ने बताया कई कि संदर्भ महाभारत से जुड़ता है। पांडवों में भीम को सर्वाधिक भूख लगती थी। उनका एक नाम वक्रोदर भी है। वक्र यानी भेड़िया। भेड़िए सी भूख वाला पेट। महीने के दो और साल के २४ एकादशी व्रत भीम को खूब भारी पड़ते। वे भीष्म पितामह के पास गए कि पितामह मैं भूखा नहीं रह सकता। पितामह ने कृष्ण से राय लेने की बात कही। कृष्ण ने भीम से कहा कि ठीक है भीम जो तुम जेठ के महीने की इस एकादशी को निर्जल व्रत करोगे तो वही पुण्य मिलेगा जो 24 व्रत करने से मिलता है। तभी से निर्जला एकादशी व्रत करने की परंपरा चली आ रही है। तप और ताप की यह जुगलबंदी मनुष्य में असीम शक्ति जागृत करने के लिए ही बनाई गई थी।
एक मित्र की मां न केवल इस दिन व्रत करतीं, बल्कि जयपुर के गलताजी जाकर सारे मंदिरों के दर्शन भी करतीं और वहींं कुण्ड में स्नान भी । शायद शरीर को तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजारकर ही मानव श्रेष्ठता की दिशा में आगे बढ़ता है।
कहते हैं एेसी तपिश सौ सालों में भी नहीं महसूस की गई। लगता है जैसे पृथ्वी सूर्य से गले मिल गई है, लेकिन सच्चाई कुछ और है इन दिनों धरती सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर है। सर्वाधिक गर्म इलाका तो केलिफोर्निया की डेथ वैली है, जहां तापमान 58 डिग्री छू जाता है। दक्षिण अफ्रीका का टिम्बक टू भी एेसा ही इलाका है। यहां तापमान 56 डिग्री सेल्सियस हो जाता है। मकान नारियल के तने कीचड़ और छप्पर से बनते हैं। इसके अलावा सभी गैर कुदरती चीजें तपाने कस ही काम करती हैं। बेशक हम भी एक प्रतिकूल परिस्थिति को जी रहे हैं। गौर करेंगे तो पाएंगे कि सुकून, शांति प्रकृति के करीब ही है। लोहे की बंद गाड़ियां और बंद दड़बेनुमा मकान तबीयत को नुकसान पहुंचा रहे हैं। एक पेड़ की छाया कभी तापघात का कारण नहीं बनती। मटके का जल, मतीरे की काश (फांक) , नीबू-केरी की खटास और पतली छाछ आपमें जीवन भर सकती है, जबकि महंगे वाहनों के फेल हुए वातानुकूलन मरीज को लो बीपी का शिकार बनाकर अस्पताल पहुंचा रहे हैं। हमारा समूचा दर्शन कुदरत से एकाकार में है और फिलहाल हम अपनी समूची ताकत उससे दूर जाने में लगा रहे हैं।
बहरहाल, हमारे ख्वाबों में इन दिनों बर्फीले इलाको की सैर ही है। धरती का सबसे ठंडा इलाका अंटार्कटिका में वोस्तोक स्टेशन है जहां तापमान माइनस 90 डिग्री तक चला जाता है। दुनिया की 90 फीसदी बर्फ यही होती है। बारिश बिल्कुल नहीं होती। यह बर्फीला रेगिस्तान है और हम रेतीले रेगिस्तान थार में हैं। गर्म रेतीला रेगिस्तान। ग्रामीण इस गर्मी को कोसते नहीं, अपनी जीवटता बढ़ाते हैं। बाड़मेर, जैसलमेर के बाशिंदों को कभी त्राहिमाम करते नहीं देखा। वे कहते हैं, दिन और रात की तरह मौसम का भी चक्र है। सूरज की किरणें पृथ्वी को स्पंदित कर रही हैं। तमाम जीवाणु, कीटाणु इस मौसम में पनाह मांगने लगते हैं। इंसान का फर्ज केवल इतना है कि वे आसपास मौजूद पशु-पक्षियों की उपेक्षा न करें । परिंदों के लिए पानी हर घर के आसपास हो। पशुओं के लिए मुश्किल समय है लेकिन उनके भोजन, पानी, का हिस्सा निकालना हमारे संस्कारों में है। इस ऋतु चक्र में प्राणिमात्र पर दया इस पर अमल करके ही हम अपने पर्यावरण को बचा सकते हैं। एक काम बाकी है बारिश से पहले पौधे रोप देने हैं।

एक मित्र की मां न केवल इस दिन व्रत करतीं, बल्कि जयपुर के गलताजी जाकर सारे मंदिरों के दर्शन भी करतीं और वहींं कुण्ड में स्नान भी । शायद शरीर को तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजारकर ही मानव श्रेष्ठता की दिशा में आगे बढ़ता है।
कहते हैं एेसी तपिश सौ सालों में भी नहीं महसूस की गई। लगता है जैसे पृथ्वी सूर्य से गले मिल गई है, लेकिन सच्चाई कुछ और है इन दिनों धरती सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर है। सर्वाधिक गर्म इलाका तो केलिफोर्निया की डेथ वैली है, जहां तापमान 58 डिग्री छू जाता है। दक्षिण अफ्रीका का टिम्बक टू भी एेसा ही इलाका है। यहां तापमान 56 डिग्री सेल्सियस हो जाता है। मकान नारियल के तने कीचड़ और छप्पर से बनते हैं। इसके अलावा सभी गैर कुदरती चीजें तपाने कस ही काम करती हैं। बेशक हम भी एक प्रतिकूल परिस्थिति को जी रहे हैं। गौर करेंगे तो पाएंगे कि सुकून, शांति प्रकृति के करीब ही है। लोहे की बंद गाड़ियां और बंद दड़बेनुमा मकान तबीयत को नुकसान पहुंचा रहे हैं। एक पेड़ की छाया कभी तापघात का कारण नहीं बनती। मटके का जल, मतीरे की काश (फांक) , नीबू-केरी की खटास और पतली छाछ आपमें जीवन भर सकती है, जबकि महंगे वाहनों के फेल हुए वातानुकूलन मरीज को लो बीपी का शिकार बनाकर अस्पताल पहुंचा रहे हैं। हमारा समूचा दर्शन कुदरत से एकाकार में है और फिलहाल हम अपनी समूची ताकत उससे दूर जाने में लगा रहे हैं।
बहरहाल, हमारे ख्वाबों में इन दिनों बर्फीले इलाको की सैर ही है। धरती का सबसे ठंडा इलाका अंटार्कटिका में वोस्तोक स्टेशन है जहां तापमान माइनस 90 डिग्री तक चला जाता है। दुनिया की 90 फीसदी बर्फ यही होती है। बारिश बिल्कुल नहीं होती। यह बर्फीला रेगिस्तान है और हम रेतीले रेगिस्तान थार में हैं। गर्म रेतीला रेगिस्तान। ग्रामीण इस गर्मी को कोसते नहीं, अपनी जीवटता बढ़ाते हैं। बाड़मेर, जैसलमेर के बाशिंदों को कभी त्राहिमाम करते नहीं देखा। वे कहते हैं, दिन और रात की तरह मौसम का भी चक्र है। सूरज की किरणें पृथ्वी को स्पंदित कर रही हैं। तमाम जीवाणु, कीटाणु इस मौसम में पनाह मांगने लगते हैं। इंसान का फर्ज केवल इतना है कि वे आसपास मौजूद पशु-पक्षियों की उपेक्षा न करें । परिंदों के लिए पानी हर घर के आसपास हो। पशुओं के लिए मुश्किल समय है लेकिन उनके भोजन, पानी, का हिस्सा निकालना हमारे संस्कारों में है। इस ऋतु चक्र में प्राणिमात्र पर दया इस पर अमल करके ही हम अपने पर्यावरण को बचा सकते हैं। एक काम बाकी है बारिश से पहले पौधे रोप देने हैं।
बहुत अच्छी जानकारी एक आदर्श पोस्ट |
जवाब देंहटाएंbahut aabhar aap dnon ka
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सन्देश...
जवाब देंहटाएंगर्मी से सभी प्राणिमात्र का हाल बेहाल रहता है