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.और अंत में क्या बचता है

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.और   अंत में क्या बचता है लकड़ी की आदिम कंघी संग ए मरमर की नक्काशीदार प्लेट टेराकोटा से बने कर्णफूल चंद हसीन लम्हों से घिरे खत हैंडमेड पेपर से बनी रंगीन डायरी के नीले लफ्ज़ बचा रहे मौला जो ये बचा रहा बचे रहेंगे तेरे-मेरे  जज़्बात सुर सौरभ और सपने सच ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं सिर्फ तेरी मेरी कहानी है.…

डर्टी पिक्चर्स अब हो जाएंगी गुड

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ऐसे छत्तीस शब्द  केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने सामने रख दिए हैं जो तमाम डर्टी पिक्चर्स को  गुड में बदल देंगे।  मज़े की बात इसलिए भी है क्योंकि जिन गालियों को प्रतिबंधित  किया गया अतीत में वैसी ही फ़िल्में राष्ट्रीय पुरस्कार पा  चुकी हैं।  बोर्ड के नए-नए अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने हाल ही ये सूची जारी की है  हम सब अभिव्यक्त होना चाहते हैं। खुलकर बोलने  में हमारा सुकून छिपा है। हमारा संविधान भी अभिव्यक्ति की आजादी का पक्षधर है, लेकिन इसके साथ भी अश्लीलता से जुड़े कानून भी हैं। जाहिर है, पूरी तरह जाहिर होने के कई खतरे हैं । कुछ अंकुश तो जरूरी हैं। कौन लगाएगा ये अंकुश, सरकार जिन्हें हमने चुना है वो या  हम खुद लेकिन इन सरकारी इकाइयों के नुमाइंदे जब कुछ शब्दों की सूचि जारी कर देते हैं तो हैरानी होती है कि इनमें से कई लफ्ज उन्हीं फिल्मों में खूब हैं, जिन्हें राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड मिल चुका है। द डर्टी पिक्चर, ओंकारा, चांदनी बार, डर, विकी डोनर ऐसी ही फिल्में हैं। अलग-अलग सरकारों के अश्लीलता के पैमाने भी अलग-अलग हैं। ये संविधान से कम अपने निजी एजेंडे से ज्यादा बंधे हैं और उसी मुताबिक बदल