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सत्यमेव जयते के पत्रकार आमिर

जनकनंदिनी सीता, कुंतीपुत्र अर्जुन या फिर गंगापुत्र   भीष्म  और    द्रुपद नंदिनी द्रौपदी  कितनी समरसता है इस वंशावली में। इन व्याख्याओं में ना पड़ते हुए कि पुत्र के साथ मां का और पुत्री के साथ पिता का नाम क्यों है, खुश होने के लिए काफी है कि हम उस परंपरा के वाहक हैं जहां मां का नाम एक उपनाम की तरह नहीं, बल्कि मूल नाम की तरह चलता रहा है। वंश उन्हीं के नाम से आबाद हुए। मां को मान देने वाली संस्कृति का हिस्सा होने के बावजूद ऐसे कौनसे जैविक परिवर्तन के शिकार हम हो गए हैं कि बेटी को कोख में ही मार देने में पारंगत हो गए। विज्ञान का ऐसा घृणित इस्तेमाल। अल्ट्रासॉनिक मशीन को ईजाद करने वाले वैज्ञानिक अगर इस घिनौने पक्ष को सोच लेते तो उनकी रूह कांप जाती। जो मशीन एक स्वस्थ संतान को जन्म देने का सबब है, उसका इस्तेमाल हम मौत देने के लिए कर रहे हैं।  हालत यह हो गयी  कि जहां पश्चिमी देशों में बच्चे का लिंग पहले ही बता दिया जाता है, वहां हमारे यहां इसे प्रतिबंधित करना पड़ा है।  किस्सा जोधपुर का है। रेडियोलॉजिस्ट ने उस नए कपल के बच्चे की जांच कर मुस्कुराते हुए कहा कि पांचवें महीने के हिसाब से