सत्यमेव जयते के पत्रकार आमिर

जनकनंदिनी सीता, कुंतीपुत्र अर्जुन या फिर गंगापुत्र भीष्म और  द्रुपदनंदिनी द्रौपदी  कितनी समरसता है इस वंशावली में। इन व्याख्याओं में ना पड़ते हुए कि पुत्र के साथ मां का और पुत्री के साथ पिता का नाम क्यों है, खुश होने के लिए काफी है कि हम उस परंपरा के वाहक हैं जहां मां का नाम एक उपनाम की तरह नहीं, बल्कि मूल नाम की तरह चलता रहा है। वंश उन्हीं के नाम से आबाद हुए। मां को मान देने वाली संस्कृति का हिस्सा होने के बावजूद ऐसे कौनसे जैविक परिवर्तन के शिकार हम हो गए हैं कि बेटी को कोख में ही मार देने में
पारंगत हो गए। विज्ञान का ऐसा घृणित इस्तेमाल। अल्ट्रासॉनिक मशीन को ईजाद करने वाले वैज्ञानिक अगर इस घिनौने पक्ष को सोच लेते तो उनकी रूह कांप जाती। जो मशीन एक स्वस्थ संतान को जन्म देने का सबब है, उसका इस्तेमाल हम मौत देने के लिए कर रहे हैं।  हालत यह हो गयी  कि जहां पश्चिमी देशों में बच्चे का लिंग पहले ही बता दिया जाता है, वहां हमारे यहां इसे प्रतिबंधित करना पड़ा है। 
किस्सा जोधपुर का है। रेडियोलॉजिस्ट ने उस नए कपल के बच्चे की जांच कर मुस्कुराते हुए कहा कि पांचवें महीने के हिसाब से विकास बिलकुल सामान्य है। पति-पत्नी ने नहीं पूछा कि बेटा है या बेटी। डॉक्टर ने कहा बेटी होगी तो कैसा लगेगा आपको? दोनों ने खुश होते हुए कहा, बहुत अच्छा। वे निश्चिंत थे कि बेटी का ही आगमन होगा, लेकिन जन्म हुआ बेटे का। हैरान माता-पिता समझगए कि डॉक्टर ने यूं ही प्रतिक्रिया लेनी चाही होगी। बहरहाल, स्वस्थ संतान के आगमन को सुनिश्चित करने वाली एक मशीन को हमने हत्यारी बनाकर रख दिया है। सत्यमेव जयते यानी जीत सत्य की ही  होती है। ईसा से भी ढाई सौ साल पहले सम्राट अशोक के कई स्तंभों में यही शब्द  लिखे गए हैं। चार शेरों (नजर केवल तीन आते हैं) के नीचे लिखा सत्यमेव जयते हमारा राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न है जो हमारी मुद्राओं पर भी अंकित है। इन दिनों सत्यमेव जयते के एक ही मायने निकल कर आ रहे हैं, आमिर खान का  टीवी कार्यक्रम। आमिर हूबहू एक पत्रकार की भूमीका में नज़र आए। वैसी ही परिकल्पना वैसा ही शोध  एक समय था जब रविवार की सुबह सड़कों पर अघोषित कर्फ्यू  लग जाया करता था। रामानंद सागर की रामायण और बलदेवराज चौपड़ा के महाभारत धारावाहिक को बच्चे-बूढ़े सब देखा करते थे। सड़कों पर अगर सन्नाटा था तो घर की बैठक में भी कई जोड़ी आंखें चुपचाप स्क्रीन पर लगीं होती। सत्यमेव जयते उस दौर को लौटा लाएगा कहना मुश्किल है, लेकिन मित्रों ने, करीबी रिश्तेदारों ने फोन करके एक-दूसरे को देखने की सलाह दी। वर्ग विशेष जिसने टीवी को बुद्धु बक्सा मानते हुए, हाशिए पर ठेल दिया है, वह भी   थोड़ा चकित नजर आया। हमने कई बार राखी के इन्साफ से लेकर बिग बॉस तक 'डर्टी होते जा रहे टीवी का उल्लेख किया  है। किरण बेदी जरूर आपकी कचहरी लेकर आईं थी, जो इनसान के अपराधी हो जाने का सच बयां करता था। आमिर खान के इस कार्यक्रम में सहजता और सरलता नजर आती है और सूरत बदलने की कोशिश भी। यही है, जो उन्हें खतरों के खिलाड़ी अक्षय कुमार खुद को बिग बॉस मानने वाले सलमान
खान, पांचवीं पास से बहुत तेज लगने वाले शाहरुख खान से अलग करता है। यहां तक की कौन बनेगा करोड़पति के अमिताभ बच्चन से भी सत्यमेव जयते इसलिए अलग हो जाता है क्योंकि यह हमारे सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है। बुरा लग सकता है कि सामाजिक बुराई का पहला नोटिस राजस्थान सरकार को मिला है, लेकिन यह अच्छे संकेत है कि हम कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ पहले ही उठ खड़े हुए हैं। जयपुर, अलवर, भीलवाड़ा के कई चेहरे अपनी बात कहते नजर आए। हमने अपने ज़ख्म  देख लिए हैं। जोधपुर का ही वो अस्पताल था जहां संक्रमित बोतलें चढ़ा दिए जाने के कारण उनतीस से भी ज्यादा नव प्रसूताओं की जान चली गई। यही वह शहर था जहां एक परिवार यह स्वीकार नहीं पाया कि उनके यहां बेटी का जन्म हुआ है। अपने बहुत निकट का ही उदाहरण। हाल ही एक मां ने दूसरी बेटी को जन्म दिया। उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं थी, लेकिन मिलने-जानने वालों का एक ही प्रश्न, जांच नहीं कराई थी क्या ? आजकल तीसरा बच्चा करता ही कौन है, जांच करा लेनी थी। यह नजरिया हमारे भीतर पैबस्त हो चला है। इसके ध्वस्त होने की दरकार है। तेरह मई मदर्स डे है। इस दिन यही शपथ हो। बीते इतवार जरूर देखनेवालों की आँखें नम हुईं, गले में कुछ अटक गया, अनचाहे ही हाथ कभी कान को तो कभी सर को छू गए। वक्त के साथ अगर सत्यमेव जयते के मुद्दे समाज को झकझोरने वाले
रहे तो यकीनन हम एक बेहतर समाज रचने की तरफ होंगे। सामाजिक प्रतिबद्धताएं भी रामायण की तरह  पूजाभाव
जैसी लेनी होंगी

टिप्पणियाँ

  1. इसे हत्यारी मशीन ही कहा जायेगा...

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  2. वाकई बहुत अच्छा लिखा है बस...असर होना चाहिए...सत्य मेव जयते ..का ...

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  3. इसका असर लोगो और समाज पर पड़े ताकि कुछ बदलाव आये . अच्छी पोस्ट के लिए बधाई !

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  4. गंगा पुत्र भीम नहीं भीष्‍म

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  5. bahut badiya sam-samyik chintan-manan bhari prastuti..
    bahut badiya likha hai..

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  6. कल 19/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी http://nayi-purani-halchal.blogspot.in (यशोदा अग्रवाल जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  7. ऐसे प्रोग्राम समाज बदलने में सहायक हो सकते हैं बशर्ते समाज उन्हे देखकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री न मान ले, जागरूक भी हो जाऐ।

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