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मिनी स्कर्ट से भी मिनी सोच

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'विदेशी पर्यटकों को एयरपोर्ट पर एक वेलकम किट दी जाती है। इसमें एक कार्ड पर €या करें और €या न करें की जानकारी होती है। हमने बताया है कि छोटी जगहों पर रातवात में अकेले न निकलें, स्कर्ट न पहनें।' केंद्रीय पर्यटन मंत्री ने अपने इस बयान के साथ आगरा में विदेशी पर्यटकों की सहायता के लिए एक हेल्पलाइन नंबर भी 1363 भी जारी किया था लेकिन बात केवल स्कर्ट पर सिमट कर रह गई। रहना गलत भी नहीं €क्योंकि फर्ज कीजिए एक भारतीय सैलानी जो इटली के किसी ऐतिहासिक चर्च का दौरा कर रही हो और उसने साड़ी या शलवार (सलवार नहीं) कमीज पहन रखी हो और उन्हें कोई नसीहत दे कि, अपने कपड़े बदलो और स्कर्ट या कुछ और पहन कर आओ। क्या यह फरमान तकलीफ देने वाला नहीं होगा? आप कहेंगे ऐसा €क्यों किसी को कहना चाहिए? पूरे कपड़े पहनना तो शालीनता है। ऐसा नहीं है। यह हमारी सोच है। हमने यह मानक तय कर लिया है और इसे ही परम सत्य मान लिया है और तो और इसे ही अपनी संस्कृति तक करार दे दिया है। भारत जैसे विशाल देश की संस्कृति में €क्या  गोवा, सिक्किम  या मणिपुर शामिल नहीं है €क्या  वहां का पहनावा हमारा पहनावा नहीं है? €क्या हम यहां के सैल

नकली विलाप बंद करो रक्षा सूत्र बांधो

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कल रक्षाबंधन है। ऐसा लगता है जैसे हमारे पुरखों ने इस त्योहार के साथ ही बंधुत्व भाव की ऐसी नींव रख दी थी कि दुनिया में हर कहीं संतुलन-सा कायम रहे। रक्षा-सूत्र बांधकर आप हर उस जीवन की रक्षा कर सकते हैं जिसे अधिक तवज्जो या महत्व की जरूरत है। कभी-कभार विचार आता है कि तुलसी का जो मान हम करते हैं या केला, नारियल, पंचामृत जो हमारे प्रसाद का हिस्सा हैं, या जो सोमवार या गुरुवार को एक या दो दिन ईश्वर के नाम पर व्रत करने की जो परिपाटी है, ये सब हमारे शरीर और जीवन को बेहतर बनाने की ही कोशिश है। एक दिन के उपवास में हम इतना पानी  पी जाते हैं कि वह डी-टॉक्सिफिकेशन का काम कर देता है। व्रत में फलों का सेवन कहीं ऊर्जा को कम नहीं होने देता और खनिज और विटामिन की कमी को पूरा कर देता है। गाय भी इसी परंपरा के लिहाज से देश में पूजी जाती है। हमारे तो ईश्वर ही गौ-पालक हैं। कृ ष्ण की वंशी पर नंदन-वन की गाय इकट्ठी होकर जिस गौधुली-बेला को रचती है, वह इस चौपाए को नई आभा देता है । ऐसा क्यों है भला? क्योंकि गाय ने उस युग में मानव को जिंदा रहने का साहस दिया है जब उसके पास कुछ नहीं था। गाय का दूध मानव शिशु के  लि

go girls go medals are waiting for u

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 दुनिया का सबसे बड़ा खेल उत्सव कल  तड़के  सुबह ब्राजील की राजधानी रियो डी जेनेरियो में शुरू होने जा  रहा है    । यह सचमुच अच्छा वक्त है क्योंकि पुराने वक्त में तो दमखम दिखाने का एकाधिकार केवल पुरुषों के पास था। शरीर को साधने का कोई मौका स्त्री के पास नहीं था। खुद को सजाने और खूबसूरत दिखने का प्रशिक्षण तो जाने -अनजाने हर लड़की  को उसकी पुरानी पीढ़ी दे देती थी लेकिन शरीर से पसीना बहाना, इस तपस्या में खुद को ढालना और फिर खरा सोना बन जाने का हुनर केवल इक्कीसवीं सदी की स्त्री में दिखता है। उजले चेहरे और तपी हुई त्वचा को देखने की आदत हमारी पीढ़ी को 1982 के दिल्ली, एशियाड से मिली। संयोग से उन्हीं दिनों शहरों को टीवी का तोहफा भी मिला था और एशियाई खेल इस पर सीधे प्रसारित हुए थे। उडऩपरी पी टी उषा का सौ मीटर और दो सौ मीटर में चांदी का पदक जीतना। वो चांद राम का पैदल दौड़ में पहले आना । ये मंजर देख हम बच्चों की आंखें सपनों से भर जाती। भारत-पाकिस्तान के हॉकी फाइनल मैच को देखने घर के बरामदे तक  में तिल धरने की जगह ना थी। यह जोश जुनून खेल देता है।      2012 के लंदन ओलंपिक्स में जब मेरी कोम और साइ

मंच पर ये रंग दृष्टिहीन बच्चों ने खिलाए थे

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बीते रविवार की शाम जो देखा वह ना देख पानेवालों का ऐसा प्रयास था जो आने वाले कई-कई रविवारों में रवि (सूर्य) जैसी ऊर्जा भरता रहेगा। यह एक नाटक था और मंच पर मौजूद बच्चे दृष्टिहीन थे। मंच पर ऐसे रंग खिले  कि लगा हम आंखवालों ने कभी मन की आंखें तो खोली ही नहीं बस केवल स्थूल आंखों से सबकुछ देखते रहे हैं। इनके पास तो अनंत की आंखें हैं और वो सब महसूस कर लेती हैं आंख वाले नहीं कर पाते। ये अनंत की आंखें रंग आकार से परे इतना गहरे झांक लेती हैं कि वे बेहतर मालूम होती हैं। शायद लेखक-निर्देशक भारत रत्न भार्गव  उनकी इसी शक्ति से दर्शक को रू-ब-रू कराना चाहते थे। एक ज्योतिहीन बच्चे का मन चित्रकारी करने का हो और वह कुछ चित्रित करना चाहे तो आप कैसे उसका परिचय आकार, रंग और दुनिया में बिखरे सौंदर्य से कराएंगे। एक बालक की यही चाह है और इस चाह को पूरा करते हैं उसके गुरु जिन्हें वह हर दृष्य में चरणों में सिर झुकाकर प्रणाम करता है। वे उसका  आकार और रंग से तो परिचय कराते ही साथ ही यह भी बताते हैं कि चित्रकार स्थूल से परे देखता है। वे बताते हैं कि जिस पोदीने की खुशबू को तुम जानते हो उसकी पत्तियों का रंग हरा है,