नकली विलाप बंद करो रक्षा सूत्र बांधो


कल रक्षाबंधन है। ऐसा लगता है जैसे हमारे पुरखों ने इस त्योहार के साथ ही बंधुत्व भाव की ऐसी नींव रख दी थी कि दुनिया में हर कहीं संतुलन-सा कायम रहे। रक्षा-सूत्र बांधकर आप हर उस जीवन की रक्षा कर सकते हैं जिसे अधिक तवज्जो या महत्व की जरूरत है। कभी-कभार विचार आता है कि तुलसी का जो मान हम करते हैं या केला, नारियल, पंचामृत जो हमारे प्रसाद का हिस्सा हैं, या जो सोमवार या गुरुवार को एक या दो दिन ईश्वर के नाम पर व्रत करने की जो परिपाटी है, ये सब हमारे शरीर और जीवन को बेहतर बनाने की ही कोशिश है। एक दिन के उपवास में हम इतना पानी  पी जाते हैं कि वह डी-टॉक्सिफिकेशन का काम कर देता है। व्रत में फलों का सेवन कहीं ऊर्जा को कम नहीं होने देता
और खनिज और विटामिन की कमी को पूरा कर देता है।
गाय भी इसी परंपरा के लिहाज से देश में पूजी जाती है। हमारे तो ईश्वर ही गौ-पालक हैं। कृ ष्ण की वंशी पर नंदन-वन की गाय इकट्ठी होकर जिस गौधुली-बेला को रचती है, वह इस चौपाए को नई आभा देता है । ऐसा क्यों है भला? क्योंकि गाय ने उस युग में मानव को जिंदा रहने का साहस दिया है जब उसके पास कुछ नहीं था। गाय का दूध मानव शिशु के  लिए तो उसके  कंडे ईंधन के लिए और उससे लिपे घर आज के पक्के फर्श का विकल्प थे। गोबर से ही बनी खाद उस जमीन को फिर ऊपजाउ बना देती जो एक-दो फसल के बाद किसी काम की नहीं रह जाती। जब जमीन और जिंदगी दोनों ही गाय पर इस कदर आश्रित हो तो फिर घर का पहला निवाला, पहला तिलक किसके लिए होगा?
आज वही गाय सड़कों पर प्लास्टिक की थैलियां खाने  को मजबूर है, तिलक और चारा उसे दिन विशेष को ही नसीब होता है। गांवों में निर्धारित गौचर की भूमि हम चर गए, गौशालाओं में हमने उन्हें पलने के लिए नहीं मरने के लिए छोड़ा। इन सबके साथ हमने मगरमच्छ के आंसू बहाने और सीख लिए। सब इन नकली आंसुओं के साथ विलाप कर रहे हैं। गाय की यह दशा इन्सानियत के पतन का  पता देती है। उसके नाम पर देश को बांटने में हमें रत्ती भर शर्म नहीं आती। गाय से प्रेम करने वाला किसी इन्सान का कत्ल कैसे कर सकता है? यह शक क्यों कि किसी के ट्रक, किसी के फ्रिज किसी की टौकरी में वही है।  ...और जो इन शक करने वालों के खिलाफ कोई बयान आता है तो सब फिर उसी पर  हावी होने लगतें हैं।
दरअसल हमारी अपनी नफरत और भय ने  इन अकारणों पर जोर देने के लिए मजबूर किया है जबकि हदीस में ही लिखा है कि गाय के दूध में शफा है, मक्खन में दवा और गोश्त में बीमारी है। हजरत मोहम्मद के हवाले से भी यही बात कही गई है कि ऊपरवाले ने हर बीमारी की दवा नाजिल फरमाई है बस गाय का दूध पीया करो क्योंकि ये हर किस्म के दरख्तों से चरती है। 
जाहिर है गाय के गुणों ने इसे वंदनीय बनाया है और हमारे अवगुण इस बेबस प्राणी को  नहीं बचा पा रहे हैं। क्यों ना इस रक्षाबंधन पर गौरक्षा का वचन लें। हर भाई-बहन यह वचन ले कि पॉलीथीन का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करेंगे। उन्हें सड़कों पर खुला नहीं छोड़ेंगे। हिंगोनिया गौशाला के पशु चिकित्सक बताते हैं कि कई गाय ऐसी आती हैं जिनका पूरा पेट इन थैलियों से भरा रहता है और फिर इन्हें बचा पाना नामुमकिन होता है। लोगों से मार-पीट कर नहीं प्लास्टिक थैलियों को ना कह कर गाय की हिफाजत की जा सकती है। बछ बारस एक दिन नहीं बारह महीने मनानी होगी

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