चल गया लड़के ज़ोहरान का ज़ोर
चौंतीस साल की छोटी-सी उम्र में न्यूयॉर्क शहर के मेयर का चुनाव जीतना और वह भी उस पारम्परिक शैली के साथ जिसे बड़े और बूढ़े नेताओं ने पुराना तरीका मान कूड़ेदान में फेंक दिया था । इस जीत ने बताया है कि लोकतंत्र, लोक से जुड़ने का ही नाम है और इससे जुड़ी सियासत ही हमेशा नई रहती है। लोगों के जीवन को आसान बनाना ही राजनीति का पहला फ़र्ज़ है। ध्रुवीकरण, नफ़रत और बड़े कॉर्पोरेट्स की सियासत जनता की पसंद नहीं है। उस लिहाज़ से न्यूयोर्क शहर की यह जीत इसलिए भी ऐतिहासिक है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के आज़ादी के कहे शब्द यहां भी गूंजे। ज़ोहरान ममदानी zohran madani ने विक्ट्री स्पीच में वे शब्द दोहराते हुए कहा - "इतिहास में ऐसे क्षण बहुत कम आते हैं जब हम पुराने से नए की ओर क़दम बढ़ाते हैं। जब एक युग समाप्त होता है और एक राष्ट्र की आत्मा को अभिव्यक्ति मिलती है। आज रात हम पुराने से नए की ओर क़दम बढ़ा रहे हैं। " यह महज संयोग ही है कि 34 की उम्र में ही नेहरू भी इलाहाबाद शहर के मेयर बने थे।
दुनिया के सबसे पूंजीवादी शहर न्यूयॉर्क में समाजवाद की अवधारणा को ज़िंदा कर ख़ुद को डेमोक्रेट सोशलिस्ट बताना बहुत नया था। उन पर कम्युनिस्ट होने का इलज़ाम भी लगा जो सोवियत संघ के ज़माने से अमेरिका में किसी गाली से कम नहीं है। 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' के लुभावने नारे के बीच न्यूयॉर्क शहर को जीने के लिए सहज और अफोर्डेबल बनाने का जूनून काम कर गया था। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तो इतने ख़फ़ा थे कि उन्होंने शहर को संघीय बजट से एक पैसा भी ना देने की धमकी तक दे डाली थी। खीज में ट्रंप ने डेमोक्रेटिक पार्टी के बाग़ी प्रत्याशी को भी समर्थन दिया।अप्रवासियों को संदेह की निगाहों से देखने, उन्हें अमेरिकंस के जॉब्स खा जाने वाले बाहरी और अपराधों के लिए दोषी समझे जाने के बीच, 34 साल के ज़ोहरान पर ऐसा यकीन एक नई ही कहानी सुनाता है। नब्बे लाख की आबादी वाला शहर न्यूयॉर्क जिसकी जीडीपी को जोड़ा जाए तो वह दुनिया का आठवीं बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। शहर जहां संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय और अमेरिकी वित्त बाज़ार को थामने वाली वॉल स्ट्रीट है, वहां एक भारतीय मूल के लड़के का मेयर चुना जाना इसलिए भी नया है क्योंकि उसने चुनाव के नतीजे ही नहीं बदले चुनाव लड़ने की शैली में भी नए रंग भर दिए। उनके वादों में कम कीमत पर रहने के लिए घर ,सस्ती बसें, सस्ता राशन और शून्य ख़र्च पर बच्चों की देखभाल के वादे थे क्योंकि अमीर शहर होने के बावजूद यहां बुनियादी सुविधाएं बेहद महंगी हैं। बेशक कोई नागरिक इनके साथ ही अपना श्रेष्ठ दे सकता है, इनसे जूझते हुए नहीं। यही कारण रहा कि अमीरों पर ज़्यादा टैक्स लादने की साफ़गोई भी नतीजों को बदल नहीं पाई। उन पर आतंकी होने का ठप्पा भी लगा क्योंकि उन्होंने कह दिया था इजराइल के प्रधानमंत्री को न्यूयॉर्क में घुसने नहीं देंगे क्योंकि वे फिलिस्तीन में नरसंहार के लिए ज़िम्मेदार हैं। तथ्य यह भी है कि न्यूयॉर्क के अधिकांश उद्योगपति यहूदी हैं।
देखने में ममदानी का चुनावी अभियान भारत जैसा ही लगता है क्योंकि कभी हमारे यहां भी देश की विविधता को अपनी शक्ति बताते हुए प्रचार ज़ोर पकड़ता था। अलग-अलग रूप-रंग के लोग,अलग वेशभूषा ,अलग यकीन के साथ ही ममदानी के अभियानों की तस्वीरों में पूरी दुनिया से आकर बसे न्यूयॉर्कर थे। तभी तो ज़ोहरान अपने प्रचार में कहते थे -"न्यूयॉर्क अप्रवासियों का शहर रहा है और इसका नेतृत्व भी एक अप्रवासी ही करेगा।" उल्लेखनीय है कि अपनी पहचान को लेकर वे कहीं भी रक्षात्मक नहीं रहे जबकि उन्हें इस्लामोफ़ोबिक अवधारणा का पूरा नुकसान हो सकता था। उन्होंने पहचान को स्वीकारते हुए चुनाव लड़ा। उनकी मां मीरा नायर को कौन भूल सकता है। हमारी पीढ़ी जिस दौर में बड़ी हो रही थी तब मीरा नायर की फिल्मों की खूब चर्चा होती थी। सलाम बॉम्बे,मिसिसिपी मसाला और मानसून वेडिंग उनकी बेहतरीन फ़िल्में हैं। सलमान रुश्दी के उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्र्न पर आधारित सलाम बॉम्बे को ऑस्कर नामांकन भी मिला था। शायद यह मीरा नायर meera nairका ही असर है कि ज़ोहरान के चुनावी अभियान की पटकथा भी चुस्त और प्रभावी थी। वे सड़कों परलगातार लोगों से मिलते थे। गुरद्वारों, चर्च, बस में भी वे बात करते। वे यह यकीन दिलाने में क़ामयाब रहे कि अगर वे जीते तो एक न्यूयॉर्कर की तकलीफ़ आसान होगी । ज़ोहरान की जीत के बाद उनकी माँ मीरा ने फ़ख़्र से कहा कहा कि इसे मैंने प्रोड्यूस किया है। ज़ोहरान के पिता महमूद ममदानी युगांडा के हैं और कोलंबिया विश्वविद्यालय के स्कॉलर और एक्टिविस्ट रहे हैं।
दुनिया के कौने-कौने से लोग न्यूयॉर्क आते हैं। वे अपनों सपनों को लेकर पहले इस शहर के मोह में खिंचते हैं और फिर दिन-रात इसी को जीने लगते हैं। मशहूर फ़्रांसिसी लेखिका और दार्शनिक सिमोन द बुवा ने कभी कहा था -"न्यूयॉर्क की हवाओं में कुछ है जो नींद को बेमायने कर देता है।" ज़ाहिर है यह शहर सपनों के लिए रातों की कीमत देने के लिए प्रेरित करता है। तभी एक जापानी कलाकार और फ़ोटोग्राफर अपने फ्रेंच पति और नन्हें बच्चे के साथ इस शहर में घूमती है और न्यूयॉर्क के नाम से ही अपना विडिओ ब्लॉग भी बनाती है। यह व्लॉग ना केवल इस शहर की कला, खान-पान ,संगीत और लाइब्रेरी को उसके नज़रिये से देखने की कोशिश लगता है बल्कि यह भी कि बाहर से आकर लोग किस क़दर शहर को जीने लगते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि न्यूयॉर्क कभी उन्हें जज नहीं करता। वाक़ई ज़ोहरान ने इतिहास लिखा है। वे हिंदी, पंजाबी, उर्दू भी धड़ल्ले से बोलते हैं। अपने भाषण में वे कहते थे -"यह आपका शहर है और यह लोकतंत्र भी आपका है।" यही वजह रही कि साउथ एशियन आंटियां (यही नाम दिया है ज़ोहरान ने ) खुद ब ख़ुद उनके कैंपेन में शामिल होती चली गईं। तभी बुनकरों की संस्था दस्तकार की संस्थापक और डिज़ाइनर लैला तैयबजी अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखती हैं कि मैं भी एक दिल्ली में रहने वाली आंटी हूं और ज़ोहरान की जीत पर हैरान और खुश हूं । वह भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था में उम्मीद है। वैसे लैला ज़ोहरान की मां मीरा को किशोरवय से जानती हैं जब मीरा और उनका छोटा भाई बेरी जॉन के नाटकों में हिस्सा लेते थे।
बीते 50 सालों में पहली बार हुआ है कि कोई दक्षिण एशियाई मूल का अप्रवासी मेयर बना हो। वह भी तब जब उनकी खुद की पार्टी ने उन्हें खुलकर समर्थन नहीं दिया,पार्टी के बाग़ी ने उनके खिलाफ चुनाव लड़ा जो हार गया। तीसरे स्थान पर ट्रंप की पार्टी का उम्मीदवार रहा। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा जो खुद ऐसी पृष्ठभूमि से आते हैं, उनका भी कोई खुला समर्थन ज़ोहरान को नहीं मिला। उनकी अपनी पार्टी ही ट्रंप की ध्रुवीकृत राजनीति और कॉर्पोरेट गठजोड़ का कोई तोड़ नहीं ढूंढ पा रही थी कि ज़ोहरान ने सब कुछ बदल दिया। वर्जीनिया में ग़ज़ाला हाशमी जो चार साल की उम्र में हैदराबाद से अमेरिका आईं थीं, उन्होंने ट्रंप की पार्टी के उम्मीदवार को हरा कर लेफ्टिंनेंट गवर्नर का चुनाव जीत लिया। सिनसिनाटी में भी भातीय मूल के आफताब परवाल ने अमेरिकी उपराष्ट्रपति के कजिन को हराकर मेयर का चुनाव जीत लिया है। सच है कि इन चुनावों ने ट्रंप की डर वाली सियासत को करारा जवाब दिया है और भारतीय मूल इस जीत के केंद्र में रहा है। शहर का मिजाज़ मायने रखता है और उम्मीद की जानी चाहिए कि 'स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी' की तरह अंधेरी राहों को मशाल की रौशनी भी दिखाता है।



व्वाहहहह
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ
सादर वंदन
धन्यवाद
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