आपदा में लाल -लाल आंखें दिखाने का अवसर


बीते सप्ताह चीनी अधिकारियों ने भारतीय महिला के साथ जो दुर्व्यवहार किया वैसा दो राष्ट्रों के बीच अंतर्राष्ट्रीय कायदे -क़ानून के हिसाब से भी दुर्लभ है। यह बेहद दुःखद, अजीब और हैरान कर देने वाला है कि एक भारतीय महिला को चीन ने अपनी सरज़मीं पर अपमानित किया। सबसे पुरानी सभ्यता के हवाले से भी यह एक शर्मनाक हरकत थी कि आप महिला यात्री के सामने उनका नाम तेज़ी से पुकारते हुए आएं और उन्हें कतार से अलग कर लगातार 18 घंटे तक निगरानी में रखें। उस दिन  शंघाई के पुडोंग हवाई अड्डे पर जो  भी हुआ यह तमाम देशों और उनके अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों के लिए चेतावनी है कि अब देश अपने छोटे-बड़े विवाद यात्रियों को इस तरह सता कर  निपटाएंगे। चीन ने अपने ही 24 घंटे के ट्रांजिट ट्रेवल वीज़ा का उल्लंघन किया है। समझना क्या मुश्किल है कि एक पढ़ी-लिखी आत्मनिर्भर महिला से  18 घंटे तक पूछताछ की गई, उसे भोजन,आराम  और आने-जाने से भी वंचित रखा गया और आगे की यात्रा भी नहीं करने दी गई। होना तो यह चाहिए कि पूरी दुनिया इस घटना की तीखी निंदा करे ताकि फिर कोई सीमा  विवाद हवाई अड्डों पर ही सुलझाने की नाकाम कोशिश ना करे। यह तो फिर कोई विवाद ही नहीं,दुनिया मानती है कि अरुणचल भारत का ही हिस्सा है। बेशक भारत ने कड़े शब्दों में चीन से बातचीत की लेकिन इस घटना ने चेताया है कि भले चीन जैसी शक्ति से सीधे मुक़ाबला मुश्किल है लेकिन कूटनीति पर पुनर्विचार भी ज़रूरी है। 

चीन ने भारतीय नागरिक प्रेमा वांगियोम थोंगडोक को परेशान किया क्योंकि उसके पासपोर्ट में जन्म के स्थान पर अरुणाचल प्रदेश लिखा हुआ था। चीनी प्रवर्तन अधिकारी ने उसकी आगे की यात्रा यह कह कर रोक दी कि तुम तो अरुणाचल की हो जो चीन का हिस्सा है और तुम्हारे पास तो चीनी पासपोर्ट होना चाहिए। प्रेमा लंदन से जापान जा रहीं थीं जहां  तीन घंटे का शंघाई हवाई अड्डे पर 'ले ओवर' था। पिछले 14  सालों से  लंदन में फाइनेंस सेक्टर में जॉब कर रहीं प्रेमा थोंगडोक  को 18 घंटे तक सताया गया और उन्हें जापान की यात्रा भी नहीं करने दी गई। इस बीच खाने-टहलने देने का  बुनियादी दायित्व भी नहीं निभाया गया मानो वे कोई यात्री नहीं, अपराधी हों । चीन के शंघाई हवाई आड़े पर कुछ प्रवर्तन अधिकारी प्रेमा का नाम लेकर इंडिया इंडिया करते हुए दाख़िल हुए और उन्हें अलग करके कई तरह के सवाल पूछे। उन्हें परेशान करने की यह अवधि 18 घंटे के पार भी जा सकती थी यदि प्रेमा ने अपने लंदन स्थित एक मित्र को फ़ोन ना किया होता। उन्होंने  फिर भारतिय दूतावास  से संपर्क किया और भारतीय दख़ल के बाद हालात संभले। आश्चर्य इस बात का है कि प्रेमा बज़रिये  चीन पिछले माह अक्टूबर में  भी जापान की यात्रा कर चुकी हैं, तब ऐसी कोई परेशानी नहीं आई।अब क्या यह चीन की नई शरारत है। चीन इस दुर्व्यवहार को अधिकारियों की ग़लतफ़हमी कह कर टाल सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इससे उलट चीन की  विदेशी मामलों की चीनी प्रवक्ता यह कहने से नहीं चूकी  कि ज़ंगनान  (चीन अरुणाचल को इसी नाम से पुकारता है )चीन का ही हिस्सा है जिसे भारत अरुणाचल प्रदेश कहता है, भारत ने अपना गैर कानूनी ढंग से कब्ज़ा जमा  रखा है और चीन उसे मान्यता नहीं देता। 


प्रवक्ता के  कथन का कि चीन अवैध तौर पर भारत द्वारा बसाए तथाकथित "अरुणाचल प्रदेश" को मान्यता नहीं देता का करारा जवाब स्वयं प्रेमा ने ही दिया है कि अरुणाचल भारत का ही हिस्सा है,हमारे पास वहीं का मतदाता पत्र और पासपोर्ट  है और हमें खुद के भारतीय नागरिक होने पर गर्व है। प्रेमा कहती हैं- "मैं 58 देशों की यात्रा कर चुकी हूं और मैंने भारतीय पासपोर्ट का ही इस्तेमाल किया है। ये एक वैध दस्तावेज़ है, लेकिन चीन में ऐसा नहीं है।" अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा  खांडू ने भी कहा है कि  "वैध भारतीय पासपोर्ट होने के बावजूद उन्हें अपमानित किया गया, उनका मज़ाक उड़ाया गया, जो परेशान करने वाला है। अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और हमेशा रहेगा। जो कहा गया वो बेबुनियाद और आपत्तिजनक है।  इस तरह का व्यवहार अंतरराष्ट्रीय मानकों का उल्लंघन है और हमारे नागरिकों की गरिमा का अपमान है।"  हैरानी और अफ़सोस की बात है कि जब दोनों देशों के बीच संबंध सुधरने के प्रयास हो रहे थे, चीन ने सायास ऐसा क्यों किया? क्या अतीत में कभी ऐसा हुआ है ?


इस ख़बर और उसके बाद की गतिविधियों पर दुनिया  की निगाह भी लगातार बनी हुई है। ख़बरों में इस बात के संकेत हैं कि विश्व के सबसे ज़्यादा आबादी वाले दो देशों की सीमा जो कुछ महीनों से शांत थी, वहां फिर तनाव गहरा गया है। भारत ने चीन से लगती सीमा पर चौकसी  बढ़ा दी है और ऐसा तब हुआ है जब चीन-भारत के बीच कोरोना के बाद से बंद हुई उड़ाने फिर सामान्य हो गईं थीं ,चीनी एप्स पर लगे प्रतिबंध ख़ुल गए थे लेकिन चीन ने फिर अपने विस्तारवादी चरित्र की पोल खोल दी है। ऊंचे अमेरिकी टैरिफ की चपेट में आए ये दो देश थोड़े क़रीब आए ही थे कि चीन का यह संदेश संदेह करने पर मजबूर कर रहा है। 2005 से चीन ने अरुणाचल प्रदेश  के यात्रियों के लिए चीन पहुंचने पर ख़ास वीजा  जारी करने की नई नीति लागू की है। शेष भारतीय यात्रियों के पासपोर्ट पर केवल ठप्पा लगाया जाता है। भारत ने कभी भी चीन की इस नीति को स्वीकार नहीं किया। 2013 में विश्व तीरंदाजी प्रतिस्पर्धा में अरुणाचल के दो तीरंदाजों को इस तरह का स्टेपल्ड वीजा जारी किया था ,भारत ने उन्हें वहां भेजा ही नहीं। साल 2023 की जुलाई  में यूनिवर्सिटी खेलों में चीन ने फिर अरुणाचल के खिलाड़ियों  के लिए अलग वीजा जारी किया,नतीजतन पूरी वुशु टीम ही चीन नहीं गई। ये तीन खिलाड़ी फिर सितंबर 2023 में एशियाई प्रतोयोगिता में भी इसी वजह से भाग नहीं ले पाए। बेशक शुरुआत से ही भारत, चीन की इस नीति का सख़्त विरोध करता आ रहा है और उसका तरीका भी काफी गरिमापूर्ण रहा है। 

इतिहास में झांखने पर हेनरी मैकमोहन की खिंची रेखा है जिसे चीन कभी मान नहीं पाया जबकि नैतिक रूप से भारत का वर्चस्व मज़बूत दिखाई देता है। शिमला में 1914 में तिब्बत,चीन और भारत के बीच ब्रिटिश शासक ने एक समझौते के तहत सीमा रेखा खींची थी लेकिन चीन ने दस्तख़त नहीं किये। इस खुन्नस के बाद उसने तिब्बत पर 1951 में हमला भी किया जिसके परिणाम स्वरूप कई तिब्बतवासी आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा समेत भारत में प्रवेश कर गए और आज भी सम्मान से रहते हैं। भारत की आज़ादी के बाद से ही चीन सीमा का मुद्दा उठाता आया है। दशकों तक वह अरुणाचल के एक हिस्से तवांग  का ही नाम लेता था लेकिन अब उसके समूचे अरुणाचल प्रदेश का नाम लेना शुरू कर दिया है। उसकी एक धमकी के बाद दलाई लामा ने भी वहां की यात्रा रद्द कर दी थी। तवांग  में भारत का सबसे विशाल बौद्ध मंदिर है। 2012 में शी जिन पिंग के सत्ता में आने के बाद यह ज़ोरआजमाइश और बढ़ी है। दोनों देशों के बीच 3,500 किलोमीटर  लंबी सीमा है। 1962 के युद्ध में भी चीन ने सीमाएं बदलने की  ही कोशिश की थी।अक्टूबर 1975 में भी तिब्बत और अरुणाचल को जोड़ने वाले एक हिस्से में  झड़प हुई तब चार भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। 2020 में चीन की विस्तारवादी नीति का शिकार लद्दाख हुआ था जहां हमारे 20 सैनिक आमने-सामने की मुठभेड़ में शहीद हुए। फिर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी चीन ने पाकिस्तान की मदद करते हुए कई नए हथियारों का प्रयोग किया। बांग्लादेश भी चीन और पाकिस्तान के करीब जाता हुआ लग रहा है। ये सब बड़ी आपदाएं हैं जिनमें अवसर ढूंढ़कर लाल-लाल आंखें दिखाने का यही सही वक्त है। 

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