तीसरा तेरह साल बाद

शाहरुख खान और गौरी खान के घर तीसरी संतान अब्राहम का आगमन हुआ है। यह उनका सरोगेट बेबी है यानी जैविक रूप से वे दोनों ही बच्चे के माता-पिता हैं, लेकिन उसे जन्म देने वाली यानी नौ माह कोख में रखने वाली मां कोई और है। इस मामले में सरोगेट मां की भूमिका गौरी की भाभी नमिता छिब्बर ने अदा की है। बच्चे का जन्म समय से दो माह पहले ही हो गया और उसे मुंबई के प्रमुख अस्पताल की इंटेसिव केअर युनिट में रखना पड़ा। पूरी देखरेख डॉ. इंदिरा हिंदुजा की रही, जिन्होंने १९८६ में   देश के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म करवाया था। शाहरुख-गौरी के दो बच्चे पहले ही हैं। बेटा आर्यन पंद्रह साल का है और बेटी सुहाना तेरह साल की। शाहरुख पर इलजाम है कि उन्होंने अपने तीसरे बेटे का लिंग परीक्षण पहले ही करा लिया था।
अभिनेता शाहरुख से जब पत्रकार इस मसले पर बात करना चाहते हैं, तो वे चुप्पी साध लेते हैं और उन्हें अब्राहम की बजाय अपनी नई फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस के बारे में बात करना ज्यादा सुहाता है।
बहरहाल, शाहरुख खान के निजी मसलों पर न्यायाधीश बनने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन सवाल उठता है कि ऐसे फैसले आखिर उनके चाहने वालों को क्या संदेश देते हैं। माता-पिता, एक बेटा और बेटी शायद यही अवधारणा है पूरे परिवार की। दो बेटे या दो बेटियों वाले परिवार भी उतने ही खुशहाल हो सकते हैं, लेकिन अगर कोई जोड़ा दोनों को पालने का सुख पाना चाहता है, तो यहां वह भी पूरा होता था। सैंतालिस बरस के शाहरुख लिंग परीक्षण के बाद तीसरी संतान पैदा करते हैं। वे किसी अनाथ बच्चे को गोद नहीं लेते। ठीक वैसे ही सोचते हुए लगते हैं, जैसे कोई धनी  व्यवसाई अपने अम्पायर को संभालने के लिए खुद का वारिस चाहता हो। वह भी बेटा। आज जब देश में आबादी सबसे गंभीर चुनौती बनकर सामने आ रही है, वहीं हमारे स्थापित कलाकार तीसरे बच्चे का संदेश देते हैं। हो सकता है की आप निजी टूर पर कई बच्चों  पलने की कुव्वत रखते हों लेकिन संसाधनों को बढ़ने की क्षमता तो  आप में नहीं है न ?
कभी-कभार लगता है कि हमारे ये कथित हीरो इस बात से बेखबर हैं कि उनके किए-धरे को उनके प्रश्संक देखते हैं। अमिताभ बच्चन अपनी होने वाली बहू की शादी पहले एक पेड़ से कराते हैं। यह उनका अनहोनी टालने का एक प्रयोजन होता है। फिर पोता होगा या पोती के संदर्भ में उनकी सारी प्रतिक्रियाएं पोते को केंद्र में रखकर ही आती हैं। हमारे देश में जहां आज भी लड़कियां गर्भ में ही गिरा दी जाती हैं, वहां ये स्टार्स अपने कद का ध्यान रखते हुए संयत नहीं हो सकते? 
          एक अठारह साल की लड़की सौम्या मिली थी पिछले दिनों। कह रही थी मैंने आमिर खान के सत्यमेव जयते का हर एपिसोड  देखा। सभी मुद्दे जरूरी थे, लेकिन  जब वे अंतरधार्मिक प्रेम के मुद्दे को लेकर आए, तो मैं समझ ही नहीं पाई कि मैं किसे ध्यान में रखकर उनकी बात समझूं। उनकी पहली पत्नी रीना को लेकर या दूसरी किरण। वे जब बच्चों के साथ ज्यादातियों की बात कर रहे थे, तो मैं सोच रही थी कि वे किसके लिए ज्यादा संजीदा होंगे पहली शादी के दो बच्चों से या फिर दूसरी शादी से जन्में बेटे आज़ाद का ? सौम्या का कहना था कि सेलिब्रिटीज का बहुत असर हम पर पड़ता है। वे जो करते हैं उसका तो और भी ज्यादा। सौम्या कहती हैं, मैं इनसे ज्यादा सुष्मिता सेन का सम्मान कर पाती हूं, जो दो अनाथ बच्चियों को अपनी बेटी की तरह पाल रही हैं।
अठारह साल की सौम्या उनमें से हैं, जो सफल लोगों के निर्णयों को पूरी गंभीरता से जज करती हैं। वह खुद कोई फैसला नहीं सुनाती, लेकिन गौर करती हैं कि पब्लिक के पैसों पर बड़ा साम्राज्य बनाने वाले अपने लोक दायित्वों के प्रति कितने जिम्मेदार हैं। वह नेताओं के साथ बिजनेसमैन और बॉलीवुड के तोप सितारों को भी इसी कैटेगिरी में रखती हैं, जो संकट के समय सही निर्णय लेने की बजाय या तो खूब बोलते हैं या फिर परदे के पीछे चुप्पी साध लेते हैं। नेता उसे खूब बोलने वाले और सितारे उसे चुप्पे लगते हैं। उत्तराखंड त्रासदी का पहाड़ सर पर टूटा  है, पर बहुत कम हाथ उस ओर बढ़े हैं।
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