देह की मंडी में बिक गयी लक्ष्मी


मानव तस्करी से जुड़ी है कथा
लक्ष्मी एक चौदह साल की लड़की है। बेहद खूबसूरत और प्यारी जिसे उसका पिता तीस हजार रुपए में बेच देता है। कसाईनुमा चिन्ना इन लड़कियों को भेड़-बकरियों की तरह भरकर देह की मंडियों तक पहुंचाता है। रेड्डी सबसे छोटी लक्ष्मी को यह कहकर चुन लेता है कि यह तो सबसे छोटी है फिर उसी लड़की को घर में रखकर उसके साथ दुष्कर्म करता है। जबरदस्ती के बाद पानी में घुलता रक्त सिनेमा हॉल में मौजूद कई युवतियों को विचलित कर देता है। इसके बाद लक्ष्मी रेड्डी के कोठे पर भेज दी जाती है जिसे बेसहारा अनाथ लड़कियों की सेवा के नाम पर बतौर गर्ल्स हॉस्टल चलाया जाता है। छोटी बच्ची के लिए पुरुष ग्राहक खूब दाम चुकाते हैं। वह बच्ची इस घिनौनी दुनिया से कई बार भागने की कोशिश करती है लेकिन चिन्ना उसे हर बार पकड़ लाता है। बेरहमी से पिटती लक्ष्मी पर कोई रहम नहीं खाता, उसे उस दिन और ज्यादा ग्राहक लेने पड़ते हैं। बूढ़े के फॉर्म हाउस पर नाचते हुए मौका देखकर लक्ष्मी फिर दीवार फांदने का प्रयास ·रती है लेकिन अब की बार चिन्ना बेरहमी के साथ उसके पैर पर कीलों वाला डंडा घुसा देता है। पीड़ा से भरी लक्ष्मी की फिर वही सजा कि इस हाल में भी वह ग्राहक लेगी।
लक्ष्मी चाहती है सजा दिलवाना
ज्योति( शेफाली छाया ) को लक्ष्मी के इस हाल पर खूब रहम आता है और वह चिन्ना से इस हाल में ग्राहक ना लेने की इल्तजा करती हैं। ज्योति स्वयं एक बेटी की मां है जो नर्क में रहते हुए भी अपनी बेटी को इंजीनियर बना रही है। उसकी बेटी को यही मालूम है कि मां एक दफ्तर में काम करती है। हॉस्टल में उमा नामक एक्टिविस्ट का नियमित आना-जाना है जो देह व्यापार में लिप्त महिलाओं को सुरक्षा और साफ-सफाई की सामग्री देने आती है, वह लक्ष्मी से भी मिलती है। एक और सामाजिक कार्यकर्ता कैमरा लेकर लक्ष्मी के पास ग्राहक बनकर आता है। वह बीमार और घायल लक्ष्मी पर हो रही ज्यादती को रिकॉर्ड करता है। इस बीच हॉस्टल पर छापा पड़ता है, रेड्डी और चिन्ना गिरफ्तार क र लिए जाते हैं। पीटा एक्ट के तहत लड़कियां पुनर्वास केंद्र में लाई जाती हैं। वे वहां सिलाई-टोकरी बुनने का प्रशिक्षण लेती हैं। लेकिन कुछ ही दिनों में चिन्ना-रेड्डी छूट जाते हैं और कोठा फिर आबाद हो जाता है। लड़कि यां लौट जाती हैं कि यह काम उनसे नहीं होता। लक्ष्मी नहीं लौटती। वह सजा दिलाना चाहती है।
लक्ष्मी को मिलता है न्याय
तमाम उतार-चढ़ावों के बाद लक्ष्मी को न्याय मिलता है। रेड्डी का डॉक्टर साबित करता है कि उसके पेशेंट को एड्स है और उसी ने लक्ष्मी से बलात्कार किया है। रेड्डी के कहने पर ही लक्ष्मी को इंजेक्शन दिए गए कि लड़की जल्दी बड़ी हो जाए। चिकित्सक का यह बयान मील का आखिरी पत्थर साबित होता है। लक्ष्मी आंध्रप्रदेश की पहली लड़की है जिसे इममोरल ट्रैफिक (प्रिवेंशन) एक्ट-पीटा के तहत २०१२ में न्याय मिला है। सच तो यह है कि कायदे-कानून के बावजूद यह सिलसिला रुकता नहीं। समाज इसे अपराध नहीं मान पाता। इसे सदियों पुराना पेशा बताकर महिमामंडित और किया जाता है।
किस्से कहानियों में सुनते आए हैं कि बड़ी कायदे की तवायफ थी, कमाल का मुजरा करती थी या फलां तवायफ के गले में ईश्वर का वास था। उफ, कला को सराहने का ये क्या सलीका हुआ?
घृणा से भर देता है चिन्ना
फिल्म देखने वाले को लक्ष्मी के आसपास की दुनिया से घिन हो आती है। चिन्ना के भद्दे जोक्स-भाषा इस पेशे की भयावहता को खूब अभिव्यक्त करते हैं। चिन्ना के कई संवाद पिघले सीसे की तरह कानों में पड़ते हैं। चिन्ना का किरदार फिल्म के लेखक-निर्देशक नागेश कुकुनूर ने अदा किया है। वे किरदार में यूं जा बैठे हैं कि देखनेवाला नफरत से भर उठता है। नागेश निर्मम निर्देश· हैं, उन्होंने हालात को जस का तस दिखाया है। यही वजह है कि फिल्म अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना और सम्मान पा रही है। कई लड़कियां इन दृश्यों को बर्दाश्त नहीं कर सकीं और हॉल छोड़·र चली गईं। आयोजकों को भला-बुरा कहते हुए कि आपने ये दिखाने के लिए हमें बुलाया था। वैसे नागेश काम हिंसा के साथ इसे प्रदर्शित कर सकते तो प्रदर्शित तो ज़रूर होती लेकिन अपना असर कुछ काम पैदा करती
मंटो की याद
दरअसल, हमारा समाज ऐसा ही है। एक तबका दूसरे तबके की तकलीफों से बिल्कुल अंजान है या फिर समझते हुए भी उसकी अनदेखी करना चाहता है। वह अपने चारों ओर खिली हुई सुंदर दुनिया की कल्पना में ही जीना चाहता है। चिन्ना जब कहता है कि मेरा तन रहा है... कौन तैयार है.. देह मंडी में स्त्री के केवल एक मांस पिंड होने की पुष्टि करता है। एक दृश्य में लक्ष्मी घायल और बीमार होने के बावजूद यंत्रवत इसलिए कपडे़ खोलने लगती है कि उसे लगता है की ग्राहक आया है। यह महान कथाकार सआदत हसन मंटो की कहानी खोल दो की याद दिलाता है जिसमें बंटवारे के बाद नायिका शैतानों के हत्थे चढ़ जाती है जहां उसकी देह सिर्फ इस्तेमाल की हुई वस्तु बनकर रह जाती है। मंटो पर गुलाम भारत में मुकदमे चले थे और आजाद भारत में नागेश की यह फिल्म प्रदर्शन से पहले ही प्रतिबंधित हो गई है।
इसे पढ़ कर सहम गई मैं
जवाब देंहटाएंक्या ये सच है
कि सिर्फ मूव्ही है
मैं तो ना द्खूं इसे....
दरअसल, हमारा समाज ऐसा ही है। एक तबका दूसरे तबके की तकलीफों से बिल्कुल अंजान है या फिर समझते हुए भी उसकी अनदेखी करना चाहता है। वह अपने चारों ओर खिली हुई सुंदर दुनिया की कल्पना में ही जीना चाहता है।
जवाब देंहटाएंfilm ki sateek sameeksha ke sath ek kadavi haquikat baya kar di hai aapne ..lekin ab vakt aa gaya ki ham apni aankhen khole ..
कितना भयानक सच कि उसका अभिनीत रूप भी दहला देता है!
जवाब देंहटाएंshukriya mitro
जवाब देंहटाएंyashodaji har drishya sihra deta hai.. kavita aankhen khol leni chahiye
dunia me kitana gam hai , mera gam kitana kam hai , darasal yah mansikata aur vyavastha kee samasya hai ...
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