ईडी टिड्डी तो आप क्या गोडावण ?

राजस्थान का चुनावी परिदृश्य बहुत दिलचस्प हो गया है। जो वक्त प्रत्याशियों की घोषणा और उनकी हार -जीत पर अनुमान लगाने का था, वह  फुटेज ईडी खा गई है। हर ज़ुबां अब ईडी-ईडी बोल रही है। आचार संहिता के बीच ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय की ऐसी सक्रियता अभूतपूर्व है। चुनाव में एक महीना भी नहीं बचा है और दोनों पार्टियों के बीच ईडी ठस गई है। ऐसा पेपर लीक मामले की जांच के लिए किया गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कह रहे हैं कि यह जांच दल नहीं बल्कि टिड्डी दल है जो खड़ी फसल चट कर जाता  है। पश्चिमी राजस्थान में मध्य पूर्व और पाकिस्तान के रास्ते से आने वाले टिड्डी दलों का आतंक है तब क्या अशोक गहलोत कोई गोडावण पक्षी है जो टिड्डियों का ही सफाया कर देता है? यूं गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड )राजस्थान का राज्य पक्षी है जो थोड़ा वज़नी होने की वजह से उड़ नहीं पाता लेकिन दौड़ता तेज़ है। फिलहाल ईडी हमले में  माफ़ कीजिये ईडी छापों से तो कांग्रेस एक दिखाई दे रही है। सचिन पायलट दिल्ली की प्रेस वार्ता में इसके समय को गलत बता रहे हैं। वैसे पेपर लीक मामले सरकार का विरोध करने वालों में सचिन पायलट ही आगे थे,स्थानीय भारतीय जनता पार्टी चुप ही थी। अब देखना है कि समय वाकई में  किसका ख़राब चल रहा है और तीन दिसंबर को कौन राजस्थानी पाग (पगड़ी) अपने सर बांधता है। 

एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस की सरकार बनाने वाला राजस्थान का वोटर बहुत बुद्धिमान है और वह किसी के बहकावे में नहीं आता। वह निरंतर विकास चाहता है यही वजह है कि बीमारू प्रदेशों में राजस्थान बेहतर हुआ है। कोरोना प्रबंधन में भी यह अन्य राज्यों से कहीं बेहतर था। जानना दिलचस्प होगा कि इस बार मतदाता को कौन भा रहा है। अशोक गहलोत सरकार का पिछले कुछ महीनों से तो यह हाल है कि रोज़ किसी नई योजना या फिर घोषणा के साथ हाज़िर हो जाते हैं। चिरंजीवी योजना के तहत 25 लाख का स्वास्थ्य बीमा,पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) की बहाली ,महिलाओं को कनेक्शन के साथ मोबाइल फोन देना और हर बिल पर पहले 100 यूनिट बिजली फ्री देने का असर देखा जा सकता है। जिन लोगों की सरकारी योजनाओं में कोई आस्था नहीं रही उन्होंने भी फ्री बिजली और अच्छे इलाज की चाहत में राजस्थान सरकार के जनाधार नंबर से खुद को जोड़ लिया है। निजी अस्पतालों को भी इस योजना में शामिल करना बेहतरीन सोच है लेकिन इसमें अड़चनें भी आ रही हैं, इसकी तुलना में  राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम के तहत अच्छी सुविधा राज्य के कर्मचारियों को मिल रही  है। कहा जा सकता है कि राज्य सरकार के कर्मचारियों को तो इस बार साधने की कोशिश की गई है ।

एक और पहल जो अच्छी थी लेकिन इसे लागू करने में भी व्यवहारिक दिक्कतें रहीं। इसके तहत सड़क पर घायलों को किसी भी प्राइवेट हॉस्पिटल में तुरंत चिकित्सा मुहैया करानी थी। अक्सर कई मरीज़ सरकारी औपचारिकताओं के चलते, इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं। इस कायदे का दम भी टूटता हुआ ही नज़र आता है क्योंकि निजी अस्पताल इस हक़ में नहीं हैं जबकि 2022 में राइट टु हेल्थ बिल पास करने वाला राजस्थान देश का पहला राज्य बन गया था । कानून और व्यवस्था को मज़बूत करने में भी सरकार का ध्यान कम ही रहा। महिलाओं के खिलाफ भी अपराध ज़्यादा हैं। जैसी सक्रियता स्वास्थ्य के लिए रही वैसी कानून के लिहाज़ से भी होती तो राजस्थान की कहानी और अच्छी हो सकती थी। तब क्या रास्ते भाजपा के लिए आसान है ?



राजस्थान की शहरी जनता के बड़े हिस्से को इस बात से ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता कि वोट मोदी के नाम पर मांगा जा रहा है। उसे लगता है कि किसी भी स्थानीय नेता में वैसा चुम्बक नहीं जैसा कि मोदी में है। वसुंधरा राजे पूरे राजस्थान में लोकप्रिय तो हैं लेकिन मोदी ही हैं जो राजस्थान में पार्टी की नैया पार लगा सकते हैं। इस विमर्श के हिसाब से मध्यप्रदेश में अठारह साल के शिवराज शासन के दूसरी तरफ भी मोदी ही हैं क्योंकि इस बार वे भी हाशिये पर हैं। गहलोत बनाम भी मोदी और शिवराज बनाम भी। यह दिलचस्प है कि प्रदेश में कोई भी नेता या विश्लेषक गहलोत सरकार के लिए 'एंटी इंकम्बेंसी' की बात नहीं कर रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो नाराज़गी वाला बड़ा वोट नहीं है जो बाज़ी पलट देता है । सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए आतुरता की कमी ही भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई  है। केंद्रीय योजनाओं के अलावा प्रधानमंत्री की विदेश में साख को भी वोटर अच्छा बताते हैं। महिला आरक्षण का आश्वासन भी भूमिका में है। पार्टी के पास एक अलग और अमोघ अस्त्र भी है जिसे वह समय-समय पर धार देती रहती है , राजस्थान को भी अलग नहीं रखा गया है । यूं प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में साफ़ कह दिया है कि वे राजस्थान सरकार की वर्तमान  योजनाओं को बंद नहीं करेंगे और मतदाता को सिर्फ़ कमल का फूल देखना चाहिए। यह सोच किसी  बड़े 'शिफ्ट' का संकेत है कि पांच साल में रोटी पलटने की रवायत के बावजूद पार्टी आश्वस्त नहीं है। 

कर्नाटक से पहले गुजरात और पश्चिम बंगाल में भी मोदी ही पार्टी का चेहरा थे लेकिन केवल गुजरात में ही सफलता मिली। पार्टी का यह मज़बूत विचार है कि असफल चेहरों को दृश्य से गायब कर दो तो सफलता मिलती है। गुजरात में तो मुख्यमंत्री से लेकर तमाम मंत्रियों के ही चेहरे गायब हो गए। यह मॉडल खूब सफल रहा। कर्नाटक में 19 रैलियों और छह रोड शो के बावजूद भाजपा की सरकार बच नहीं सकी और बंगाल में दीदी तीसरी बार भी अपनी गद्दी बचने में कामयाब रहीं। तब क्या राजस्थान में यह असफल चेहरा वसुंधरा राजे थीं ? शुरुआत में पार्टी ने ऐसा ही माना था लेकिन दूसरी list में गलती सुधार ली। उनके हिसाब से टिकट भी मिले और उन्हें कुछ तवज्जो भी। चर्चा यह भी है कि अब जयपुर के पूर्व राजघराने की राजकुमारी दिया कुमारी को पार्टी आगे लाना चाहती हैं। वे राजसमंद से  सांसद हैं और अब पार्टी ने उन्हें जयपुर की एक सीट से विधायक का टिकट दिया है। यूं वसुंधरा राजे सिंधिया के आगे दिया कुमारी फिलहाल एक कमज़ोर चयन इसलिए भी हैं कि वसुंधरा राजपूती विरासत के साथ जाट -गुर्जर बहू होकर कई चुनावी समीकरण साध लेती हैं। उनकी भाषा और भूषा उन्हें हर वर्ग में स्वीकार्य बनाती हैं। वे एक चुनरी से ही अपना कनेक्ट जनता ,खासकर महिलाओं से बना लेती हैं। इस बार उनके मतदाताओं को पता है कि वे मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं हैं तब फिर कौन रण जितवाएगा। जवाब होगा कि यह चुनाव भी मोदी जी के कांधे पर टिका है। 

पिछले महीने जयपुर में एक अठारह साल के लड़के इकबाल की हत्या हो गई। भीड़ ने उसे पीट-पीट कर मार डाला। यूं राजस्थान अपने लोक संगीत ,साहित्य और कलात्मक अभिरुचि वाली कई खूबियों के साथ सांप्रदायिक तौर पर बेहद सद्भावी प्रदेश है। तमाम संप्रदाय यहां मिलजुलकर रहते हैं। मालिक मोहम्मद जायसी की पद्मावत (1540 )जन-जन में लोकप्रिय है।अकबर के सेनापति मानसिंह रहे तो हाकिम खां महाराणा प्रताप के । वीरता के साथ सद्भाव की बेहतरीन गाथा इस प्रदेश ने लिखी है। धरती सुरगा री.. यह गीत तारा प्रकाश जोशी ने इस धरती के सौंदर्य और सद्भाव के लिए ही लिखा है। उस दिन इकबाल और उसका भाई दोनों बाइक पर सवार थे कि सड़क पर कहा-सुनी हो गई। भाई तो जान बचाकर भाग गया लेकिन इकबाल को भीड़ ने मार दिया। हो सकता है कि दुर्घटना के बाद इकबाल ने अपशब्द कहे हों लेकिन उसकी जान ले ली जाए, यह दुखद था। गहलोत सरकार ने बतौर मुआवज़े पचास लाख रूपए और परिजन को नौकरी देने की घोषणा की। शहर में व्यापारियों के एक हिस्से ने बड़ा प्रदर्शन करते हुए इसे तुष्टिकरण का नाम दिया। कहा गया कि पुलिस हिंदुओं को परशान कर रही है ,उन्हें जबरन गिरफ्तार किया जा रहा है। जो भी हो कानून का काम इतना सशक्त होना चाहिए कि जांच पर सबका भरोसा हो। तुष्टिकरण का नैरेटिव कहीं-कहीं का बन रहा है, उस वर्ग में एक मां जिसके बच्चे की हत्या हो गई उसके लिए कोई हमदर्दी नहीं है। विकास के मुद्दों पर ये मुद्दे हावी हैं। उदयपुर में दर्ज़ी कन्हैया लाल की हत्या भी नफरत का नतीजा थी। जोधपुर का दंगा भी। सरकार की पकड़ कानून व्यवस्था पर होनी चाहिए। अपराधियों को पकड़ने में भी और अपराध ना हों उसमें भी। विकास के तमाम सुरीले सुरों के बीच नफ़रत के बेसुरे बोल का सर क्यों उठना चाहिए था ?  प्रदेश की रवायत के हिसाब से सरकार तो भारतीय जनता पार्टी की ही आनी है तब सब्र क्यों चुक रहा है ? अभी सब पीछे चर्चा में केवल ईडी आगे है। 




टिप्पणियाँ

  1. हमेशा की तरह बेहतरीन आलेख। वसुंधरा जी की विरासत राजपुताना नहीं मराठा है।

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    1. असल में दोनों ही क्षत्रिय हैं। मराठा महाराष्ट्र के और राजपूत राजस्थान के। जैसे चौहान वहां चव्हाण हैं और राणा राणे।

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