चालीस फ़ीसदी कमीशन वाली भाजपा अब बजरंग बली की शरण में


        कर्नाटक का चुनाव प्रचार शबाब पर है और शबाब पर हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैलियां, गालियां और मन की बातें। अगर आप आईपीएल क्रिकेट में खिलाडियों की बल्लेबाज़ी का हिसाब रख रहे हैं, तो राजनीति के मैदान पर भी एक मंजे हुए खिलाड़ी हैं जिनके शतक का हिसाब-किताब रखा जा रहा है। उनकी 'मन की बातों' का शतक लग चुका है और उन्हें मिलने वाली गालियों का भी पूरा होने वाला है। अब तक वे 91 गालियां खा चुके हैं। यानी शतक से नौ दूर। कर्नाटक चुनाव का घमासान सामने है और हिसाब-किताब रखने वालों को पूरी उम्मीद है कि शतक जड़ दिया जाएगा। कर्नाटक चुनाव के अधिकांश सर्वेक्षण जो कि ज़रूरत से ज़्यादा ही आ रहे हैं, सभी या तो कांग्रेस का बहुमत बता रहे हैं या फिर कांटे की टक्कर। कर्नाटक बड़ा राज्य है जिसकी 224 सीटों पर एक साथ 10 मई को मतदान होना है और नतीजे 13 मई को आएंगे। अकेला राज्य है जहाँ इस समय चुनाव हो रहे हैं। पूरे देश का फोकस उस पर है लेकिन बीच-बीच में उसका पड़ोसी राज्य  महाराष्ट्र बिना चुनाव के ही बाज़ी मार लेता है। हार-जीत से अलग इस चुनाव को लोकतान्त्रिक प्रक्रिया और सियासी दलों की खिसियाहट के हवाले से भी देखा जाए तो बहुत कुछ समझा जा सकता है। 
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भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान और हटाए गए दोनों मुख्यमंत्रियो ने अपने साक्षात्कारों में नफ़रत और विभाजनकारी नीतियों को ख़ारिज किया है। दोनों को ये मुद्दे ग़ैर ज़रूरी लगते हैं, तो भी देखा गया कि प्रचार के चरम पर आते-आते सियासत फिर धर्म का टेका लेने पहुंच जाती है। प्रधानमंत्री बोल गए कि पोलिंग बूथ में बटन दबाओ तो 'जय बजरंग बली' बोलकर कांग्रेस को सज़ा दे देना। आखिर यह मौका प्लेट में सजाकर उन्हें दिया किसने; और इससे भी बड़ा सवाल यह कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व क्या एकमात्र धर्म की नाव पर सवार होकर ही अपनी कश्ती को पार करना चाहता है जबकि स्थानीय नेतृत्व ऐसा नहीं चाहता? आखिर क्यों इन चुनावों में कोई कन्नड़ भाषा की पत्रकार गौरी लंकेश और कन्नड़ भाषा के साहित्यकार एमएम कलबुर्गी की  हत्या का ज़िक्र नहीं करता? साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित कलबुर्गी और गौरी लंकेश दोनों की हत्या उनके घर में कर दी जाती है। कलबुर्गी की पत्नी तो हत्यारे आगंतुकों के लिए  कॉफी बना रही थीं। ऐसे सरल और मासूम व्यक्तियों की हत्या की न कहीं चर्चा होती है और न कोई नैरेटिव ही सेट होता है। ये बनाया जाता है 'ज़हरीले सांप' से जोड़कर और बजरंग दल से।  तब  क्या कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने नरेंद्र मोदी को 'ज़हरीला सांप' और उनके बेटे प्रियांक ने 'नालायक' कहकर गलती कर दी है। इस दौर में जब मीडिया के लिए हर सुबह ही शाम की बहस के मुद्दे तय कर दिए जाते हैं, चुनावी मशीनरी की विपक्ष की शिकायतों में कोई दिलचस्पी नहीं होती, जिससे कई राज्यों में सत्ता जीतने के बाद भी फिसल-फिसल जाती है। ऐसे में उस पार्टी को ज़्यादा ध्यान रखना चाहिए। यह खुद उनकी ही तय नीतियों से मेल नहीं खाता।प्रियांक ने कलबुर्गी में एक सभा में कहा कि प्रधानमंत्री खुद को बंजारा समुदाय का पुत्र बताते हैं। उनके ख़ैरख़्वाह होने का वादा करते हैं लेकिन उनकी पार्टी क्या करती है? बंजारा समुदाय के आरक्षण में भ्रम पैदा करती है। अब की बार जब पीएम यहाँ आएँगे तो वे अपनी बंजारा कम्युनिटी से क्या कहेंगे? प्रियांक पीएम के एक भाषण को कोट करते हुए कहते हैं- "आप सब डरिये मत, बंजारों का एक बेटा दिल्ली में बैठा है। "फिर प्रियांक कहते हैं- "ऐसा नालायक बेटा अगर दिल्ली में बैठा है तो भाई घर कैसे चलेगा"? " उन्होंने मौजूद जनता से सवाल किया। दरअसल यह भाषण किसका है यह बताए बगैर किसी भाजपा नेता से पूछा जाए तो शायद उसे भी 'नालायक' शब्द पर  आपत्ति या हैरानी नहीं होगी लेकिन यह नए ज़माने की मशीनरी और मीडिया है। नालायक की चीख-पुकार मच गई है। चुनाव आयोग ने प्रियांक खड़गे को नोटिस थमा दिया है।  विषकन्या बयान पर भाजपा को सांप सूंघ गया  है लेकिन चुनाव आयोग ने स्टार प्रचारक बासन गौड़ा आर पाटिल को भी नोटिस थमाया है। 
बेशक इस चुनाव में उस पार्टी का  संकट बड़ा है जिसके पूर्व मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पार्टी छोड़ गए हों। भाजपा कर्नाटक को भी गुजरात मॉडल में बदलना चाहती थी। उन सभी पुराने नेताओं को बदल देने का मॉडल, जिनके ख़िलाफ़ असंतोष हो। गुजरात में ऐसे कई नेताओं को घर बैठाकर नए चेहरों को टिकट दिये गये। विपक्ष तो पहले ही भाजपा ने वहां ख़त्म कर दिया था, वे कहाँ जाते! वहां यह फार्मूला चल गया लेकिन कर्नाटक में नहीं। कई बड़े नेता पार्टी छोड़ कांग्रेस में चले गए। पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार के लिए दिल्ली से सेवानिवृत्ति का पत्र गया और कहा गया कि आप इस लेटर पर दस्तखत कर दीजिये। शेट्टार ने पार्टी ही छोड़ दी। ऐसे शिकवे भाजपा में कई नेताओं के रहे हैं। कर्नाटक की जनता सरकार से नाराज़ है। भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है। उसे 'चालीस परसेन्ट वाली सरकारा' कहा जाता है। अमूल डेयरी का कर्नाटक की दुग्ध रेखा नंदिनी के साथ गठजोड़ की रणनीति को भी विपक्ष ने मुद्दा बना दिया है। हिजाब, हलाल और अज़ान के मुद्दे थे नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के चुनाव को ध्यान में रखकर पैदा किये गए थे। चुनाव में इनका कहीं ज़िक्र नहीं है क्योंकि प्रगतिशील कर्नाटक में इससे कश्ती पार नहीं होगी। दक्षिण कर्नाटक में ज़रूर हल्का असर है। इस कारण कांग्रेस के घोषणा पत्र में बजरंग दल को प्रतिबंधित करने की बात सामने आते ही भाजपा ने लपक लिया है। बजरंग दल को हनुमान से जोड़कर भाजपा ने बाज़ी पलटने की कोशिश की है। यहां आंजनेय पर्वत भी है जिसके बारे में प्रचलित है कि माता अंजनी ने यहीं हनुमान को जन्म दिया था।इस दल का बजरंग बली से कोई लेना-देना है लेकिन मुद्दा बनाने में क्या जाता है? इसके सदस्य क्रोधी और आक्रामक हैं जबकि बजरंग बली भगवान राम के अनन्य भक्त। बजरंग बली सीना चीरकर राम के दर्शन कराते हैं जबकि ये नफरत के। ये प्रेम के ही खिलाफ हैं। वैलेंटाइन्स डे पर युवाओं पर राखी बांधने का  दबाव बनाते हैं और शादी करने वाले प्रेमी जोड़ों के घर जाकर प्रदर्शन करते हैं।
चुनाव के नतीजे तो 13 मई को आएंगे लेकिन नतीजों से पहले के सर्वेक्षण कांग्रेस को फायदे में बता रहे हैं। ऐसा अर्से बाद है कि भाई-बहन राहुल और प्रियंका गांधी एक साथ जुटे हुए हैं और उनकी सभा में भारी भीड़ जुट रही है और वे पीएम और गृह मंत्री की तुलना में कमतर नहीं कही जा सकती। प्रियंका के भाषण बहुत सयंत हैं। वे महिलाओं की तकलीफ को महंगाई और बेरोज़गारी से सीधे कनेक्ट करती हैं। अपनी योजनाओं का हवाला देती हैं और भाजपा के बीते  साढ़े तीन साल के शासन की खामियां गिनाती हैं। बीच-बीच में चुटकियां भी लेती हैं कि "मैंने भी कई प्रधानमंत्री देखे लेकिन ये पहले प्रधानमंत्री हैं जो अपनी गालियां गिनते हैं।" प्रधानमंत्री जनता के दुःख सुनने के लिए होते हैं या अपने दुःख गिनाने के लिए- वे जनता से पूछती हैं। कांटे की टक्कर दिखने की दूसरी बड़ी वजह यहाँ कांग्रेस के पास संसाधन का होना भी है और चेहरे भी। लिंगायत, वोकालिंगा, दलित, आदिवासी सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हुए चेहरे। वह हर जगह लड़ती हुई दिख रही है। मल्लिकार्जुन खड़गे का राजनीतिक अनुभव और कर्नाटक से होना भी मायने रखता है। तीसरा फैक्टर राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान दोनों नेता डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया का एक साथ दौड़ लगाना है। इससे कार्यकर्ताओं में सकारात्मक संदेश गया। यहाँ 40 प्रतिशत कमीशन मांगने से एक पीड़ित भाजपा कार्यकर्ता ने प्रधानमंत्री को अपनी पीड़ा लिखकर आत्महत्या कर ली थी।  कांग्रेस ने इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया है। 40 फीसदी करप्शन की सरकार को चालीस सीटें भी नहीं मिलेंगी के जवाब में भाजपा 85 फ़ीसदी का बयान ले आई है। कभी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि भ्रष्टाचार इतना ज्यादा है की योजना के एक रूपए में से केवल 15 पैसे जनता तक पहुँचते हैं। 40 बनाम 85 का रोचक संघर्ष कर्नाटक चुनाव में है। वोट प्रतिशत देखा जाए तो यह हमेशा कांग्रेस का ही ज्यादा रहा है लेकिन सरकार येन केन भाजपा ही बना ले जाती है। 2018 में कांग्रेस को 38 फ़ीसदी और भाजपा को 36 फ़ीसदी के करीब मत मिले थे। जनता दल (सेक्युलर) को 18 प्रतिशत जो उसे किंग मेकर की भूमिका में ला देते हैं। यह दर्द भी प्रियंका गांधी की रैली में झलका। उन्होंने कहा कि इतने ज़्यादा वोटों से जीता दिलाओ कि कोई तोड़ नहीं पाए। लूट की नीयत थी इसलिए यह सरकार लूट कर बनी थी। 
चुनाव वह समय भी होता है जब एक सरकार अपने काम का लेखा-जोखा देती है। यह उस हिसाब का भी समय होता है कि शक्तिशाली तंत्र ने इंसान इंसान के बीच घृणा भरी या गरीब जनता के हित में काम कर उसकी मुश्किलों को आसान किया। कर्नाटक की जनता अपना जवाब देगी। जिन कन्नड़ विद्वान और तर्कवादी सोच के पैरोकार प्रो एमएम कलबुर्गी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी उस समय  मराठी साहित्यकार कविता महाजन ने अपनी प्रतिक्रिया एक कविता में यूं ज़ाहिर की थी-
उम्मीद है, एक दिन यह रेगिस्तान जिंदा हो जाएगा/ रेत का हर ज़र्रा एक-एक चींटी बन जाएगा/ सूखा इलाका बढ़ चलेगा/ लाल-काली चींटियां सड़कों पर उतर रही होंगी/ लाखों-करोड़ों बांबियां फूटकर पिस्तौलों को बेअसर कर रही होंगी/ गोलियां कितनी चींटियों को मार सकती हैं? 
वे कुचलने वालों पर चढ़ जाएंगी/ अपने हाथों में थमे जहर के बर्तन उन पर उड़ेल देंगी/ अंधेरे का चेहरा राख-सा हो जाएगा/ काली रातें एनीमिया की शिकार हो जाएंगी/ तब न विचार मारे जाएंगे, न सोचने वाले इंसान/ जरा देखो उस कमजोर बच्चे को, जो बुद्ध के माथे से गोली निकाल रहा है/ रख रहा है अपनी हथेली पर, खून पोंछते हुए।

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