एक समय था जब राजा-महाराजा प्रजा का हाल जानने के लिए भेस बदलकर उनके बीच जाया करते थे क्योंकि वे जानना चाहते थे कि उनके ख़िलाफ़ कोई नाराज़गी या उन्माद तो नहीं है। जो काम वे कर रहे हैं उन्हें जनता पसंद कर रही है या हाहाकार मचा है। उत्तर रामायण में तो वर्णन है कि भगवान राम को उनके गुप्तचरों ने ही सूचना दी थी कि प्रजा, माता सीता के बारे में अलग सोच रही है। इसके बाद जो हुआ वह आज तक बहस में है कि राम को सीता का त्याग करना चाहिए था या नहीं। अपनी सबसे प्रिय सीता का जिन्हें पहली बार पुष्प वाटिका में देख उन्हें खयाल आया था कि वे इतनी सुन्दर हैं कि सुंदरता भी उनसे ही सुन्दर होती है, फिर भी उन्होंने प्रजा के लिए यह कठोर निर्णय लिया। सीता के वन-गमन का हृदय विदारक निर्णय। राम वे राजा थे जो प्रजा की सोच पर खरा उतरने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे। अपने सबसे प्रिय का त्याग भी कर सकते थे। कालांतर में बादशाह अकबर के नाम भी किस्से दर्ज़ हैं कि वे रूप बदल कर जनता के बीच दाखिल हो जाते थे। दरअसल ये उस दौर के तरीके थे जब राजा जनप्रिय बने रहने के लिए निज प्रयास करते थे। एक आज का दौर है जहां निजता हरने का कारो
प्रकाश स्वयंसिद्ध है।
जवाब देंहटाएंBahut khubsoorat :)
जवाब देंहटाएंमन में अँधेरा हो तो बाहर कितना भी उजाला हो !
जवाब देंहटाएं"क्या क्या लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना"
जवाब देंहटाएंसार्थक एवं मार्मिक प्रस्तुति
लोग छले हुए हैं न -विचारपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंदमण तट पर दौड़ लगाते समर और कबीर के चित्र से याद आया दमण का खारा,उथला समुद्र और बौम जीसस गिरजा.
जवाब देंहटाएंआपके इस ब्लॉग के ज़रिये दमण को सलाम भेजता हूँ.
बड़े बवंडर थाम लेती हैं ये पलकें
जवाब देंहटाएंयाद का तिनका तूफ़ान ला देता है
Bahut Khoob...
praveenji kavita vaanij rakeshji arvindji sanjayji aur firdous aapka shukriya aur aabhar
जवाब देंहटाएंक्या बात है , आपकी कविताओ ने तो मन मोह लिया है .. शब्द जैसे एक कथा कह दे रहे हो ... आपको बधाई !!
जवाब देंहटाएंआभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html