जिरहबख्तर
आज फिर हमने गुस्ताखी की है
तेरे ग़म को लफ़्ज़ों की शक्ल दी है
क्यों चाहा अल्फाज़ का ये जिरहबख्तर
क्या होंसलों में अब कोई कमी सी है ||
मेरे हालात पे यूं जार-जार रोने लगा वो
समझ आया खुदा ने ही नाइंसाफी की है ||
क्या होंसलों में अब कोई कमी सी है ||
मेरे हालात पे यूं जार-जार रोने लगा वो
समझ आया खुदा ने ही नाइंसाफी की है ||
ये नुमाया लफ्ज़ अब बूंदों में घुल रहे हैं
तेरी सोहबत ने ये क्या सूरत दी है ||
तेरी सोहबत को दोष क्यूं कर हो
खामोश पानी को इसी ने रवानी दी है ||
तेरी सोहबत ने ये क्या सूरत दी है ||
तेरी सोहबत को दोष क्यूं कर हो
खामोश पानी को इसी ने रवानी दी है ||
मेरा किया गुनाह ए कबीरा न सही
गुनाह ए सगीरा से भी अब तौबा की है||
गुनाह ए सगीरा से भी अब तौबा की है||
आज फिर हमने गुस्ताखी की है
तेरे ग़म को लफ़्ज़ों की शक्ल दी है ||
गुनाह ए कबीरा -बड़ा गुनाह
गुनाह ए सगीरा -छोटा गुनाह
जिरहबख्तर -कवच
वाह...बहुत खूब ...बहुत ही सुन्दर...
जवाब देंहटाएंआज फिर हमने गुस्ताखी की है
जवाब देंहटाएंतेरे ग़म को लफ़्ज़ों की शक्ल दी है ||
.......बहुत खूब !
आज फिर हमने गुस्ताखी की है
जवाब देंहटाएंतेरे ग़म को लफ़्ज़ों की शक्ल दी है
अपने एहसासों को खूबसूरत शब्द देती रहें
शुभकामनायें !
तेरी सोहबत ने ये क्या सूरत दी है... बहुत सुन्दर सूरत दी है.
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंranjanaji, niveditaji, vaaniji, kishoreji aur shivamji aap sabka bahut bahut shukriya.
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