वह चुप है
राजस्थान विश्वविद्यालय के परिसर में लों की परीक्षा देकर लौट रही एक छात्रा को छात्र छेड़ने के बाद पीटते रहे लेकिन कोई आगे नहीं आया और तो और घटना के बाद प्रतिकार स्वरुप किसी नेता, छात्र नेता का बयान भी नहीं आया है ...यदि एक भी नेता/कुलपति यह कह दे कि यदि दोबारा ऐसी घटना परिसर हुई तो ऐसे छात्रों का विश्वविद्यालय में पढ़ना मुश्किल हो जाएगा तब शायद अनुशासन का सायरन बजे. शायद तब भी नहीं .यहाँ तो न किसी को पढ़ना है न पढ़ाना . होठ तो अब छात्रा ने भी सी लिए हैं ...यह चुप्पी चौंकाती है और संकेत देती है कि सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा
शुभदा अपनी उम्र के तीन दशक पार
कर चुकी हैं, लेकिन आज वे चौदह
की उम्र में घटे जिस वाकये को
सहजता से सुना रही थीं तब दिल में
केवल दहशत थी। बचपन से ही
खेलने-कूदने में शुभदा की
दिलचस्पी थी। नए बन रहे मकानों
की छतों से रेत के ढेरों पर कूदना
शुभदा के ग्रुप के बच्चों का शौक था।
उस दिन शुभदा ने घेरदार स्कर्ट
पहन रखी थी। नीचे कूदते ही वह
स्कर्ट छतरी की तरह खुल गई।
शुभदा बहुत घबरा गई और उसे खुद
पर शर्म आने लगी। बाजू से
शरारती लड़कों का समूह गुजर रहा
था। उनकी सीटियों और तालियों ने शुभदा को रुआंसा कर दिया
और वे आज भी जैसे उसके कानों में गूंजती हैं
बात वहीं खत्म नहीं हुई थी। शुभदा
जब भी घर से निकलती ये लड़के
चिल्ला कर छेड़ते... उड़ गई रे!
घटना भी जैसे उड़कर पूरे मोहल्ले
के लड़कों की जुबां में समा गई थी।
शुभदा जहां से गुजरती, यही फिकरे
सुनने को मिलते। घर से निकलने में
डर लगता। स्कूल जाना भारी
पड़ता। मां कोई काम कहती तो वह
टाल देती। सपने में उसे उड़ गई
रे... का अट्टाहस सुनाई देता। वह
खुद को अपराधी महसूस करने
लगी। उसे उस स्कर्ट से ही नफरत
हो गई ।
आज शुभदा कहती हैं, मैंने
इसके बारे में किसी को नहीं बताया।क्या बताती मम्मी पापा को। मेरी
शिकायत में क्या दम था। मैं तो खुद
को ही दोषी मान रही थी। लेकिन
उन लड़कों के फिकरों ने मुझे तीन
साल तक सहज नहीं रहने दिया।
थोड़ी समझ आई तो खुद ही इसका
नोटिस लेना बंद कर दिया। बाद में
इंजीनियरिंग में चयन हो गया तो
उनकी जुबां को भी ताले लग गए।
... लेकिन आज कोई मुझसे पूछे
तो मैं कहूंगी मेरे जीवन के सर्वाधिक
मुश्किल साल वही थे। भय और
अपराधबोध ने मुझसे मेरा वह समय
छीन लिया था। अब लगता है कि क्यों नहीं मैं गूंज गई किसी सायरन
की तरह। मेरी गलती ही क्या थी जो
मैंने यह सब सहा? शुभदा जैसे उस
दौर से निकल ही नहीं पा रही थी।
आज यही सब जयपुर में
एलएलबी की वह छात्रा सह रही है।
सोमवार को जब वह एलएलबी का
पर्चा देकर लौट रही थी तो तीन-चार
लड़कों (कथित छात्र) ने उसे छेड़ा।
जब लड़की ने छेडख़ानी का विरोध
किया तो उन्होंने उसे पीटना शुरू कर
दिया। उसके स्कूटर में तोडफ़ोड़
करनी शुरू कर दी। वहां मौजूद
किसी ने भी इस लड़की की मदद
नहीं की। लड़की हिम्मत कर
उनसे छूटी और मोबाइल से 100
नंबर डायल कर पुलिस सहायता की
गुहार लगाई। छात्रावास में रह रही
इस लड़की के साथ राजस्थान
विश्वविद्यालय परिसर में घटी यह
घटना इसलिए भी शर्मनाक है,योंकि बचाने के लिए कोई आगे
नहीं आया। लड़की ने लड़कों का
मुकाबला करने की कोशिश की थी।
उनहें यह कब बर्दाश्त होता। 'हैप्पी एंडिंग ' होती अगर लड़की की
शिकायत पर लड़के हवालात में होते।
मंगलवार की सुबह डेली न्यूज
रिपोर्टर करुणा शर्मा जब छात्रावास
पहुंची, तो वहां मरघट-सा सन्नाटा
पाया। भीतर जाने की इजाजत
किसी को नहीं थी। पुलिस के दो
जवान लड़की के बयान दर्ज करने
आए थे। महिला पुलिस नहीं थी।
वार्डन ने साफ कहा कि लड़की कोई
बयान नहीं देना चाहती। यहां सब
कल से परेशान हैं और लड़की सुबह
से सिर्फ रोए जा रही है।क्यों रो रही है वह? क्या
गलती है उसकी? वह लॉ की
परीक्षा दे रही है और लॉ में ही
उसका यकीन नहीं? यूं तो सारी
घटना सबके सामने है, लेकिन
औपचारिक तौर पर वह कोई बयान
दर्ज नहीं कराना चाहती। नहीं आना
चाहती किसी के सामने। उसे भय है
कि वे लड़के हैं और वह लड़की।
उसका बाहर निकलना मुश्किल हो
सकता है। अभी तो हमला किया है
आगे किसी भी हद तक जा सकते
हैं। यही आशंकाएं उसे चुप रहने पर
मजबूर कर रही हैं। लड़कियों की
इन्हीं आशंकाओं (बेशक ये निर्मूल
नहीं हैं) ने बदमाशों की
कारस्तानियों को हवा दी है। वे
चाहते हैं कि वे हमारी छेडख़ानियों
को सर झुकाकर लें। ट्रैफिक
सिग्नल पर गलती करने वाले लड़के
को बोलकर देखिए कुछ, उसके अहं
को ऐसी चोट लगती है कि वह
आपको कट-मारकर गिरा देना
चाहता है। उसे बर्दाश्त नहीं कि आप
कुछ भी कहें। आपकी चुप्पी में
उसका सुख है।
एलएलबी करने वाली बहादुर
लड़की... हिमत मत हारो।
आंसुओं में मत डूबो। तुम्हारी कोई
गलती नहीं। गलती तो अब होगी गर
चुप रह गयी ।
शुभदा अपनी उम्र के तीन दशक पार
कर चुकी हैं, लेकिन आज वे चौदह
की उम्र में घटे जिस वाकये को
सहजता से सुना रही थीं तब दिल में
केवल दहशत थी। बचपन से ही
खेलने-कूदने में शुभदा की
दिलचस्पी थी। नए बन रहे मकानों
की छतों से रेत के ढेरों पर कूदना
शुभदा के ग्रुप के बच्चों का शौक था।
उस दिन शुभदा ने घेरदार स्कर्ट
पहन रखी थी। नीचे कूदते ही वह
स्कर्ट छतरी की तरह खुल गई।
शुभदा बहुत घबरा गई और उसे खुद
पर शर्म आने लगी। बाजू से
शरारती लड़कों का समूह गुजर रहा
था। उनकी सीटियों और तालियों ने शुभदा को रुआंसा कर दिया
और वे आज भी जैसे उसके कानों में गूंजती हैं
बात वहीं खत्म नहीं हुई थी। शुभदा
जब भी घर से निकलती ये लड़के
चिल्ला कर छेड़ते... उड़ गई रे!
घटना भी जैसे उड़कर पूरे मोहल्ले
के लड़कों की जुबां में समा गई थी।
शुभदा जहां से गुजरती, यही फिकरे
सुनने को मिलते। घर से निकलने में
डर लगता। स्कूल जाना भारी
पड़ता। मां कोई काम कहती तो वह
टाल देती। सपने में उसे उड़ गई
रे... का अट्टाहस सुनाई देता। वह
खुद को अपराधी महसूस करने
लगी। उसे उस स्कर्ट से ही नफरत
हो गई ।
आज शुभदा कहती हैं, मैंने
इसके बारे में किसी को नहीं बताया।क्या बताती मम्मी पापा को। मेरी
शिकायत में क्या दम था। मैं तो खुद
को ही दोषी मान रही थी। लेकिन
उन लड़कों के फिकरों ने मुझे तीन
साल तक सहज नहीं रहने दिया।
थोड़ी समझ आई तो खुद ही इसका
नोटिस लेना बंद कर दिया। बाद में
इंजीनियरिंग में चयन हो गया तो
उनकी जुबां को भी ताले लग गए।
... लेकिन आज कोई मुझसे पूछे
तो मैं कहूंगी मेरे जीवन के सर्वाधिक
मुश्किल साल वही थे। भय और
अपराधबोध ने मुझसे मेरा वह समय
छीन लिया था। अब लगता है कि क्यों नहीं मैं गूंज गई किसी सायरन
की तरह। मेरी गलती ही क्या थी जो
मैंने यह सब सहा? शुभदा जैसे उस
दौर से निकल ही नहीं पा रही थी।
आज यही सब जयपुर में
एलएलबी की वह छात्रा सह रही है।
सोमवार को जब वह एलएलबी का
पर्चा देकर लौट रही थी तो तीन-चार
लड़कों (कथित छात्र) ने उसे छेड़ा।
जब लड़की ने छेडख़ानी का विरोध
किया तो उन्होंने उसे पीटना शुरू कर
दिया। उसके स्कूटर में तोडफ़ोड़
करनी शुरू कर दी। वहां मौजूद
किसी ने भी इस लड़की की मदद
नहीं की। लड़की हिम्मत कर
उनसे छूटी और मोबाइल से 100
नंबर डायल कर पुलिस सहायता की
गुहार लगाई। छात्रावास में रह रही
इस लड़की के साथ राजस्थान
विश्वविद्यालय परिसर में घटी यह
घटना इसलिए भी शर्मनाक है,योंकि बचाने के लिए कोई आगे
नहीं आया। लड़की ने लड़कों का
मुकाबला करने की कोशिश की थी।
उनहें यह कब बर्दाश्त होता। 'हैप्पी एंडिंग ' होती अगर लड़की की
शिकायत पर लड़के हवालात में होते।
मंगलवार की सुबह डेली न्यूज
रिपोर्टर करुणा शर्मा जब छात्रावास
पहुंची, तो वहां मरघट-सा सन्नाटा
पाया। भीतर जाने की इजाजत
किसी को नहीं थी। पुलिस के दो
जवान लड़की के बयान दर्ज करने
आए थे। महिला पुलिस नहीं थी।
वार्डन ने साफ कहा कि लड़की कोई
बयान नहीं देना चाहती। यहां सब
कल से परेशान हैं और लड़की सुबह
से सिर्फ रोए जा रही है।क्यों रो रही है वह? क्या
गलती है उसकी? वह लॉ की
परीक्षा दे रही है और लॉ में ही
उसका यकीन नहीं? यूं तो सारी
घटना सबके सामने है, लेकिन
औपचारिक तौर पर वह कोई बयान
दर्ज नहीं कराना चाहती। नहीं आना
चाहती किसी के सामने। उसे भय है
कि वे लड़के हैं और वह लड़की।
उसका बाहर निकलना मुश्किल हो
सकता है। अभी तो हमला किया है
आगे किसी भी हद तक जा सकते
हैं। यही आशंकाएं उसे चुप रहने पर
मजबूर कर रही हैं। लड़कियों की
इन्हीं आशंकाओं (बेशक ये निर्मूल
नहीं हैं) ने बदमाशों की
कारस्तानियों को हवा दी है। वे
चाहते हैं कि वे हमारी छेडख़ानियों
को सर झुकाकर लें। ट्रैफिक
सिग्नल पर गलती करने वाले लड़के
को बोलकर देखिए कुछ, उसके अहं
को ऐसी चोट लगती है कि वह
आपको कट-मारकर गिरा देना
चाहता है। उसे बर्दाश्त नहीं कि आप
कुछ भी कहें। आपकी चुप्पी में
उसका सुख है।
एलएलबी करने वाली बहादुर
लड़की... हिमत मत हारो।
आंसुओं में मत डूबो। तुम्हारी कोई
गलती नहीं। गलती तो अब होगी गर
चुप रह गयी ।
कानून की छात्र भी कानून पर विश्वास नहीं करती , हमारे देश की कानून व्यवस्था पर और कहने को क्या रह जाता है !
जवाब देंहटाएंमन क्षुब्ध हो जाता है ऐसा कुछ सुन देखकर...और सबसे अधिक तड़प इस बात पर होती है कि सचमुच जो सामाजिक व्यवस्था है, इसमें ऐसी बातों को आगे बढाकर यदि कोई सबसे अधिक हानि उठाता है तो वह पीड़ित लडकी ही होती है..
जवाब देंहटाएंगिर गिर उठना हम सबको है, वापस हाथ उठेगा इन दुष्टों पर, एक दिन।
जवाब देंहटाएंदुखद स्थिति... लेकिन अब बदलाव हो रहा है...
जवाब देंहटाएंकरीब डेढ़ साल पहले की घटना है
बीकानेर के कोटगेट क्षेत्र में एक आवारा लड़के ने स्कूटर पर जा रही एक युवती को घटिया तरीके से छुआ तो युवती ने तुरंत स्कूटर रोक दिया और उतरकर लड़के को बालों से पकड़कर पीटा। लोग पहले देखते रहे और बाद में भीड़ एकत्रित हुई तब तक लड़का घबराया हुआ माफी मांगने की मुद्रा में आ चुका था।
मूंह को चुन्नी से ढकी युवती ने लड़के की पिटाई करने के बाद भीड़ को अनदेखा करते हुए अपना स्कूटर स्टार्ट किया और रवाना हो गई।
एक फोटो जर्नलिस्ट ने ये नजारा देखा और अपने एसएलआर कैमरे से उन क्षणों को कैद कर लिया। मैंने वे फोटोग्राफ देखे थे...
लेकिन दुखद बात यह है कि उस अखबार के संपादक ने कहा कि यह आम बात है सो फोटो सीरीज लगाने की कोई तुक नहीं है...
अब आपका लेख पढ़कर लग रहा है कि जयपुर जैसे शहर में अभी छात्राओं की यह स्थिति है तो बीकानेर में तो उस युवती की यह हिम्मत निश्चय ही छापने लायक रही होगी...
आपके यहाँ आकार अक्सर ख़ुशी होती है. सोचता हूँ कि जिन फ़ौरी बातों को खबरों का खास हिस्सा होना चाहिए वे हर बार छूट जाती हैं. आप अपने परिशिष्ट में भी उनको किसी न किसी बहाने शामिल कर लेती हैं. सच हम सबके अपने संस्कार होते हैं. आपकी ये खूबियाँ निखरती रहें.
जवाब देंहटाएंदुख की बात है लेकिन बुराई का सामना करने का साहस तो जुटाना ही पडेगा।
जवाब देंहटाएंवर्षा जी,
जवाब देंहटाएंपूरी पोस्ट पढ़ी। पढ़कर लगा कि सारा सीन सामने ही चल रहा है। मेरे इस कमेंट में किसी को सुझाव कतई नहीं है। पर एक बात कहने का मन कर रहा था...
ऐसी घटनाएं आम हैं। पर राजस्थान यूनिवसिर्टी जैसी जगह पर होना एक बहुत बड़ी बात है। जहां परिवार वालोंं ने बहुत विश्वास के साथ उस लड़की को भेजा होगा। वो जिस जोश के साथ यहां पहुंची होगी, वह इस घटना से नब्बे प्रतिशत तो खत्म हो चुका होगा, यह तय है। लेकिन आपने जिस तरीके से बात उठाई है और शायद अपने पेपर में भी प्रमुखता से छापा है। आपकी आखिरी लाइनें कि - 'एलएलबी करने वाली बहादुर लड़की... हिम्मत मत हारो... तुम्हारी कोई गलती नहीं। गलती तो अब होगी, गर चुप रह गई।' उस लड़की को बोलने के लिए मजबूर करेंगी। और अगर वह लड़की बोली, तो फिर शायद ही कोई उसे दुबारा चुप करवा पाएगा। वाकई उसका और उस जैसी तमाम लड़कियों का विश्वास बढ़ेगा।
vaniji sach badi vidambana hai
जवाब देंहटाएंranjanajihani sirf peedit ki hoti hai
praveenji us ek din ki umeed mein
siddharth ji bade shasron ke chote hain nazariye
ksihoreji koshish hoti hai har bahane se
anuraagji sahi kaha sahas se
sandeepji mere likje ka koi asar nahin hai,ladki ab bhi chup hai
shuktiya aabhaar aap sab ka.