मैं और तुम
दरख़्त
था एक दरख़्त
हरा
घना
छायादार
हरा
घना
छायादार
इस क़दर मौजूद
कि अब ग़ैरमौजूद है
फिर भी लगता है जैसे
उसी का साया है
उन्हीं पंछियों का कलरव है
और वही पक्का हरापन है
कि अब ग़ैरमौजूद है
फिर भी लगता है जैसे
उसी का साया है
उन्हीं पंछियों का कलरव है
और वही पक्का हरापन है
सेहरा ऐसे ही एहसासों में
जीता है सदियों तक
और एक दिन मुस्कुराते हुए
हो जाता है
समंदर
जीता है सदियों तक
और एक दिन मुस्कुराते हुए
हो जाता है
समंदर
ख़ुशबू
मैंने चाहा था ख़ुशबू को मुट्ठी में कैद करना
ऐसा कब होना था
वह तो सबकी थी
उड़ गयी
मेरी मुट्ठी में रह गया वह लम्स
उसकी लर्ज़िश
और खूबसूरत एहसास
काफ़ी है एक उम्र के लिए
याद
यादों की सीढ़ी से
आज फिर
एक तारीख
उतरी है मेरे भीतर...
तुम जान भी पाओगे जाना
कि बाद तुम्हारे
मैं कितनी बार गुजर जाती हूँ
इन तारीखों से गुजरते हुए।
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