राजस्थान : जनता की पैनी निगाह है चौपड़ के पासों पर


जयपुर का खूबसूरत परकोटा विश्व विरासत की महत्वपूर्ण धरोहर है और इसी परकोटे में वास्तुकार विद्याधर जी की बनाई चौपड़ भी है। यहाँ का बाज़ार चौपड़ के डिज़ाइन-सा है, वही चौपड़ जिस पर पासे फेंक-फेंक  कर कौरवों और पाण्डवों ने  द्युत क्रीड़ा को अंजाम दिया था और उसके बाद फिर द्वापर युग की पूरी राजनीति बदल गई थी। यहाँ भी  चुनावी राजनीति का रंग राजधानी जयपुर से जमना शुरू हो गया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ने एक के बाद एक चुनावी सभाएं की । इन दोनों के आने से जनता के बीच भले ही कोई बड़ी हलचल न हुई हो लेकिन दलों के भीतर भूचाल आ गया है। मोदी के मंच पर दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को बोलने का मौका नहीं मिला तो राहुल गांधी भी जाते-जाते बम फोड़ गए कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ तो हम जीत जाएंगे लेकिन राजस्थान में टक्कर कांटे की है। बेचारे अशोक गेहलोत जिन्होंने रेगिस्तान की धरती पर जितनी बारिश नहीं होती उतनी तो योजनाओं की बरसात कर दी है,केवल इतना ही कह पाए कि हम और मेहनत करेंगे। कोई बिरला नेता ही होगा जो सरे आम अपनी पार्टी के पीछे होने की बात कह जाए।  रवायत तो यही है घर में चाहे दाने ना हो लेकिन भुनाने का ढोंग पूरा करना है। तय तो यह भी हो गया है कि यदि भारतीय जनता पार्टी राजस्थान जीतती है तो भी वसुंधरा मुख्यमंत्री नहीं होंगी। 

राजस्थान बीते छह बार से एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा की सरकार बनाता आ रहा है। इस बार बारी भाजपा की है, शायद इसलिए भी भाजपा ने वसुंधरा राजे को हाशिये पर रखने का जोखिम लिया है जबकि आज भी  वे ही प्रदेश की बड़ी नेता हैं। उनकी माता जी विजया राजे सिंधिया ने जनसंघ के ज़माने से पार्टी को पाला पौसा है।अटल-आडवाणी के साथ वे बड़ी नेता थीं।  राजस्थान में वसुंधरा की मौजूदगी में भीड़ भी जुटती है अगर वे परिवर्तन यात्राओं के केंद्र में होतीं तो कथा कुछ और होती। उनकी खासियत है वे कभी विरोधी के सामने गरिमा नहीं खोतीं। केंद्र के नेतृत्व की अपेक्षा रहती है कि जोशीले और उकसाने वाले बयान प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व से भी आएं। वसुंधरा ने ऐसा तब भी नहीं किया जब उदयपुर में एक व्यक्ति कि हत्या को पूरी तरह से सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश हुई थी। केंद्र को प्रभावित करने के लिए अन्य नेताओं ने लगातार तीखे बयान दिए थे और  सनातन के मुद्दे पर भी हिंसक बयान दे रहे है। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने ऐसी ही भाषा का प्रयोग किया। सनातन का विरोध करने वालों की ज़ुबान खींच ली जाएगी और आँखें निकाल लेंगे जैसे शब्द मंत्री ने अपनी सभा में कहे। आज की सियासत को यह गलतफ़हमी हो गई है कि केवल आक्रामक भाषा और इवेंटबाज़ी से ही चुनाव जीते जा सकते हैं। मध्यप्रदेश महाराष्ट्र की सरकारें असमय गिरा दी गईं लेकिन राजस्थान में यह मुमकिन नहीं हो सका उसकी एक वजह वसुंधरा राजे की गंभीर राजनीति भी रही ।जनता के मत का मान यहाँ दोनों ही पक्ष के नेता रखते हुए दीखते हैं।  ज़ाहिर है केंद्र का नेतृत्व इस सबसे खुश नहीं होता। 

 भारतीय जनता  पार्टी को उम्मीद है कि किसी को चेहरा नहीं बनाने से उम्मीद से भरा हर चेहरा पार्टी के लिए काम करेगा। राज्यवर्धन सिंह राठौड़,गजेंद्र सिंह शेखावत, सीपी जोशी,राजेंद्र राठौड़ सब। पार्टी को भले ही इसमें  लाभ दिखाई दे सकता है लेकिन जनता चेहरा चाहती है। जनता यह भी देखती है कि पार्टी का अपना विश्वास उनके अपने नेताओं में कितना है। हाल ही में वसुंधरा राजे ने जयपुर स्थित अपने निवास पर केवल महिलाओं की बैठक की थी  और यह संख्या हज़ारों में थी। अभी से  केंद्रीय नेता लगातार राजस्थान में डेरा डाले हुए हैं। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और उपराष्ट्रपति के दौरे भी लगातार जारी हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो चुटकी भी ले चुके कि उपराष्ट्रपति अगर राष्ट्रपति बनेंगे तो भी हम स्वागत करेंगे लेकिन अभी मेहरबानी रखें। बार -बार, सुबह-शाम आ रहे हैं। इसका कोई तुक नहीं है। राजस्थान में चुनाव चल रहे हैं। बार-बार आओगे तो लोग  क्या समझेंगे। यह संवैधानिक संस्थाएं हैं इनका मान रहना चाहिए। जवाब में गजेंद्र सिंह शेखावत ने कह दिया कि अब क्या राजस्थान आने के लिए गहलोत से वीजा लेना होगा ? यूं  देश के कुल चालीस दौरों में जगदीप धनकड़ 17 बार राजस्थान आए हैं। बहरहाल गृहमंत्री अमित शाह ने जयपुर में मेराथन मीटिंग लेकर टिकटों का हिसाब -किताब तय कर दिया है। पार्टी ने सी श्रेणी में 76 और डी में 19 सीटों को रखा है जहाँ वे कमज़ोर हैं। सी श्रेणी में वे सीटें शामिल हैं जहाँ पिछले तीन चुनावों में से एक बार भी भाजपा को जीत मिली है और डी में एक भी नहीं। ऐसे में पार्टी की क्या रणनीति होगी ? बुधवार को ही एक नाम तुरंत सामने आ गया है। दक्षिण दिल्ली से  सांसद रमेश बिदुड़ी अब टोंक ज़िले का मोर्चा संभालेंगे। टोंक गुर्जर और मुस्लिम बहुल क्षेत्र है जहाँ सचिन पायलट का करिश्मा काम करता है। भाजपा उस बिदुड़ी को यहाँ लाई है जिन्होंने संसद में बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली को धार्मिक अवमानना सूचक शब्दों से संबोधित करते हुए उग्रवादी कहा था। पार्टी ने उन्हें इनाम दे दिया है। पार्टी उग्र बयानवीरों  को नवाज़ती है, यह पार्टी के सदस्यों को खूब पता है। नया केवल इतना है कि अब लोकतंत्र का मंदिर भी अखाड़ा है। 


राजस्थान में किसी एक के हक़ में कोई लहर नहीं है । वर्तमान  विधानसभा में कुल दो सौ में कांग्रेस के पास 108 और भाजपा के पास 70 सीटें हैं। जनता गहलोत सरकार को सुस्त सरकार भी नहीं कह रही है। सचिन पायलट और गहलीत के गहरे मतभेदों ने पार्टी को कमज़ोर किया लेकिन फिलहाल सचिन पायलट शांत हैं। एक झटका कांग्रेस को उस वक्त लगा जब राजस्थान के बड़े जाट नेता रहे नाथूराम मिर्धा की पौत्र वधु ज्योति मिर्धा  ने बीते सप्ताह भाजपा का दामन थाम लिया। वे एक समय नागौर से सांसद रहीं लेकिन पिछले चुनाव में उन्हें राजस्थान की राजनीति में तेज गति से उभर रहे राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल ने  उन्हें हरा दिया और उससे पहले वे भाजपा से हारी थीं। बेनीवाल छोटी पार्टियों में सशक्त माने जाते हैं और स्पष्ट बहुमत ना मिलने पर किसी की भी सरकार बनाने और बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं। फिलहाल उनके तीन विधायक हैं। मध्यप्रदेश में लाड़ली बहना योजना की चर्चा है तो यहाँ महिलाओं को स्मार्ट फ़ोन दिए जा रहे हैं। जिन्हे फ़ोन मिला है उन्होंने बताया कि इसमें अगले कुछ महीनों तक इंटरनेट मुफ्त है। यूं धरातल पर चिरंजीवी बीमा योजना भी कारगर देखी जा रही है। एक मित्र ने हैरान होकर फ़ोन पर बताया कि जयपुर के एसएमएस अस्पताल में उसकी न्यूरो सर्जरी बिलकुल मुफ्त हो गई। इसका अर्थ यह कतई नहीं लगाया जाना चाहिए कि हर गरीब को इलाज मिल रहा है। वह अब भी बिना इलाज के मरने के लिए अभिशप्त है। उसकी सीधी पहुँच अस्पतालों तक हो यह भी सरकारों को सुनिश्चित करना होगा। महिलाओं के लिहाज से राजस्थान अब भी सामंती राज्य है। बलात्कार ,ऑनर किलिंग जैसे अपराध ज़्यादा हैं। सरकारों को इस पर बहुत काम करने की ज़रुरत है। गहलोत सरकार ने एक महकमा बनाया है जिसकी कमान वरिष्ठ आईपीएस के पास है। यह विभाग अलग बिरादरी में शादी करना चाह रहे युवा जोड़ों की मदद करता  है । संभव है कि ऐसे महकमे जब वास्तव में सक्रिय होंगे तो ऑनर किलिंग के मामलों में कमी आएगी। अभी परिवार बच्चों के अन्यंत्र शादी करने पर उन्हें बहिष्कृत कर देते हैं और बेटियों को जान से मारने में भी देर नहीं करते। 

एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही भारतीय जनता पार्टी के खेमे में उत्साह है क्योंकि यहाँ की जनता हर पांच साल में रोटी पलट देती है। इस हिसाब से इस बार भाजपा को उम्मीद है लेकिन वसुंधरा को कम तवज्जो मिलना तकलीफ़ पहुंचा सकता है। वे सीएम रह चुकी हैं और वर्तमान सरकार को सीधे चुनौती देकर बता सकती हैं  कि उनके कार्यकाल में किन योजनाओं ने बेहतर किया और गहलोत सरकार ने कहाँ  मात खाई है। अखबार दोनों दलों के बड़े-बड़े इश्तेहारों  से अटे पड़े हैं। पीएम के साथ केंद्र की योजनाओं का बखान होता है और सीएम राज्य की करते हैं । प्रधनमंत्री को इनमें  भाग्य विधाता लिखा जाता है। मुकाबला पीएम बनाम सीएम का हो गया है। महिला आरक्षण बिल की गारंटी की गारंटी भी चर्चा में है। पीएम ने कहा है कि मोदी की गारंटी में लोगों को भरोसा है। वैसे राजस्थान के भाजपा नेताओं को एक डर और सता रहा है कि कहीं यहाँ भी छाताधारी सांसद और बड़े नेताओं को ना उतार दिया जाए। मध्यप्रदेश में यही हुआ है नरेंद्र सिंह तोमर ,फगन सिंह कुलस्ते,कैलाश विजयवर्गी अब विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। ऐसा भाजपा ने पश्चिम बंगाल में भी किया था लेकिन नतीजे नहीं मिले थे। कर्नाटक में भी भाजपा का कोई सीएम चेहरा नहीं था ,नतीजे यहाँ भी नहीं मिले। राजस्थान की जनता नेताओं को कस कर रखती है। वह चौपड़ पर फेंके जा रहे पासों पर पैनी निगाह रखे हुए  है।




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