गुस्से में मणिपुर, ओपेनहाइमर सब एक

हमारी सरकार की मानसिकता को समझने में हाल ही में रिलीज हुई एक हॉलीवुड फ़िल्म ओपनहाइमर बहुत मदद कर सकती है। इन दिनों भारत में किसी भी हिंदुस्तानी  फिल्म से यह ज़्यादा देखी जा रही है। यह भौतिकशास्त्री और  परमाणु वैज्ञानिक जूलियस ओपनहाइमर के उस द्वन्द को रेखांकित करती है जिसमें दूसरे विश्वयुद्ध में जापान के दो शहर परमाणु बम के हमले से नेस्तनाबूत हो चुके थे और मनुष्य इन विकिरणों के घातक हमलों से अगली  पीढ़ियों तक विकलांग होने जा  रहा था। हम सब जानते हैं हमारी सरकार आए दिन भारत को विश्वगुरु का  दर्जा दिलाने को लेकर सचेत रहती है लेकिन जब वास्तव में ऐसा अवसर आता है, वह उसका महत्व समझने की बजाय अपनी संकीर्ण मानसिकता का परिचय देने लगती है। शायद लगातार नफ़रत और गुस्से का भाव ऐसा ही व्यवहार  करने पर मजबूर कर देते हैं। बहरहाल इस फिल्म में महान वैज्ञानिक ओपनहाईमर एक दृश्य में कहते हैं कि भागवत गीता दर्शन शास्त्र की बेहतरीन पुस्तक है और उन्होंने इसे समझने के लिए संस्कृत भाषा सीखी है (यह सच है कि वैज्ञानिक ओपनहाइमर भाषा विज्ञान के भी जीनियस रहे ) लेकिन हमारे सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को नजर आया वह अंतरंग दृश्य जो इस संवाद के दरम्यान फिल्माया गया है ,वे लग गए सेंसर बोर्ड को हड़काने में । अपने ही महकमे की बखिया उधेड़ते हुए मंत्री ने कहा कि इस संवाद के समय वह दृश्य सेंसर क्यों नहीं हुआ। जबकि यह मौका था यह बताने कि आखिर इतने बड़े वैज्ञानिक को अंधेरे में रौशनी की किरण कहीं से दिखाई दी तो वह हमारी महान पुस्तक गीता से। आज हज़ारों साल बाद भी राह दिखाती हुई।  हैरानी की बात तो यह है कि मणिपुर का वह दिल दहला देने वाला भयावह वीडियो सरकार के नुमाइंदों को बोलने के लिए मजबूर नहीं करता लेकिन इस फिल्म का संदेश समझे बिना बोलना ज़रूरी हो जाता है। क्या सूचना और प्रसारण मंत्री नहीं जानते कि ओटीटी के तमाम  प्लेटफार्म पर नग्नता पर अब तक कोई प्रतिबंध नहीं लगा है।


गुस्से और आवेश का तो यह हाल है कि सरकार आज तकसंसद में विपक्ष में बैठी मालूम होती है। गुरूवार को कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने जो रौद्र रूप धारण किया एक बार तो लगा जैसे रंगमंच पर कोई दृश्य चल रहा हो। यूं तो कई अभिनेता सियासत में आए, सदन के सदस्य भी रहे लेकिन इतने चीख से भरे वक्तव्यों के उदहारण ना के बराबर हैं। फुटेज लेने और संसद में कोई अंतर ही नहीं। दरअसल मंत्री कहना चाह रहीं थीं कि क्या आपमें हिम्मत कि आप बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान और बंगाल पर बहस करें और क्या आपमें हिम्मत है कि जो आग राहुल गांधी ने मणिपुर में लगाई है उस पर बहस करें। इस तर्क के साथ तो डबल इंजन की सरकार का कोई अर्थ ही नहीं है। राहुल गांधी जाएंगे और राज्य में आग लगाकर चले जाएंगे। अब तो लगभग पूरा विपक्ष ही मणिपुर का दौरा करने जा रहा है, ऐसे में क्या करेगी सरकार? बेशक ईरानी बेहद मुखर और प्रखर नेता हैं लेकिन महिला और बाल कल्याण मंत्री  को मणिपुर पर भी विचार रखने चाहिए। 

मणिपुर की हिंसा में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं और साठ हज़ार से ज़्यादा परिवार बेघर हो चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक के  सर पर गंभीर चोट की गई और वे दिल्ली में अपना इलाज करा रहे हैं। उनकी पत्नी की  चिंता है कि अब वे शायद कभी चल नहीं पाएंगे। मणिपुर में दो समुदायों में खूनी जंग हुई है लेकिन फिर भी सरकार चुप रहना चाहती है। अब तक जिन मित्रों को हम  उनके सोशल मीडिया खातों पर  केवल मणिपुरी बतौर जानते थे उनमें से कई अब मैतेई, कुकी और नागा हो गए हैं। पिछले ढाई महीने से खामोश थे क्योंकि उनकी इंटरनेट सेवाएं बंद थीं। अब जो वे पोस्ट कर रहे हैं उसमें कहीं शांति की अपील है तो कहीं मैतेई और कुकी में बांटकर उकसाने वाली बातें। मुख्यमंत्री  एन बीरेन सिंह मैतेई समुदाय से आते हैं इसलिए उनके निष्पक्ष होने पर शक भी व्यक्त किया जा रहा है। जिस दृश्य में भीड़ महिलाओं को नग्न कर उनका जुलूस निकाल रहीं थी उनका कहना है कि उन्हें पुलिस ने अपराधियों के हवाले किया ? जिन भी राज्यों के नाम सरकार ने लिए वहां महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़े हैं लेकिन जब पुलिस भीड़ को उकसाए यानी राज्य खुद अपराध में भाग ले तो जो होता है वह मणिपुर ,गुजरात और सिखों के खिलाफ हुए दंगों की भयावह तस्वीर पेश करता है। हाल ही में  जस्टिस बी आर गवई ने खुद को राहुल गांधी से जुड़े मानहानि  मुक़दमे से अलग करने की बात कही थी क्योंकि कहा जा रहा था कि उनके परिवार के सदस्य कांग्रेस से जुड़े हैं इसलिए निर्णय प्रभावित हो सकता है। बाद में दोनों पक्षों के इंकार के बाद वे मुक़दमे में बने रहे हैं। क्या मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को लेकर दोनों पक्ष ऐसा कह सकते हैं ?

भारतीय जनता पार्टी को पसंद करने वाले कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री ने बोल तो दिया कि उन्हें बहुत तकलीफ और दर्द है लेकिन मणिपुर में तीन महीने से जारी हिंसा और नरसंहार को लेकर क्या केवल इतना कह देना पर्याप्त है ? क्या इसकी एक बड़ी वजह आदिवासियों की ज़मीन पर निगाह होना नहीं है? अफ़ीम की खेती मुद्दा नहीं है? कौन जवाब देगा क्षेत्र की जटिल व्यवस्था और जातीय संघर्ष का ? कौन बताएगा कि मैतेई केवल हिंदू नहीं है और कुकी केवल ईसाई नहीं ? कौन समझाएगा कि मैतेई में हिन्दू भी शामिल हैं और कुछ मुसलमान भी हैं और कुकी में यहूदियों के शामिल होने की भी रपट हैं। चूकिं मणिपुर से म्यांमार (बर्मा) की सीमा सटी हुई है,जनजातियों के रिश्तों की डोर भी जुड़ी है और आवाजाही भी है। आज उसी म्यांमार में सैनिक शासन है।  सीमा सील है लेकिन अब भी 80 किलोमीटर का क्षेत्र बाकी है। अंग्रेजी हुकूमत ने जब देश की सीमाएं खींची, कई गलतियां की या कहें कि उन्हें कोई मतलब भी नहीं था। हमें हैं लेकिन फिर भी उन्हीं आड़ी -टेढ़ी लकीरों को सीने से लगाए हुए हैं। यह सीधे कोई धार्मिक संघर्ष नहीं है लेकिन बाद में यह पहचान भी जुड़ने लगती  है। मैतेई समुदाय को अंग्रेजों ने जनजाति  माना था। इतने साल के बाद जब देश में आरक्षण का लाभ देखकर कुछ और भी समुदाय बाद में  एसटी में  शामिल किये गए तब अन्य में  यह ख़्वाहिश और भी ज़ोर पकड़ने लगती है। वोटों की सियासत ने हमेशा इसे बढ़ावा दिया लेकिन चुनाव अभी दूर हैं,पहले मणिपुर का ज़ख्म भरना है।


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