मणिपुर :अफसोस ये दुष्कर्म राज्य प्रायोजित हैं

मणिपुर का केवल एक वीडिओ देखकर उद्वेलित मत होइए। ऐसी कई घटनाएं हैं जो पिछले सत्तर दिनों में वहां हुई है। उस महिला के भाई को मार दिया जाता है और उसके साथ तीन महिलाओं को भीड़ के सामने नग्न कर दिया जाता है।किस बर्बर युग में जी रहे हैं हम? कहां छिपाएं खुद को?

महिलाओं को हथियार बनाकर बदला लेने का तरीका आज़ाद भारत में आज भी हर जगह दिखाई देता है लेकिन अब जो हो रहा है उसे राज्य प्रायोजित हिंसा और दुष्कर्म कहा जाना चाहिए। पीड़िता के बयान हैं कि उसे मणिपुर पुलिस ने दरिंदों के हवाले किया। गुजरात में बिलकिस बानो को जो आप भूलेंगे तो ऐसी कई लोमहर्षक और हैवानियत भरी घटनाओं के लिए भी  तैयार रहना होगा । गर्भवती  बिलकिस बानो के परिवार के सदस्यों की हत्या के बाद उसके साथ बलात्कार और फिर उसके सज़ायाफ़्ता अपराधियों का समय से पहले जेल से छूटना ,कौन कहेगा कि  इस देश के राज्य स्त्री को सुरक्षा देते हैं। 2002 का गुजरात हो या आज का मणिपुर , मुख्यमंत्रियों की भाषा पर गौर कीजिये ।क्या ज़िम्मा लेंगे ये महिलाओं की सुरक्षा का। और पीछे जाएं तो विभाजन के समय भी दोनों और की महिलाओं को बदले की भावना से रौंदा गया, कुचला गया। सआदत हसन मंटो की कहानी खोल दो युवा लड़की की ऐसी कहानी है जिसमें  मानवता सदियों तक सिसकती रहेगी और अब मणिपुर की महिलाओं के साथ भी वैसी ही दरिंदगी ,वैसी ही बर्बरता। उस पर मुख्यमंत्री वीरेन सिंह कहते हैं ऐसे कई मामले हिंसा के दौरान राज्य में हुए हैं। तब क्यों चाहिए हम स्त्रियों को किसी भी राज्य में कोई भी सरकार। हमें अपने हाल पर छोड़ दें। जो भी होगा इससे बहुत बेहतर होगा। इस देश की हर नब्ज़ को सुन लेने वाले इसके मुखिया को भी सत्तर दिन से ज़्यादा लग गए ,संवेदनशील मणिपुर के दर्द और शर्म को महसूस करने में। वोट लेने के लिए चुप्पी तोड़ने और ओढ़ने वाली ऐसी सरकारों से नफरत है, हम स्त्रियों को ।  


इन घटनाओं का उस राज्य से सामने आना जहाँ सामाजिक जीवन में महिलाओं की जबरदस्त भागीदारी भागीदारी  है। वे परिवार के मुखिया की तरह ही समस्त ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करती हैं। वहां स्त्रियों के आत्मबल को यूं तोड़ना, देश को हिसाब तो मांगना ही चाहिए। किसने बनाए ऐसे हालत कि आज वहां कोई डॉक्टर,इंजीनियर या पुलिस नहीं बल्कि मैतेई और कुकी हैं । कल को देश में आप ऐसे हालात बना दोगे। अफ़सोस विभाजन की इस सियासत को इन नए हुक्मरानों ने केवल  आगे नहीं बढ़ाया है बल्कि और धार दी है। मार्च, 2022 में ही भारतीय जनता पार्टी ने वहां लगातार दूसरी बार सरकार बनाई थी। 60 में से 37 विधायक भाजपा के ही हैं। लंबे समय से डबल इंजन की सरकार है लेकिन फिर भी मणिपुर हिंसक आग में जलने दिया गया ? मिज़ोरम,असम ,नगालैंड और म्यांमार से घिरा हुआ मणिपुर ने  देश को बड़ी  प्रतिभाओं से  रूबरू कराया है। बॉक्सर मेरी कोम, वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ,कुंजू रानी जैसे दिग्गज खिलाड़ियों के प्रदेश में कुछ ठीक नहीं है। एक्टिविस्ट इरोम शर्मीला, जिन्हें देश 'आयरन लेडी'  के नाम से जानता है, उन्होंने एक कानून के खिलाफ 16 साल तक अपना अनशन जारी रखा था वे आज कह रही हैं कि मैं बहुत असहाय महसूस कर रही हूं । मैंने मैतेई मित्र से भी बात की और कुकी मित्र से भी लेकिन दोनों जैसे दो छोर पर खड़े हैं। भारत सरकार को इसकी बहुत  चिंता होनी चाहिए थी क्योंकि सीमावर्ती इलाकों में जहाँ चीन जैसा दुश्मन अपनी गिद्ध दृष्टि डाले हुए हैं वहां के लिए सरकार यूं अनजान कैसे बनी रही ? म्यांमार भी मणिपुर की सीमा से लगा देश हैं जहाँ सेना की तानाशाही चलती है। आंग सान सू की का लंबा संघर्ष भी म्यांमार को लोकतंत्र की रौशनी नहीं दिखा पाया। किसी भी सरकार की ऐसी गलती कभी माफ़  नहीं की जानी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने प्रसंज्ञान ले लिया है।  यह उम्मीद देता है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा है कि यह सर्वथा अस्वीकार्य है। आप एक्शन लें अन्यथा हम लेंगे।  

 इससे पहले मार्च 2023 में मणिपुर उच्च  न्यायालय ने राज्य सरकार से कहा था कि वह राज्य की आबादी में 53 प्रतिशत हिस्सा रखने वाले मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए चार हफ़्तों में केंद्र को सिफारिश भेजे। इसके बाद आदिवासी स्टूडेंट यूनियन का बड़ा प्रदर्शन हुआ।  हालात इतने हिंसक हो जाएंगे, इसका आभास सरकार को होना चाहिए था क्योंकि सैकड़ों जानें गई  हैं। तृणमूल कांग्रेस की राज्यसभा सांसद सुष्मिता देव ने भी चेताया था कि  कि पूर्वोत्तर बहुत संवेदनशील क्षेत्र है जहां  विभिन्न जातीय समुदायों के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। चुनाव जीतना और सुशासन दो अलग-अलग पहलू हैं। सांसद का आरोप था कि भाजपा पूर्वोत्तर के डीएनए को नहीं समझती है जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नारा था कि पूर्वोत्तर अष्टलक्ष्मी है, उसे भाजपा के कमल की ज़रूरत है। फिर भी ऐसे हालात क्यों बने देश जानना चाहता है। 

इस सप्ताह राजनीति में जो साझा रणनीति का आगाज़ हुआ है वहीं से हलकी रौशनी भी फूटती दिखाई देती है । विभाजनकारी मानसिकता की राजनीति ने देश और समाज को इस कदर नुकसान  पहुंचाया है कि व्यक्ति बंटा हुआ महसूस करता है। इधर विपक्षी दलों की एकता का नया नाम इंडिया  (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायन्स ) आया तो प्रधानमंत्री ने एनडीए की व्याख्या ही नए सिरे से कर दी।उन्होंने कहा एन से न्यू इंडिया के लिए, डी से डेवलप्ड नेशन के लिए और ए से एस्पिरशन ऑफ़ पीपल एंड रीजन के लिए। नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स के इस विस्तार की क्या वाकई कोई ज़रुरत थी या ये इंडिया का प्रतिउत्तर था। एनडीए को सभी नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स बतौर जानते हैं।   इंडिया में 'इंक्लूसिव' शब्द की व्याख्या इसी तरह की गई है जिसमें ,अल्पसंख्यक ,आदिवासी ,दलित और आखिरी व्यक्ति तक विकास की पहुंचाने की बात की गई है। कांग्रेस की सरकारें अपने राज्यों में इस समय लोक  कल्याणकारी नीतियों पर काम करती हुई दिख रही है। राजस्थान की सरकार ने बुधवार को रोजगार की गारंटी से जुड़ा बिल पास कर दिया जिसके तहत राज्य की वयस्क आबादी न्यूनतम 125 दिन के  रोज़गार या पेंशन की हकदार होगी। राजस्थान में बढ़ते अपराध पर भी सरकार को नियंत्रण करना चाहिए। इंडिया के नाम को मास्टर स्ट्रोक कहा जा सकता है क्योंकि यूपीए का यह नया नाम कुछ ही देर में ट्रेंड  करने लगा था जबकि सच कहा जाए तो इसका पूरा नाम बड़ा ही जटिल है और तुरंत ज़बान पर चढ़ता भी नहीं है।  बहरहाल ,पटना से बैंगलुरु तक चला विपक्ष का यह सिलसिला अब अगस्त के मध्य में मुंबई में जुटेगा। यहां शिवसेना मेज़बानी में होगी।  इंडिया और एनडीए दोनों का पुनर्गठन  बताता है कि भारतीय राजनीति में अकेले की कोई जगह  नहीं, यह जुड़कर ही चलेगी। तमाम एकतरफा निर्णय देश को कोई सार्थक नतीजे नहीं दे पाए हैं । मणिपुर भी साझा पहल का इंतज़ार कर रहा है। महिलाओं  के साथ हुए हर अत्याचार और बलात्कार के मामले दर्ज़ हों और उन्हें न्याय का मिलना सुनिश्चित हो। पुलिस को सबकी  रिपोर्ट दर्ज़ करनी चाहिए बिना उनकी पहचान में प्रवेश किये। 


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