मणिपुर का विश्वास जीते यह अविश्वास प्रस्ताव
अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर है। उन्होंने भारत मंडपम के नए भवन के उद्घाटन कार्यक्रम में कह दिया कि 2024 में वे लौट रहे हैं और वे इसकी गारंटी देते हैं । उन्होंने कहा कि 2014 में भारत की अर्थव्यवस्था दसवें पर आई,उन्नीस में पहले पांच में और 2024 के बाद यह विश्व की पहले तीन में होगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि मणिपुर के सांसद गौरव गोगोई के अविश्वास प्रस्ताव पर गंभीर चर्चा होगी और इस मंथन से कोई रास्ता ज़रूर निकलेगा। कांग्रेस के सांसद गौरव गोगोई ने कहा -" उन्हें बहुत अच्छे से इंडिया गठबंधन के सांसदों की संख्या का अंदाज़ा है लेकिन बात संख्याबल की नहीं है, मणिपुर के भाइयों और बहनों को यह संदेश देना है कि भले ही प्रधानमंत्री मोदी जी मणिपुर को भूल चुके हैं लेकिन इंडिया गठजोड़ उनके हक़ की लड़ाई को संसद में लड़ रहा है। प्रधनमंत्री संसद के बाहर नहीं भीतर संबोधित करें क्योंकि अब यह बात दूसरे प्रदेशों में भी फैल रही है जो राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता के हित में नहीं।" सियासी नज़रिये से देखें तो यह इंडिया गठबंधन की बड़ी सफलता होगी अगर हर पार्टी को बोलने का मौका मिले और सत्ताधारी दल भी मणिपुर की नब्ज़ पर हाथ रखकर बात करे। इतिहास में लगे आरोपों का ज़िक्र कोई मायने नहीं रखेगा। इससे पहले पीएम इंडिया गठबंधन पर तंज़ कसते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी ,इंडियन मुजाहिदीन से जोड़ते हुए कहा था कि इंडिया नाम तो यहाँ भी है लेकिन यह विपक्ष दिशाहीन और गुमराह करने वाला है। सदन के भीतर भी बहस इस तरफ मुड़ी तो मणिपुर पर सार्थक चर्चा नहीं हो सकेगी। इससे पहले आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह को इस पूरे मानसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया लेकिन ऐसा पहली बार देखा गया कि कांग्रेस के प्रवक्ता कह रहे थे कि एक उचित मांग करने वाले हमारे इंडिया के सांसद को बेवजह निलंबित किया गया।
मणिपुर में महिलाओं को भीड़ नग्न कर उनका जूलूस निकालने के दृष्य सामने आने के बाद पूरी दुनिया भारत की चर्चा कर रही है आखिर किस बर्बर युग में जी रहे हैं हम? एक भीड़ एक परिवार पर इसलिए हमला करती है क्योंकि उसकी पत्नी मैतेई समुदाय से है। महिलाओं को हथियार बनाकर बदला लेना आदिम युग की पैरवी करता है लेकिन हम आज भी वहीं के वहीं हैं। उलटे अब जो हो रहा है उसे क्यों न राज्य प्रायोजित हिंसाऔर दुष्कर्म कहा जाए। पीड़िता के बयान हैं कि उसे मणिपुर पुलिस ने दरिंदों के हवाले किया। गुजरात में बिलकिस बानो को जो आप भूलेंगे तब आप आगे भी नाकाम होंगे । गर्भवती बिलकिस बानो के परिवार के सदस्यों की हत्या के बाद उसके साथ बलात्कार और फिर उसके सज़ायाफ़्ता अपराधियों का समय से पहले जेल से छूटना ,कौन कहेगा कि इस देश के राज्य स्त्री को सुरक्षा देते हैं। 2002 का गुजरात हो या आज का मणिपुर, मुख्यमंत्रियों की भाषा पर गौर कीजिये।क्या ज़िम्मा लेंगे ये महिलाओं की सुरक्षा का। मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह कहते हैं ऐसे कई मामले हिंसा के दौरान राज्य में हुए हैं। इन घटनाओं का उस राज्य से सामने आना जहाँ सामाजिक जीवन में महिलाओं की जबरदस्त भागीदारी है। वे परिवार के मुखिया की तरह ही समस्त ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करती हैं। वहां स्त्रियों के आत्मबल का यूं टूटना अच्छे संकेत नहीं हैं। जवाबदेही तो तय होनी चाहिए किस ऐसे हालात क्यों बने कि आज हर कोई मणिपुर में मैतेई, कुकी और नागा है ?
राजस्थान ,बिहार, बंगाल की घटनाएं बहुत निंदनीय हैं लेकिन उन्हें मणिपुर से जोड़ देना मणिपुर की तकलीफ को नहीं समझने जैसा है। एक ख़तरनाक सिलसिला जो मणिपुर हिंसा के बाद शुरू किया गया है वह है भारत के मुख्या न्यायाधीश को निशाना बनाने का ,उन्हें ट्रोल करने का क्योंकि उन्होंने मणिपुर घटना का प्रसंज्ञान लेते हुए सरकार से कहा कि आप कार्रवाई कीजिये नहीं तो हम करेंगे। बौखलाई ट्रोल आर्मी ने जस्टिस चंद्रचूड़ सिंह की दो व्हील चेयर पर बैठी बेटियों की तस्वीर साझा करते हुए लिखा कि जैसे कर्म आपके होंगे, वैसा ही फल आपको मिलेगा। अव्वल तो ये दोनों बेटियां उनकी गोद ली हुई हैं। उनके दोनों बेटे खुद वकील हैं। अगर जो बेटियां ऐसी हों तब भी इसे कर्म का फल बताकर अपमानित करने से हम कब बाज़ आएंगे। ऐसा कहकर हमने कितने ही भारतियों को अन्धकार और निराशा के दलदल में धकेल दिया है। कमज़ोर तबका इसी को अपना भाग्य मान खुद को कोसने लगता है और ख़राब निज़ाम हमेशा ऐसे ही मौके की तलाश में रहता है। बहरहाल हमारी पीढ़ी ने अपना बचपन मणिपुरी की समृद्ध संस्कृति को टीवी पर देखते हुए बिताया है। हरे जंगलों में बांस को जोड़कर,अलग कर उसके चौखाने में नाचती लड़कियां और सुन्दर वेशभूषा में कृष्ण लीला की अठखेलियां। भारत उसी मणिपुर को जानता है। उसके जनजातीय विभाजन को नहीं।
भारतीय जनता पार्टी को पसंद करने वाले कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री ने बोल तो दिया कि उन्हें बहुत तकलीफ और दर्द है मणिपुर को लेकर लेकिन बिहार और राजस्थान में भी यही सब नहीं हो रहा है ? मणिपुर में तीन महीने से जारी हिंसा और नरसंहार को लेकर क्या केवल इतना कह देना पर्याप्त है ? क्या इसकी एक बड़ी वजह आदिवासियों की ज़मीन पर निगाह होना भी नहीं है? अफ़ीम की खेती भी मुद्दा नहीं है? कौन जवाब देगा क्षेत्र की जटिल व्यवस्था और जातीय संघर्ष का ? कौन बताएगा कि मैतेई केवल हिंदू नहीं है और कुकी केवल ईसाई नहीं ? कौन समझाएगा कि मैतेई में हिन्दू भी शामिल हैं और कुछ मुसलमान भी और कुकी में यहूदियों के शामिल होने की भी रपट हैं। चूकिं मणिपुर से म्यांमार (बर्मा) की सीमा सटी हुई है,जनजातियों के रिश्तों की डोर भी जुड़ी है और आवाजाही भी है। आज उसी म्यांमार में सैनिक शासन है और आन सांग सू की लम्बी लड़ाई भी कुछ ज़्यादा असर नहीं दिखा पाई। सीमा सील है लेकिन अब भी 80 किलोमीटर का क्षेत्र बाकी है। इसे कुछ इस तरह से भी समझा जा सकता है जैसे पंजाब का एक हिस्सा पाकिस्तान में है लेकिन भाषा,खानपान, पहनावा एकसमान होने से दोनों और के लोग एक जुड़ाव तो महसूस करते हैं। एक पुरानी हिंदी फिल्म में एक गीत भी है मेरे पिया गए रंगून,वहां से किया है टेलीफोन... यह रंगून म्यांमार की राजधानी है। अंग्रेजी हुकूमत ने जब देश की सीमाएं खींची, कई गलतियां की या कहें कि उन्हें कोई मतलब भी नहीं था और आज उन्हीं आड़ी -टेढ़ी लकीरों को सीने से लगाए हुए हैं। यह सीधे कोई धार्मिक संघर्ष नहीं है लेकिन बाद में यह पहचान भी जुड़ने लगती है। मैतेई समुदाय को अंग्रेजों ने जनजाति माना था। इतने साल के बाद जब देश में आरक्षण का लाभ देखकर कुछ और भी समुदाय बाद में एसटी में शामिल हुए हैं यह ख़्वाहिश और भी ज़ोर पकड़ने लगी है क्योंकि इसके बाद वे मुख्यधारा में आई हैं। वोटों की सियासत ने हमेशा इसे बढ़ावा ही दिया। मार्च 2023 में मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से कहा था कि वह राज्य की आबादी में 53 प्रतिशत हिस्सा रखने वाले मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए चार हफ़्तों में केंद्र को सिफारिश भेजे। इसके बाद जो हुआ सामने है। बहुत ज़रूरी है देश के मुखिया मणिपुर और देश को अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विश्वास में लें।
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