काले नहीं हैं ओबामा


ओबामा न तो काले हैं ना ही गोरे, `काले-गोरे´ हैं। काले पिता और गोरी मां की संतान। हाइब्रिड ओबामा। संकरित ओबामा। सारी दुनिया एक जैसी सोच की शिकार है। फिफ्टी-फिफ्टी को सौ फीसदी काला बना दिया। बहरहाल दो संस्कृतियों में पला-बढ़ा शख्स दुनिया को एक आंख से तो नहीं देखेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे ब्लैक एंड वाइट के बीच बिखरे बहुत से रंगों की पहचान रखते होंगे
ओबामा..ओबामा..ओबामा.. हर तरफ यही गूंज। सोचा था ब्लॉग पर नहीं करूंगी ओबामा का जिक्र। कुछ लोगों की तकलीफ भी थी कि ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं हमारे नहीं। वह अमेरिका जो दुनिया पर दादागिरी करने में यकीन रखता है। ओबामा भी अमेरिकी प्रशासन का मोहरा भर होंगे।राष्ट्रपति ओबामा बने या मैक्केन हम क्यों फूल कर कुप्पा हुए जा रहे हैं। माफ कीजिएगा दोस्तो, फूलने की वजह है। वे युवा हैं। इतना बढ़िया बोलते हैं कि अमेरिकी ही नहीं, दुनिया के किसी भी हिस्से में रहने वाला वोटर उन्हें वोट देने का मन बना लेता है। वे पत्नी मिशेल और दो बेटियों के साथ पारिवारिक मूल्यों में भरोसा करते हुए नजर आते हैं और लास्ट बट नॉट लीस्ट, वे काले हैं। हमारे जैसे काले, जिनका गोरों ने हमेशा मजाक उड़ाया है। हेय समझा है। दोयम माना है। ओबामा बेहतर दुनिया की अपेक्षा जगाते हैं क्योंकि वे न तो काले हैं ना ही गोरे, `काले-गोरे´ हैं। काले पिता और गोरी मां की संतान। हाइब्रिड ओबामा। संकरित ओबामा। सारी दुनिया एक जैसी सोच की शिकार है। फिफ्टी-फिफ्टी को सौ फीसदी काला बना दिया। बहरहाल दो संस्कृतियों में पला-बढ़ा शख्स दुनिया को एक आंख से तो नहीं देखेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे ब्लैक एंड वाइट के बीच बिखरे बहुत से रंगों की पहचान रखते होंगे हुसैन ओबामा से प्रीत बेवजह नहीं लगती। वे पहले एफ्रो-अमेरिकन राष्ट्रपति हैं। पिता 1961 में अर्थशास्त्र की पढ़ाई करने के लिए कीनिया से अमेरिका आए थे। वहीं विश्वविद्यालय में मां एना डुनहेम से मुलाकात हुई। 1963 में ही ओबामा के माता-पिता अलग हो गए। 1967 में मां ने दूसरी शादी की और इंडोनेशिया चली गईं। जाहिर है ओबामा किसी संस्कृति विशेष की नहीं बल्कि संस्कृतियों के मिलन का नतीजा है और समूची दुनिया अगर दीवानी हो रही है तो उसे अब्दुल्लाह नहीं कहा जाना चाहिए। आशा की जानी चाहिए कि यह दुनिया वसुधैव कुटुंबकम यानी एक परिवार की भारतीय सोच में भरोसा कर रही है।युवाओं के देश भारत की खुशी बताती है कि हमारे नौजवान जाति और धर्म की ऊंची दीवारों से बाहर निकलना चाहते हैं। वे किसी दलित, जाट, मीणा, brahmanमें अपना नेता नहीं खोजना चाह रहे बल्कि उत्साह से भरपूर एक ऐसे लीडर की तलाश में हैं जो `संकरित बीज´ की तरह मजबूत और ऊर्जा से लबरेज हो। ओबामा ने पूरे प्रचार में कहीं कलर कार्ड नहीं खेला और न ही जीत के बाद रंगभेद की बात की। बात की तो साथ काम करने और सफलता पाने की। यस वी केन उनका ध्येय वाक्य था। खुश हो सकते हैं कि ओबामा के प्रचार में सुकेतु मेहता, सलमान रश्दी,किरण देसाई,झुंपा लाहिडी़, मीरा नायर जैसी भारतीय मूल की हस्तियां शामिल रहीं। ओबामा पर छाई खुशी तो यही बताती है । क्यों हमें बीज तो संकरित चाहिए लेकिन इनसान एकदम खालिस? क्रॉसब्रीड हमें गाली लगती है। क्या हम अपने प्रजातंत्र में क्रॉस ब्रीड उम्मीदवार का दखल देख सकते हैं? अन्य क्षेत्रों में तो वे जौहर दिखा ही रहे हैं। लगता तो है, यस वी के न ।

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