न्यू यॉर्क के बहाने...


स्लमडॉग मिलिनेअर के बाद, कल संडे को थिएटर का रुख किया। फिल्मों के मामले में खांटी भारतीय हूं, न्यू यॉर्क तक चली गई।[लगा था की फिल्म एवेंइ होगी] अंधेरे में चमकती रुपहली स्क्रीन स्पंदित करती है और न्यू यॉर्क ने तो दिल और दिमाग दोनों को। कबीर नाम से गहरा फेसिनेशन रहा है। चक दे इंडिया का पात्र कबीर खान भी पसंद रहा. संत कबीर के प्रति गहरी आसक्ति है और अब कबीर खान यानी न्यू यॉर्क के डायरेक्टर।
क्या खास है जो न्यूयार्क पर लिखने के लिए बाध्य करता है। कैटरीना, जॉन या नील नितिन मुकेश या फिर हमारे जयपुर के इरफान खान? लेकिन वह घटना जो अमरीकी इतिहास में नासूर की तरह दर्ज हो गई। 9/11 का हादसा कई दिलों में नश्तर चुभो गया। पहले मरने वालों के परिजनों के दिलों में और फिर एक खास मजहब के सीनों में। दर्द में कराहते अमरीका में उन दिनों एफबीआई ने 1200 लोगों को हिरासत में लेकर तफ्तीश की थी जिनका बस नाम ही काफी था। इन कथित कैदियों के दिलों में चुभे नश्तर से फूटता लावा ही न्यू यॉर्क है।
प्रख्यात स्तंभकार आदरणीय जयप्रकाश चौकसे जी सही फरमाते हैं कि पाकिस्तानी फिल्म खुदा के लिए´ देखने के बाद न्यू यॉर्क क्लासिक नहीं लग पाती। बाअदब सौ फीसदी सही लेकिन 'सर खुदा के लिए'... आज कितने भारतीय देख पाए हैं। new york ke liye जयपुर का फर्स्ट सिनेमा खचाखच भरा था। जॉन, कैटरीना जैसी पॉपुलर स्टार कास्ट युवाओं को गर्मी भरी दोपहरी में हॉल तक खींच लाई थी। इतनी बड़ी तादाद में कॉलेज गोइंग यूथ को खुदा के लिए...में देख पाना संभव नहीं।
उमर एजाज (नील नितिन मुकेश) को पहले एक मासूम प्रेमी और फिर एफबीआई के लिए इस्तेमाल होते देखना कतई यह आभास नहीं देता कि वे कमजोर कलाकार हैं। ही लुक्स गुड...। उनके दादा और बेहतरीन गायक मुकेश अभिनेता बनने ही मायानगरी आए थे। ख्वाब तीसरी पीढ़ी में साकार हुआ। इरफान खान स्लमडॉग... में भी एक निरपराध अपराधी को डिटेन कर रहे थे और यहां भी . वहां भारतीय खाकी वर्दी का बोझ था यहां एफबीआई का रौब है। इटालियन बीबी का बनाया पास्ता खाकर भले ही उनका पेट गड़बड़ाया हो लेकिन अंत में आतंकी इरादों वाले पिता के बच्चे के आग्रह पर पास्ता खाना टाल नहीं पाते। यही शायद मैसेज भी है कि अन्याय के बावजूद नफरत की पुरानी दुनिया में तड़पने की बजाए उम्मीद की नई दुनिया हमें ही रचनी होगी। हैट्स ऑफ कबीर खान। यहां junoon सा सीने में दिखाई देता है ... मसालों और तड़कों के बीच पौष्टिक आहार देने का। यही शायद सिनेमा का उद्देश्य है। न्यू यॉर्क के बहाने ही सही देश में भी ऐसे हालात रचने से हमें भी बचना होगा।

टिप्पणियाँ

  1. कल ही खचाखच भरे सिनेमा हॉल में ये फिल्म देखी है.. सुबह जयप्रकाश चौकसे को भी पढ़ा.. उनका कहना भी सही है.. यदि फिल्म में मंजे हुए कलाकार होते तो फिल्म ऑर मजबूत होती.. पर मुझे तो ये भी पसंद आई है..

    जवाब देंहटाएं
  2. संवेदनशील पोस्ट है
    इसमें जयप्रकाश चोकसे साहब का ज़िक्र आते ही चहरे पर मुस्कान फ़ैल गयी ये मेरे प्रिय स्तंभकार है इन दिनों... शेष पोस्ट के बारे में लिखता हूँ बाद में.

    जवाब देंहटाएं
  3. काफी सुना इसके बारे में..देखने का मन बना हुआ है.

    जवाब देंहटाएं
  4. शुक्रिया! आपकी पोस्ट पढ़ ली है - अब तीन घंटे किसी बेहतर काम में गुजारे जा सकते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  5. New york dekh chuka hoon koi khas pic nahin lagi.saath hi jai prakash chouksey ki baat ekdam sahi hai.

    जवाब देंहटाएं
  6. read jaiprakash's coment abt ra.one nd srk..i dnt think he z no more dan a paid agent of salman khan..i heard he contributed in d script of bodyguard too..i must say isse vahiyat or ghatiya movie mene dekhi ni kabi..so jaiprakash beta pehle khud ko dekh haan..

    जवाब देंहटाएं
  7. J.P. ji likhte to bahot achha hai par han mai sehmat hun ki unka jhukaav toda salmaan ki taraf jyada rahta hai..

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वंदे मातरम्-यानी मां, तुझे सलाम

सौ रुपये में nude pose

एप्पल का वह हिस्सा जो कटा हुआ है