मोहब्बत के शहर से


अर्से से 
संभाल रखी थी 
मोहब्बत की धरोहर के लिए मशहूर 
शहर से लाई एक सफ़ेद प्लेट
उसकी संग ए मरमरी जाली के पास कई रंग थे 
इक-दूजे की खूबसूरती में लिपटे 
आज, वह प्लेट टूट गयी 
रंग बिखर गए 
सिर्फ सफ़ेद नज़र आता है अब
टूटी यादों को फेंका नहीं उसने
जोड़ा और सहेज लिया

खुद को भी कहाँ फेंका उसने
सहेज रखा है 
अक्षत वनपीस की तरह.

टिप्पणियाँ

  1. खुद को भी कहाँ फेंका उसने
    सहेज रखा है
    अक्षत वनपीस की तरह...बहुत कुछ कह दिया और साबित कर दिया

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  2. अक्षत वनपीस....

    हर हाल में संवरना है ....बिखरना नहीं....

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  3. खुद को भी कहाँ फेंका उसने
    सहेज रखा है
    अक्षत वनपीस की तरह.
    वाह ...बहुत ही बढिया।

    जवाब देंहटाएं
  4. मन को एक बनाये संजोये रखना है, जीवन भर।

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  5. yadi aap mere dwara sampadit kavy sangrah mein shamil hona chahte hain to sampark karen
    rasprabha@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  6. वर्षा मैम

    बहुत ही खूबसूरत और तरोताजा रचना...

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  7. achchhi pankti ke liye badhayee. pradeep mishra indore

    जवाब देंहटाएं
  8. खुद को भी कहाँ फेंका उसने
    सहेज रखा है
    अक्षत वनपीस की तरह.

    ....................

    जवाब देंहटाएं
  9. bahut abhaar aur shukriya rashmiji,monikaji,anamilakaji,praveenji, sandeepji, aur donon pradeepj ka.

    जवाब देंहटाएं
  10. bahut abhaar aur shukriya rashmiji,monikaji,anamilakaji,praveenji, sandeepji, aur donon pradeepj ka.

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुन्दर....
    जाने क्या क्या व्यक्त हो गया इन चंद अल्फाजों में...
    बहुत खूब.......

    अनु

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