मुलाकात प्रेम शिकवा

शिकवा 



मैंने देखा आज सूरज को 
बड़ी तसल्ली और करार से 
ओझल होता है 
पहाड़ नहीं हैं 
मेरे घर के आस-पास 
बिजली घर के पीछे ही चला गया 
कल फिर आने के लिए
और तुम?
यूं ही
अकस्मात्
अनायास
अचानक
कहाँ चले
गए मेरे यार
जाने कहाँ
उदय होने के लिए ?
नहीं सोचा इस हरेपन को
तुम्हारी ही रश्मियों की आदत है


***


 

मुलाक़ात


तुम्हें याद करते हुए
जब घिर आई
आँखों में नमी
खुद से कहा
जाओ मेरी रूह
मुलाकात का वक़्त
ख़त्म हुआ |


***







प्रेम 


ऐ शुक्र तेरा शुक्रिया
कि आज तमतमाए सूरज पर
तुम किसी
खूबसूरत तिल
की तरह मौजूद थे.
क्या हुआ...
सुबह ठंडी थी
और परिंदे हैरान
प्रेम यूं भी लाता है
खुशियों के पैगाम
सौ साल में एक बार.


*** 

टिप्पणियाँ

  1. यूं ही अकस्मात्, अनायास, अचानक चले जाना कचोटता तो है ...और फिर मुलाकातें रूहों से सी हुआ करती हैं..... तीनों रचनाएँ भावुक करती हैं...............

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  2. bahut nishthur he ya suraj chand aur tare kabhi puri kaynat me chamak bhar dete he to kabhi yakbayak doob jate he. inse ibrat lekar desh dununia me chamkne wala insan jab doobta he to phir uday nahi hota. asman ke ye chmkile khilone is tarah dharti ke kai sitaro ko apne pas bula chuke he. magar dil ke kisi kone me aur aanko ki nami ke sath wo hamesha hi hamare sath hote he. ap ki teeno kavitaye man ko chhu ti he

    जवाब देंहटाएं
  3. हरी पत्तियों को लाल सूरज की आदत पड़ जाती है, यह भी न सोचा...
    बहुत ही सुन्दर रचना..

    जवाब देंहटाएं
  4. वेदना भी प्रेम मै ऐसी भीगी ... अभिव्यक्तियाँ सीधे अंतर्मन को छूती है!

    जवाब देंहटाएं
  5. dr. monika, agyatji, praveenji aur vaniji shukriya aapke comments ke liye.

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह....
    बहुत प्यारी रचनाएँ...

    लाजवाब.

    अनु

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  7. मुलाक़ात और प्रेम बहुत पसंद आयीं.

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