तुम्हारे बाजू में























तुम नहीं थे
तुम थे
तुम नहीं हो
 तुम हो
तुम्हारे होने या न होने के बीच
मैं कहाँ हूँ
ठीक वहीँ, जहाँ तुम हो
तुम्हारे बाजू में   .

मैंने तुम्हें
न खोया
न पाया
न लिबास के रंग बदले

इस आने - जाने पर
न धातुएं ओढ़ी 
न माथा  ही रंगा
फिर ये किस रंग  में रंगी हूँ मैं?
तेरा है ये  रंग
तेरी रूह  पैबस्त है  मेरे भीतर

...और रूह कहीं नहीं आती-जाती
जिस्म आते -जाते हैं |

टिप्पणियाँ

  1. साथ के मायने तो यही हैं, आत्माएं आपस में जुड़ जाये.....

    जवाब देंहटाएं
  2. स्मृतियाँ शरीर में व्याप्त हो जाती हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह......
    आखरी पक्तियों में रूह बसी है....
    बहुत सुन्दर!!

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  4. sangeeta ji, dr. monika, yashwantji, praveenji,reenaji, anuji, rrashmi ji aap sabka bahut shukriya.

    जवाब देंहटाएं

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