आख़िर क्यों भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या लगातार घट रही है ?यहां तक की भूटान, नेपाल और अरब देश भी हमसे आगे हैं और पाकिस्तान केवल एक पायदान ही नीचे। आज महिला दिवस के दिन इन कारणों का जानना बहुत ज़रूरी है कि दिन-रात के परिश्रम के बाद भी उसके हिस्से घुटन और आर्थिक निर्णय ना ले पाने की मजबूरी क्यों है ? एक फ़िल्म ने जैसे इस पर बात करने के लिए सबको दिशा दे दी है कि केवल मिसेज़ बने रह कर हालात नहीं बदले जा सकते पुरुष यूं तो रसोई में सादियों से है और क्या खूब है लेकिन जब बात परिवार की रसोई में कामकाज की आती है तो वह ऐसे गायब होते हैं जैसे खाने से नमक। परिवार नामक इकाई में खाना बनाना केवल स्त्री का दायित्व है। पुरुष कभी-कभार किचन में आते भी हैं तो वह किसी उत्सव से कम नहीं होता। प्याज़, टमाटर,मसाले तैयार कर दो, साहब मसालेदार डिश बना देंगे। फिर घर में सिर्फ वाह-वाही होगी। बातें होंगी कि साहब यूं तो बाहर जाकर रोज़ी कमाते हैं लेकिन आज तो रोटी भी बनाई है। महिलाओं के जिम्मे खाना बनाने का यह काम हमेशा बिना भुगतान के ही रहा है। हिसाब लगाया जाए कि जो काम महिलाएं घर में करती हैं, उ...
बिलकुल सही कहा ... सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसाथ के मायने तो यही हैं, आत्माएं आपस में जुड़ जाये.....
जवाब देंहटाएंस्मृतियाँ शरीर में व्याप्त हो जाती हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएं:-)
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएं:-)
वाह......
जवाब देंहटाएंआखरी पक्तियों में रूह बसी है....
बहुत सुन्दर!!
अनु
वाह...
जवाब देंहटाएंsangeeta ji, dr. monika, yashwantji, praveenji,reenaji, anuji, rrashmi ji aap sabka bahut shukriya.
जवाब देंहटाएं