गोविंद से पहले
इससे पहले की हिंदी दिवस दस्तक दे ज़रूरी है कि शिक्षक दिवस पर लिखा आपसे साझा कर लिया जाए. देरी से पोस्ट करने की मुआफी के साथ
तीसरी-चौथी कक्षा में हिंदी की पाठ्य पुस्तक में एक कथा का शीर्षक था
आरुणी की गुरुभक्ति। वह ऋषि धौम्य के यहां शिक्षा प्राप्त करता था। एक
रात खूब बारिश हुई। आश्रम पानी से भर न जाए यह देखने के लिए वह खेतों पर गया। ऋषि धौम्य गहरी नींद में थे। आरुणी ने देखा कि खेत की मेड़ का एक हिस्सा टूट रहा है। उसने बहुत कोशिश की मेड़ की मिट्टी को फिर से जमा दे लेकिन तेज पानी उसे बहा ले जाता था। आरुणी पानी रोकने के लिए वहीं लेट गया। मेड़ पर लेटते ही पानी का बहाव रुक गया। तड़के जब ऋषि की आँख खुली तो आरुणी को ना पाकर वे चिंतित हुए। खेत में ढूंढ़ते हुए पहुंचे तो आरुणी वहां तेज बुखार के साथ सोया हुआ था। गुरुजी को सामने पाकर उसने पैर छू लिए और गुरुजी ने यह सब देख उसे गले से लगा लिया।
क्या था यह? शिष्य को मिली शिक्षा या शिक्षक के प्रति उपजी स्वत:स्फूर्त
श्रद्धा। दरअसल, ये दोनों थे। शिक्षक का मान करना ही है , इसे लेकर कोई
दुविधा नहीं थी लेिकन श्रद्धा, भक्ति के भाव निजी तौर पर पनपते हैं।
शिक्षक का आचरण, व्यवहार, पेशे के प्रति लगाव कई बातें सम्मान के लिए
जिम्मेदार होती हैं। आज थोड़ी खाई सी नजर आती है । आज उनका मान करने की अनिवार्यता भी नहीं। धन नियंत्रित इस शिक्षा व्यवस्था में हर चीज के दाम हैं। अच्छी शिक्षा अच्छा दाम बाकी सब तमाम। सवाल किया जा सकता है कि यह अच्छी शिक्षा कैसे हुई?
रामायण काल हो या महाभारत का समय। गुरु वशिष्ठ और गुरु द्रोण ने
राजघरानों को ही संपूर्ण शिक्षा दी। एकलव्य इस शिक्षा से वंचित ही रहा।
गुरु द्रोण की मूर्ति सामने रख दिन-रात अभ्यास के साथ जब वह धनुर्विद्या
में पारंगत हो गया तब द्रोणाचार्य ने उसका अंगूठा ही गुरुदक्षिणा में
मांग लिया। यह कैसा गुरुत्व था? गोविंद से पहले गुरु को प्रणाम करने वाली संस्कृति में गुरू का स्थान बहुत ऊंचा है। स्वयं भगवान कृष्ण
ने भी गुरु सांदिपनी का सम्मान अक्षुण्ण रखा। उज्जैन में कृष्ण-बलराम और उनके बाल सखा सुदामा के गुरु सांदिपनी का आश्रम आज भी है।
तब स्त्री शिक्षाकी अवधारणा जरूर रही होगी लेकिन परंपरा नहीं थी। आज ना केवल बेटियां शिक्षा पा रही हैं, पढ़ाने का बीड़ा भी उन्होंने ले रखा है।
कालांतर में तक्षशिला और नालंदा शिक्षा के बड़े केंद्र बने। पूरी दुनिया
से विद्यार्थी यहां शिक्षा प्राप्त करने आते थे। तक्षशिला विभाजन के बाद
अब पाकिस्तान का हिस्सा है। इस शानदार विरासत को युनेस्को ने विश्व की बेशकीमती धरोहर माना है। इस प्राचीन उच्च शिक्षा केंद्र में सोलह की उम्र के बाद दाखिला दिया जाता था। सैन्य, चिकि त्सा , खगोल कई विषयों की पढ़ाई यहां होती थी। स्वयं चाण्क्य इस केंद्र के शिक्षक थे। चीनी यात्री फाह्यान यहां आए थे उन्होंने लिखा है कि यह बेहतरीन निजाम था जहां सोलह हजार विद्यार्थी साथ शिक्षा पाते थे।
पांच सितंबर डॉ.सर्वपल्ली राधा कृष्णन, भारत के दूसरे राष्ट्रपति का
जन्मदिन। वे शिक्षक थे। बहुत कुछ बदल गया है। अब स्टूडेंट टीचर के
दोस्त हैं। कम अज कम सोशल नेटवर्क पर तो वे यही प्लेटफॉर्म साझा कर रहे हैं। आपसी सम्मान बरकरार रखते हुए यह मंच बेहतर
नतीजे दे सकता है। खासकर, अन्तर्मुखी बच्चों के लिए यह टीचर से संवाद का अच्छा जरिया है। समस्याएं वहीं आती हैं जहां दोनों के बीच संवादहीनता है। बोलने से कई गिरहें खुलती हैं। इस रिश्ते की सबसे बड़ी अपेक्षा अगर ज्ञान है तो शिष्य को विनयशील होना ही होगा . एक विनयी शिष्य ही शिक्षक के भीतर ज्ञान की थाह ले सकता है . गंडा बंधने की परंपरा का आशय ही यह है कि गुरूजी हम आपकी सेवा में हाज़िर है बस आपकी कृपा हो.
बहुत ही विचारणीय और अच्छा आलेख।
जवाब देंहटाएंसादर
गुरु शिष्य परम्परा का चरम है यह..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आलेख...
सादर
अनु
गुरु और शिष्य दोनों का मान बना कर रखने वाली सोच कायम रहे
जवाब देंहटाएंसम्वाद का महत्व हर रिश्ते में बना रहेगा। शिक्षक दिवस की बधाई!
जवाब देंहटाएंकल 15/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
पिछली टिप्पणी मे तारीख की गलत सूचना देने के लिये खेद है
जवाब देंहटाएं----------------------------
कल 16/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
गुरु -शिष्य का जो रिश्ता है वो सर्वोपरि है ....पर आज -कल दोनों ही इसका मान नहीं रखते
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जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने...
जहाँ जीवन की संस्कारों की नीव राखी जाती है, वहीँ यदि गड़बड़ी हो जाए तो भवन क्या ख़ाक बनेगा...
शिष्य गुरु/भारी बने इसके लिए गुरु को अपने संस्कार/ आचरण गुरुतर बनाने होंगे..
yashwantji,praveenji,anuji,dr. monika,anuragji upasnaji aur ranjanaji aap sabka bahut shukriya.
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