ये सुबह फ़ीकी है निस्तेज है

बहुत इंतज़ार के बाद आख़िर सुबह सवा आठ बजे फ़ोन किया।  यह आशंका में घिरा फ़ोन था। मैंने पूछा- "नमस्कार, सब ठीक ?" उधर से डूबी हुई आवाज़ आई -"माँ expire हो गई हैं आज नहीं आ पाऊंगा। "मेरी आवाज़ भी जैसे बैठ गई फिर भी बोली -ओह माँ को हमारे भी श्रद्धा सुमन ,मैंने  डरते हुए ही कॉल किया था क्योंकि आप ख़ुद इतने नियमित और समर्पित हो कि ... इससे आगे कुछ कह नहीं पाई। कहना चाहती थी कि आप जब तक ना चाहो, ना आना। ये पैसे भी महीने  के बिल में जोड़ लेना। आप कहाँ रहते हो ? पूछना चाहती थी कि माँ को क्या हुआ ,कोई बीमारी थी लेकिन न कुछ पूछा ना कहा। सुबह जैसे अँधेरा दे गई।
photo credit : udaipur times.com

ये हमारे न्यूज़पपेर हॉकर हनुमान सैनी जी हैं जो बरसों से हमें अख़बार दे रहे हैं। मुंह अँधेरे अख़बार दे जाने की आदत में पता नहीं कितना हिस्सा क़ायदे का है। सामने के मकानों की बालकनी में अख़बार इतने सटीक ढंग से उछालते हैं कि कभी  नहीं चूकते। ये अख़बार बंद करना है और दूसरा शुरू करना है, इस काम में  भी नहीं। भुगतान लेते समय भी  ये अनुमान लगा के चलते हैं कि कितनी रेज़गारी उन्हें देनी पड़ सकती है। थोड़े अकड़ के चलते हैं, ठसक भी है लेकिन हनुमानजी को यह तेवर सूट करता है। उनका ना आना चाय को फ़ीकी तो पहले ही कर चुका था, कारण उदास कर गया है। माँ के बिना क्या बचता है यार। मेरा उनकी माँ को प्रणाम और उनके काम को सलाम कि हनुमान जी जैसे लोग अपने व्यहवार से ही काम में पूजा भाव का आभास करा जाते हैं। 
ps : वह रोज़ बिला नागा मेरी देहरी पर अख़बार डालते हैं और मुझे उनके घर का पता नहीं। 

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