एक अमीर का कारोबार और सरकार

आम तौर पर यह समय आम बजट के बाद सरकार से सवाल-जवाब का होता ,उसे घेरने का होता लेकिन हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने अडानी समूह के कारोबार की कलई खोलकर ऐसा भूचाल ला दिया है कि संसद बजट भूलकर सिर्फ अडानी की कंपनियों की 'बजट-बांट और उसके लेनदेन की बात कर रही है। बिखरा हुआ विपक्ष एकजुट होकर एक सुर में जांच की मांग कर रहा है। किसी की राय में यह बोफोर्स और टू जी से भी बड़ा घोटाला है तो किसी की राय में सरकार की मदद से इस समूह के शेयर फुलाए गए और वे दुनिया के तीसरे अमीर बन गए। एक भारतीय होने के नाते हम तो इस अमीरी पर भी फूल ही रहे थे कि अचानक अमरीकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आ गई।रिपोर्ट क्या आई अडाणी दुनिया के तीसरे अमीर से बीस में भी नहीं रहे । समूह का मार्केट शेयर धड़ल्ले से गिरने लगा और एलआईसी के साथ उन भारतीय बैंकों की हालत भी कमज़ोर दिखाई देने लगी जिन्होंने अडाणी को भारी क़र्ज़ दे रखा था। देश की सरकार का विश्वास इन पर था तो पूरी दुनिया के कई काम भी इस समूह के जिम्मे आते जा रहे थे। अब धीरे-धीरे वे देश आंखें दिखा रहे हैं। सरकार के प्रवक्ता पहले तो लगातार अडाणी समूह को रक्षा कवच पहनाते रहे फिर रिपोर्ट जारी होने की टाइमिंग पर आ गए कि पूरी दुनिया भारत की तरक्की से जलती है इसीलिए बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री भी आती है और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट भी। जो सवाल इस रिपोर्ट में उठाए गए हैं उनका जवाब तो ज़िम्मेदारों ने नहीं दिया लेकिन निवेशकों ने पैसा खींचकर अपने हिले हुए भरोसे को ज़रूर दिखा दिया है।

24 जनवरी को अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग ने अडानी समूह से जुड़ी अपनी रिपोर्ट 'अडाणी ग्रुप : हाउ वर्ल्ड्स थर्ड रिचेस्ट मैन इज़ पुलिंग द लार्जेस्ट कॉन इन कॉर्पोरेट हिस्ट्री' जारी की। इसमें इलज़ाम लगाए गए कि अडाणी समूह की कंपनियों ने अपने शेयरों में गड़बड़ी कर निवेशकों को गुमराह किया है। रिपोर्ट अडाणी का एफपीओ आने के तीन दिन पहले जारी हुई। शेयर बाज़ार में यह एक भूचाल लाने वाली रिपोर्ट थी। ढाई अरब डॉलर का एफपीओ आया लेकिन उसे केवल तीन फीसदी सब्सक्रिप्शन मिला। आबूधाबी की एक कंपनी , मित्रों और परिवार के टेके से आगे बढ़ाना पड़ा लेकिन बात नहीं बनीं। उन्हें अपना एफपीओ वापस लेना पड़ा और कहना पड़ा कि जिन निवेशकों ने इस एफपीओ (फॉलो ऑन पब्लिक ऑफर) को बचाने के लिए सोमवार को पैसे लगाए थे, उन्हें उनका पैसा लौटा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि निवेशकों का भरोसा बनाए रखना हमारी प्राथमिकता में है।
हिंडनबर्ग कोई सरकारी एजेंसी या कोई आधिकारिक जांच कंपनी नहीं है। वह कंपनियों का रेकॉर्ड खंगालती है ,पड़ताल करती है और अपने हिसाब से तथ्य जुटाकर सामने रख देती है और फिर जब कंपनी लुढ़कती है तब वह अपने शेयर बाजार में लाती है। यह उसका खुला खेल या तरीका है। ऐसा कर के वह खूब पैसा भी बनाती है क्योंकि निवेशकों को उसकी पड़ताल पर भरोसा है। हिंडनबर्ग 2017 से ऐसा कर रही है और अब तक 16 कंपनियों की पोलपट्टी उजागर कर चुकी है। इनमें अधिकतर अमरीकी और चीनी कंपनियां हैं। इनकी रिपोर्ट आने के बाद ये कपंनियां ज़मीन सूंघने लगी। दो साल के लम्बे शोध के बाद अडाणी समूह के बारे में यह रिपोर्ट आई है। जिसमें इनकी दुनिया भर में निर्माणाधीन प्रोजेक्ट साइट्स का दौरा भी शामिल है। शोध में अडाणी समूह की शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों के शेयर का आंकलन कई गुना बढ़ा-चढ़ाकर करने का आरोप है। इन फूले हुए शेयर्स के आलावा कई शैल कंपनियों का भी ज़िक्र है जिसमें पैसों को इधर -उधर घुमा कर दाम घटाए -बढ़ाए जाते रहे हैं। गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी इन शैल कंपनियों का संचालन करते हैं। इस बीच क्रेडिट सुइस बैंक और सिटी ग्रुप वेल्थ ने मार्जिन क़र्ज़ के लिए अडाणी कंपनीज़ की सिक्योरिटीज को लेना बंद कर दिया है। कुछ और निजी बैंक भी ऐसा कर सकते हैं। बांग्लादेश ने अडाणी पावर के साथ पुराने समझौते में रद्दो बदल की बात कर दी है। उनका कहना है कि कंपनी ने कोयले की कीमत ज़्यादा लगाई है। भारत सरकार ने अपनी स्थिति साफ़ कर दी है कि यह कंपनी और बांग्लादेश सरकार के बीच हुआ करार है और वह इसमें कहीं नहीं है।
 
अडाणी समूह के लिए जहाँ दुनिया से अच्छे समाचार नहीं हैं वहीं देश में भी निवेशकों और उन्हें कर्ज देनेवालों का यकीन डिगा हुआ है। एक हफ्ते के भीतर समूह को 45 फीसदी नुकसान हो चुका है और जिन बैंकों और एलआईसी से अरबों का कर्ज इस अरबपति समूह ने ले रखा है वे मुश्किल में हैं। स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में पेंशन, फिक्स्ड डिपाजिट बतौर आम आदमी का पैसा सुरक्षित माना जाता है तो एलआईसी में आम जनता के भविष्य और बुढ़ापे के लिए छोटी बचत और पूँजी लगी है। अच्छे भविष्य की उम्मीद में लगे इस पैसे को अडाणी समूह ने कहां निवेश किया और जब इस निवेश को ही लेकर हिंडनबर्ग ने कंपनियों के शेयरों को संदिग्ध बता दिया तब से आम व्यक्ति की चिंता बढ़ी हुई है। स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने 21 हज़ार करोड़, पंजाब नेशनल बैंक ने सात हज़ार करोड़, और एलआईसी ने लगभग 37 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज अडाणी समूह को दे रखा है। आरबीआई ने बैंकों को निर्देश दिए हैं कि वह अपने कागज़ की पड़ताल एक बार फिर कर लें। सेबी ने भी कदम आगे बढ़ाया है जबकि विशेषज्ञों की राय में सेबी पहले भी निवेशकों को आगाह कर सकती थी। शायद सरकार का समूह पर भरोसा ऐसा करने से रोकता रहा हो लेकिन अगर जो हिंडनबर्ग की जांच सही है तो यह साबित हो जाएगा कि ज़िम्मेदारों ने अपना कर्त्तव्य नहीं निभाया।

यह उथल-पुथल मामूली नहीं है। शेयर बाज़ार ऐसा हाल हर्षद मेहता के समय भी देख चुका है। हर्षद मेहता ने एक छोटे ब्रोकर के बतौर अपना काम शुरू किया था लेकिन फिर वह बाज़ार का बड़ा खिलाड़ी बन गया। राजनीतिक सांठ गांठ, सरकारी बैंकों से पैसा उठाकर बाज़ार में लगाने का भांडा जब फूटा तो शेयर बाज़ार बेहाल हो गया और कई लोगों का पैसा डूबा। साल 1992 में पत्रकार पद्मश्री सुचेता दलाल की रिपोर्टिंग ने इस घोटाले की पोल खोली थी लेकिन इसमें केवल हर्षद मेहता नहीं बल्कि सरकार ,आरबीआई, सेबी सबकी भूमिका थी। अडाणी समूह ने इसका जवाब दिया है लेकिन तिरंगे की आड़ ली है। इस राष्ट्रवाद की ढाल का कोई फायदा उसे नहीं मिला है और ना ही इस बात का कि भारतीय निवेशकों का रवैया ऐसा है जैसे जनरल डायर की सेना में भारतीय सिपाहियों का था। वे कहना चाह रहे थे कि आप निवेश से हाथ खींच रहे हो तो आप देश के दुशमन हो। हमने देखा है कि सरकारें यह कहकर अपना बचाव कर लेती है और वे शायद ऐसा कर भी सकती है लेकिन सवाल यही है कि आखिर उद्योगपति किस हक़ से ऐसा कर रहे हैं । बाज़ार ने बता दिया है कि ऐसे मनोभावों से उसकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। किसी पर चोरी या फर्ज़ीवाड़े का इलज़ाम हो और फिर वह भारतीय झंडे के पीछे छिपने की कोशिश करे ऐसी नैतिक ताकत कोई आखिर कहाँ से ला सकता है ? एक व्यवसाई पर आई रिपोर्ट किसी देश पर हमला कैसे हो सकती है? बहरहाल सरकार ने अब तक इस मुद्दे पर एक हो गए विपक्ष को ना तो देशद्रोही कहा है और ना ही सुनवाई का कोई आश्वासन ही दिया है ।


समूचे विपक्ष की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस की निगरानी में जांच हो या संयुक्त संसदीय समिति का गठन हो । एक विपक्षी दल ने गौतम अडाणी के पासपोर्ट को ज़ब्त कर लेने की बात भी कही है। इतिहास गवाह है कि कई उद्योगपति देश की बैंकों को चूना लगा कर विदेश फरार हो चुके हैं। अब की बार ऐसा होगा तो यह चोट नहीं, बड़ा आघात होगा। विकास की कई परियोजनाएं अटक जाएंगी, बैंको पर असर होगा ,दुनिया में साख गिरेगी। इससे सरकार को ही उबारना ज़रूरी है और इतनी बुद्धि तो हमें बचपन में सुनी कहानियां ही दे जाती हैं कि सारे अंडे एक या दो टोकरियों में नहीं रखने चाहिए बल्कि कई अंडों के लिए कई टोकरियां होनी चाहिए।














टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वंदे मातरम्-यानी मां, तुझे सलाम

सौ रुपये में nude pose

एप्पल का वह हिस्सा जो कटा हुआ है