तू एक ज़लील सी गाली से बेहतरीन नहीं

  राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में लोकसभा और राज्यसभा में सदस्यों ने जो वक्तव्य दिए वे ऐसे मालूम होते थे जैसे 'तुम कहो खेत तो मैं कहूं खलिहान'। कई बार लगा कि जैसे फ़र्ज़ी रण लड़े जा रहे हों। फिर बीच-बीच में बड़े शायरों की नर्म सी शायरियों को लाया जाता था। पक्ष-विपक्ष दोनों के सदस्य कई बड़े कवियों की आड़ में कह तो बहुत कुछ कह रहे थे लेकिन लगता यही था कि इस ओर से आएगा तो उन पर सही होगा और उस ओर से आएगा तो इन पर सही हो जाएगा। विपक्ष के वक्तव्य में सब तरफ़ अंधेरा दिखाई दे रहा था तो सत्ता पक्ष को सब कुछ सूरज की तरह चमकीला और उज्ज्वल। चांद, तारों और जुगनुओं का तो जैसे कोई वजूद ही नहीं था यहां। सत्तापक्ष की जिम्मेदारी बड़ी होती है और उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री का भाषण देश की हकीकत से रूबरू कराता हुआ, अपने शासन के गुण-दोषों की गणना कराते हुए राष्ट्रपति को धन्यवाद देगा। उनका संबोधन सुनते हुए लगा कि देश में हरेक परिवार के पास अपना पक्का घर और हर महिला धुंए से  मुक्त होकर मुस्कुराते हुए खाना बना रही है। ... और तो और उसके महीने के कठिन दिनों के लिए सैनिटरी नैपकिन भी प्रधानमंत्री ने उपलब्ध करा दिए हैं। देखना यह भी अजीब था कि विपक्ष के सदस्य जब भी अडानी और प्रधानमंत्री के बारे में कोई बात कहते, पीठासीन अध्यक्ष तुरंत उन्हें हड़काते हुए प्रमाण और काग़ज़ दिखाने की बात कहकर बोलने से रोक देते और सत्ता पक्ष के सदस्यों को बोलने पर पूरा सुरक्षा कवच दिया जाता।

हटा दिए भाषण के हिस्से

यह सोची-समझी रणनीति का हिस्सा ही मालूम होता है कि अडानी मुद्दे पर जब भी कोई सदस्य बोले, उसे बोलने नहीं दिया जाए। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के अडानी से जुड़े सीधे सवालों  को रिकॉर्ड से ही हटा दिया गया और ऐसा तुरंत नहीं बल्कि अगले दिन किया गया। राहुल गांधी के सवालों में एक सीधा सवाल यह था कि ये शैल कंपनियां कौन चला रहा है और इससे देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है क्योंकि अडाणी के पास देश के बंदरगाह और हवाई अड्डे हैं।  राहुल गांधी की पहले भी शिकायत रही है कि सदन में हमारा माइक बंद कर दिया जाता है और अबकी बार जब माइक बंद नहीं हुआ तो भाषण का बड़ा हिस्सा ही हटा दिया गया। फिर भी भाषण सीधे प्रसारण के ज़रिये और अन्य चैनलों के माधयम से जनता तक पहुंच चुका था। रोक के सिलसिले में एक और नई रोक लेकिन बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री जैसी ही बेअसर। अब सवाल यही है कि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा ने भी अडानी और सरकार के रिश्तों पर सवाल उठाए थे तब क्या उनके भाषण को भी कार्रवाई से अलग कर दिया जाएगा? प्रधानमंत्री ने  धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा में विपक्ष को निराशा में डूबा हुआ बताया। तब क्या राम मनोहर लोहिया, अटल बिहारी वाजपेयी, सुषमा स्वराज, जॉर्ज फर्नांडिस सभी निराशा में डूबे हुए थे? सवाल करना निराशा में डूबना हो गया तब तो विपक्ष के लोकतंत्र में कोई मायने ही नहीं रह गए। प्रधानमंत्री क्या इस भूमिका की अवहेलना की मुद्रा में हैं? सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे, महुआ मोइत्रा, मनोज कुमार झा, अजित कुमार भुयान, विकास रंजन भट्टाचार्य, जवाहर सरकार आदि की आवाज़ों के कोई मायने नहीं हैं? यह सच है कि जनता के बीच आप अपनी सरकार के कार्यक्रमों- उपलब्धियों के नए-नए आयाम नई-नई शैलियों में रखने से ही 2024 का मार्ग प्रशस्त होता है लेकिन जब संसद भी रैलियों सा मंज़र प्रस्तुत करे तो फिर इस पवित्र मंदिर की महत्ता ही क्या रह गई जिसकी देहरी  पर प्रवेश से पहले लोग अपना सर झुकाते हैं? 

 'द लॉस्ट डिकेड

प्रधानमंत्री ने 2004 से 2014 के कार्यकाल को अंधकार में डूबा हुआ बताते हुए कहा कि यह घोटालों का काल था। कॉमन वेल्थ घोटाला, टूजी घोटालों में देश उलझा हुआ था। यह 'द लॉस्ट डिकेड' था जब हर समय लावारिस चीज़ों को न छूने की चेतावनी दी जाती थी। इन्होंने हर मौके को मुसीबत में बदल दिया। आज जो जी -20 का अवसर मिला है कुछ लोगों को उसका भी दुःख हो रहा है। एक, दो, तीन दशक की अस्थिरता के बाद जब स्थिर सरकार आई है तो दुनिया में भारत की साख का डंका बज रहा है। डिजिटल इंडिया में नब्बे हज़ार स्टार्टअप्स के साथ हम दुनिया में तीसरे नंबर पर हैं। ऊर्जा, एविएशन, स्पोर्ट्स हर जगह हम आगे हैं और दुनिया की विश्वसनीय संस्थाओं की भारत में आस्था है। इसी भाषण में प्रधानमंत्री ने हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल की सराहना करते हुए भी विपक्ष को लपेट लिया जबकि विपक्ष ने राफैल डील के वक्त सरकार की तीखी आलोचना की थी। आलोचना हुई थी कि पीएम ने भारत के दक्ष एचएएल को छोड़कर अनिल अम्बानी की ऐसी कंपनी को राफैल बनाने का ठेका दे दिया था जिसका कोई अतापता ही नहीं था । बाद में वे खुद ही  दिवालिया घोषित हो गए।  इसी हफ्ते कर्नाटक के तुमकुर में हेलिकॉप्टर बनाने की नई फैक्ट्री के उद्घाटन में भी पीएम ने एचएएल की जमकर तारीफ़ की और विपक्ष को कोसा था। यह बताता है कि सरकार अपनी कमियों का ठीकरा भी विपक्ष के माथे ही  फोड़ती है। संबंध केवल अडानी से संदिग्ध नहीं हैं। 

अडानी पर एकदम चुप

बोफ़ोर्स दलाली, टू जी में भी अपराध साबित नहीं हुए लेकिन सरकारें चलीं गईं। वर्तमान सरकार इस तथ्य को जानती है इसलिए अडानी के सवालों पर संसद में कोई जवाब देना नहीं चाहती। इसके ज़िक्र से भी उसे एतराज़ है। पूरी संसद चर्चा के दौरान 'वी वांट जेपीसी' और ’कुछ तो बोलो कुछ तो बोलो’ के नारों से गूंजती रही लेकिन विपक्ष की आवाज़ को नज़रअंदाज़ करने का चलन अब आम है। पीएम ने कांग्रेस पर सीधे निशाना साधते हुए कहा कि कुछ लोगों को यहाँ हार्वर्ड से बड़ा प्यार है। वहां एक अध्ययन हो चुका है 'राइज एंड फाल ऑफ़ कांग्रेस'। कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री कांग्रेस के सवालों से भले ही बचते हों लेकिन अपमान करने का कोई मौका भी नहीं गंवाते। कांग्रेस से मुकाबला स्वीकार है लेकिन उपेक्षा पूरी होगी । 

मोदी को गाली जनता बर्दाश्त नहीं करेगी

प्रधानमंत्री का चिर-परिचित अंदाज़ एक बार फिर धन्यवाद चर्चा के दौरान दिखाई दिया। वे अक्सर खुद को गाली  खाकर ज़िंदा रहने वाला बताते हैं। जिसका आशय यह कि गालियां उन्हें टॉनिक की तरह लगती हैं और 'नीच' और 'रावण के दस सिर' वाले संवाद तो उनमें नई ऊर्जा का संचार कर देते हैं। इस भाषण में उन्होंने कहा कि अगर आप मोदी को गाली दोगे तो वह जनता कैसे बर्दाश्त करेगी  जिसकी ज़िन्दगी इस सरकार के आने के बाद संवर गई है। आपकी गालियों को कोटि-कोटि भारतीयों से गुज़रना पड़ेगा। 140 करोड़ देशवासियों का आशीर्वाद मेरा सुरक्षा कवच है। देखा गया है कि चुनाव में भी प्रचार का यह पैंतरा उन्हें बहुत प्रिय है। यूं इसे 'विक्टिम कार्ड' खेलना भी कहा जाता है। उन्होंने अस्सी करोड़ की उस आबादी का भी उल्लेख किया जिसे मोदी सरकार मुफ़्त राशन देती है। अस्सी करोड़ लोगों को आज भी मुफ़्त राशन देना पड़ रहा है यह केवल एक पार्टी पर नहीं बल्कि हरेक के शासन काल पर ज़ोरदार तमाचा है। यह कैसे एक लोकतंत्र का अमृतकाल हो सकता है जब जनता भूखी हो? जनता को महंगाई और बेरोज़गारी में झोंक दो और फिर उसे मुफ्त का राशन देकर मसीहा बनो। इस देश के हर संसाधन पर यहाँ की जनता का हक़ है।कोई भी सरकार जो उसका इस तरह बंटवारा नहीं करती कि नागरिक स्वाभिमान से अपनी रोज़ी कमा सके तो उसे ख़ुद को सरकार कहने का कोई अधिकार नहीं है। अगले चुनाव तक सरकार इसे पचास फ़ीसदी तक नहीं ला पाती है तो उसका शासन ख़ुद ब ख़ुद व्यर्थ हो जाना चाहिए और नए दल को इस वादे के साथ आगे आना चाहिए। ये सब देश की जनता को ख़ुशमिजाज़, सकारात्मक होने के शब्दों से नवाज़ते हैं और फिर इसे दुखों के बीच धकेल देते हैं । भेड़-बकरियों की तरह छकड़ों में भरकर ले जाए गए कामगार और फुटपाथ पर सोने को मजबूर लोग सत्तापक्ष की चिंता का विषय क्यों नहीं।  हरेक को काम देने वाली मनरेगा योजना का बजट का कम होना, किसानों को मिलने वाली छूट पर कटौती और कॉर्पोरेट टैक्स में यूं ही कमी की जाती रही तो अस्सी फ़ीसदी को यूं ही मुफ़्त अनाज देने की शर्मिंदगी से हम कभी नहीं बच पाएंगे। संसद में महिलाओं के लिए सैनिटरी नैपकिन का ज़िक्र करना बेशक एक अच्छी पहल कही जा सकती है लेकिन  तथ्य यह भी है कि अब भी अधिकांश महिलाओं को माहवारी में पुराने कपड़ों से ही काम चलाना पड़ता है जो हाइजीन के लिहाज़ से खतरनाक है।

 क्या राष्ट्रपति यही कहना चाहती थीं 

प्रोफेसर मनोज कुमार झा ने धन्यवाद प्रस्ताव के जवाब में अनूठी बात कही कि कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है राष्ट्रपति खुद से अपना भाषण लिखने लगें तब भी क्या ऐसा ही लिखतीं? वास्तविक ज़िन्दगी में परंपराएं होती हैं लेकिन सब सही हों ज़रूरी तो नहीं ।आखिर कब तक राष्ट्रपति सरकार की लिखी बातों को पढ़ते रहेंगे? उन्होंने कहा कि संसद की बातचीत और बाहर की दुनिया में ज़मीन-आसमान का फर्क है। ज़मीन के तथ्य इस अभिभाषण से मेल नहीं खाते हैं। धन्यवाद प्रस्ताव की ही चर्चा में ही असम के निर्दलीय सांसद अजीत कुमार भुयान ने कहा कि वे इस उच्च सदन में उत्तर पूर्व से अकेली विपक्ष की आवाज़ हैं। प्रधानमंत्री ने असम की जनता से कई वादे किये लेकिन अभी तक वे पूरे नहीं हुए जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने कार्यकाल में बहुत कम बार असम आए लेकिन उन्होंने क्षेत्र की शांति और आदिवासी विकास के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की। ये सरकार उन्हीं योजनाओं के फीते काट रही है। मुझे उम्मीद थी कि आदिवासी होने के नाते राष्ट्रपति मुर्मू भी इस क्षेत्र का विस्तार से ज़िक्र करतीं लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सीपीएम के सांसद बिकास रंजन भट्टाचार्य ने कहा कि उन्हें राष्ट्रपति के भाषण में संविधान की झलक के बजाय हिंदू नेताओं की भाषा का अक्स मिला। तीन तलाक का श्रेय सरकार लेती है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे पहले ही असंवैधानिक घोषित कर दिया  था। उन्होंने कहा कि कई तीर्थ धामों का ज़िक्र हुआ लेकिन जोशी मठ का ज़िक्र नहीं हुआ जो आपकी नीतियों के कारण पूरी तरह दरक गया। उन्होंने भी अडाणी के मामले में जेपीसी के गठन की मांग करते हुए कहा कि एक सरकार की ताकत विपक्ष का सामना करने से होती है उनके मुद्दों से भागने में नहीं। दरअसल चर्चा अपनी ढपली अपना राग की तरह थी क्योंकि दोनों ही पक्ष एक दूसरे की आंख में आँख डालकर बहस नहीं कर रहे थे। अंत में, प्रधानमंत्री की दुष्यंत कुमार की उद्धत ग़ज़ल का वह शेर 

तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं/कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं। ग़ज़ल के दूसरे शेर का ज़िक्र प्रधानमंत्री ने नहीं किया वो इस तरह है-

तेरी ज़ुबान है झूठी जम्हूरियत की तरह 

तू एक ज़लील सी गाली से बेहतरीन नहीं



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