गली गुलैयां तो नहीं मिली उलझे स्त्री की भूल भुलैया में
![]() |
गली गुलैयाँ में मनोज बाजपेई |
![]() |
स्त्री में श्रद्धा कपूर और राजकुमार राव |
फिल्म 'ओ स्त्री कल आना' और 'ओ स्त्री रक्षा करना ' के बीच बेहद मनोरंजक और व्यंग्यात्मक बन सकती थी जो कि नहीं बन पाई है। राजकुमार राव आँखों से नाप ले लेनेवाले युवा दर्ज़ी विकी के किरदार में बेहतर हैं ,उनके दोस्त अपारशक्ति खुराना ( भाई आयुष्मान खुराना की धुंधली कार्बन कॉपी ) और अभिषेक बैनर्जी भी जमे हैं लेकिन श्रद्धा कपूर सामान्य ही लगी हैं। पंकज त्रिपाठी (रूद्र भैया )चंदेरी पुराण को थामे हैं यानी उनके पास वो किताब है जिसमें चंदेरी का इतिहास है जिसके कुछ पन्ने फटे हुए हैं। आम कस्बों में जो रहस्य और कुंठाएं स्त्री को लेकर रहती हैं उसकी बानगी भी कुछ हद तक स्त्री में है। रूद्र जैसा किरदार हर कस्बे में होता है जो जानता भले ही कम है लेकिन उस पर क़स्बे का भरोसा ज़्यादा होता है। वह यह भी बताता है कि जब भूतनी प्यार से आवाज़ दे तो पलटना मत वह ले जाएगी। और हाँ फिल्म की शुरुआत और मध्यांतर में राजस्थान सरकार ढेरों विज्ञापन दिखाकर बताती है कि योजनाओं ने ग्रामीण जनता की सूरत बदल दी है। काश ये 2014 -15 में भी दिखाए गए होते की ये-ये योजनाएं हैं। विपक्ष का एक भी विज्ञापन न अख़बार में है न रुपहले परदे पर।
बहरहाल , यहाँ मकसद स्त्री की समीक्षा करना नहीं है बल्कि यह बताना है कि दिमाग की तहों और मानव मन के अकेलेपाने में झाँकने की कवायद वाली फिल्म गली गुलैयाँ को दर्शक नहीं मिलते और स्त्री उसे 'खो' कर देती है। इस सिनेमा पर आधा-अधूरा हॉरर और कमज़ोर कॉमेडी हावी हो गई। स्त्री को दर्शक मिल रहे हैं गली गुलैया को नहीं मिले। सिनेमा में अब आइटम गीत और लाल किताब टाइप मसाले कम काम करते हैं यह ख़ामख़याली भी दूर हुई।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.9.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3093 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
Shukriya dilbagji
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अमर शहीद जतीन्द्रनाथ दास की पुण्यतिथि पर नमन : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएं