तुम पानी


तुम पानी 
अपने आकार  की 
कोई पहल नहीं 
अपनी गहराई की कोई थाह नहीं 
 सरहद का कोई इल्म नहीं 
 दौड़ की कोई राह नहीं 
 भेद में कोई निष्ठा नहीं

बस वर्षा में ही तेरी आस्था रही।  
image:varsha

बरस जाता है 
बह जाता है 
अलौकिक रफ़्तार में 
उलझी जड़ों तक के रेशों में 
जो घोल ले ठोस से ठोस अहंकार को 
फिर भी आतुर और पी लेने को। 

और मैं 
अचंभित तुम्हें यूं 
बहते-चलते देखते हुए
शायद तुम इस पानी को कभी 
मेरी आँखों में देख सकते हो 
और हाँ यह सब मैंने
 पानी पर ही लिखा है 
मिटा देने के लिए। 
यही तो पानी भी चाहता है। 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वंदे मातरम्-यानी मां, तुझे सलाम

सौ रुपये में nude pose

एप्पल का वह हिस्सा जो कटा हुआ है