सावन चोर नेता




एक पखवाड़े से लग रहा है जैसे राजस्थान को किसी ने जकड़ रखा है। यूं सावन का महीना है, बूंदें भी मेहरबान हैं  लेकिन लगता है हमारे हिस्से सूखा आ रहा है। हमारे  झूले की रस्सी कोई काट रहा है। बणी--ठणी निराश है । घूमर का आनंद कोई और ले रहा है और लहरिया के रंग भी कोई  फ़ीके करते जा रहा है। मोर के नाच में भी रोड़े अटका रहा है। कोरोना के बीच नेताओं ने कोढ़ में खाज का काम कर दिया है। ये सब किसकी ग़लती  से हो रहा है, कौन कर रहा है लेकिन प्रदेश असर में है।  उसे लग रहा है कि उसके मत  को किसी तोड़ा -मरोड़ा है । जो कह रहे हैं हम तो तमाशबीन है ,उनकी आँखों में शरारत  है। 

इनका घूमर जो होटलों , कचहरियों और क़ानून निर्माण की देहरियों के बीच जारी है उसमें लय-ताल की कमी है। इनके झूलों की पींगें डरावनी हैं। कभी-कभी जो लहरिया किन्ही ख़ास मौकों पर अपने शीष पर सजाते हैं ,वह किसी को मोह नहीं पा रहा है। इस धरा  के जीवट रंगों  को कोई कोई गहरी ऊब में तब्दील कर चुका  है। जनमानस का लाखों का सावन किन्ही की बोलियों से तबाह होने की कगार पर है। किसकी कितनी बोली लगी जनता जानना तो  चाहती है लेकिन पता नहीं चलेगा यह भी जानती है। महामारी के बीच प्रदेश लगातार बेहतर चलने की कोशिश में था लेकिन अब दो पाटन  बीच जैसे कोई भी साबुत नहीं बचने के हालात में आ पहुँचा है ।  जनता के  प्रतिनिधियों  को इस कठिन दौर में जनता  के बीच होना चाहिए  या फिर  विधानसभा में लेकिन ये  होटलों में छिपे बैठे हैं। ठीक है चुन लो जिस पाले को तुम्हें चुनना हो लेकिन नैतिक साहस भी रखो यह कहने का कि यहां जनता के साथ न्याय नहीं हो रहा था । वोटर की इतना शर्मिंदा मत करो कि अगली बार वह किसी को भी चुनने से इंकार कर दे और तुम सिर्फ बोली लगाकर ही वहां पहुँचने के लिए मजबूर हो जाओ। 

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