वो जो अयोध्या नहीं जा रहे होते

वो जो अयोध्या नहीं जा रहे होते
हम अपना वजूद खो चुके होते
हमारी लड़कियां उनके चूल्हे जला रही 
होतीं 
उनके ढेर-ढेर बच्चे होते
फिर वे बच्चे घेरकर मारे जा रहे होते
घर-घर में जानवर कटते 
गौमाता का क्या हाल होता पूछो मत
और प्राचीन संस्कृति का तो समूल नाश हो गया होता

वो जो अयोध्या नहीं जा रहे होते
गुरुकुल मदरसा-मदरसा चीख़ रहे होते
पड़ोस का पला हुआ दुशमन
छुट्टा शेर हो जाता
जिसे  नहीं पाल सके वो देश में घुस आता।
बीमारी बला बनके फूटती
पंक्चर पकाने वाले महलों में आ जाते
और दाढ़ी वाले हुकूमत कर रहे होते

वो जो अयोध्या नहीं जा रहे होते
हमारा तो रुतबा ही ख़त्म हो गया होता
हम अपने ही देश में देशद्रोही करार  दिए जाते 
 
 मेहनतक़श सड़कों पर होते
सर पे गठरी, बगल में बच्चे
फटी बिवाइयां ,थकी ज़िंदगियां
लगातार सरक रही होतीं 

वो जो अयोध्या जा रहे हैं
अच्छा कर रहे हैं
लुटे गौरव को कायम कर रहे हैं
अस्पताल-अस्पताल क्या चिल्लाते हो
महामारी आई है चली जाएगी
इंसान को नहीं अहंकार को ज़िंदा रहना चाहिए
हमारे देश में हमारा अहंकार
हम वादे की ठसक में हैं
तुम हटो अलग।

कबीर कह गए हैं
भला हुआ मोरी गगरी फूटी
मैं पनिया भरन से छूटी
मोरे सर से टली बला....
अच्छा है जो वो अयोध्या जा रहे हैं 








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