कोरोना काल में कलाकार तकलीफ़ में हैं चाहिए नरेगा जैसी योजना 

 "ऐसे भी मामले हैं जब कलाकार पैसों की कमी से ख़ुदकुशी कर लेते हैं। इस महामारी में  नरेगा जैसी योजना उनके लिए भी संबल हो सकती हैं "-टी एम कृष्णा  
कर्नाटक संगीत  शैली के बेहद प्रयोगधर्मी गायक कलाकार  टी एम कृष्णा  का यह कहना सही  इसलिए भी मालूम होता है क्योंकि इस संवेदनशील कौम  के पास केवल अपनी कला होती है जिसे वे जुनून की हद तक जीते हैं। तथ्य यह भी है कि इसे अभिव्यक्त करने के लिए हमेशा उन्हें एक प्लेटफॉर्म की ज़रूरत होती है। सामान्य भाषा में हम जिसे काम मिलना कहते हैं। अमिताभ बच्चन काम मिलते रहने के अच्छे हालात पर अक्सर शुक्रिया जताते  नज़र आते हैं तो  कभी कभार इसी काम को पाने के लिए नीना गुप्ता जैसी अच्छी कलाकार को भी इल्तजा करनी पड़ती है। काम का मिलना हर हाल में ज़रूरी है और अजीब इत्तेफ़ाक़ है कि यह अवसर कोई दूसरा ही मुहैया  करता है। इस व्यवस्था की चाबी अक्सर पूंजीपति के हाथ ही होती है।आत्मनिर्भर होकर भी आत्मनिर्भर नहीं होते हैं आप  । यही हिसाब मूर्तिकार , शिल्पकार, चित्रकार और   भारत की  तमाम पारम्परिक कलाकारों पर भी लागू होता है। भारत तो  कलाओं का ही देश है । चप्पे-चप्पे पर कला का असर है लेकिन आर्थिक अवसर नहीं। बिहार में मधुबनी ,पंजाब से फुलकारी, मध्यप्रदेश से कोसा चंदेरी की साड़िया राजस्थान से मूर्ती कला ,फर्नीचर,बांधनी ,आसाम से कलात्मक बांस,दक्षिण से शंख से बनी कलाकृतियां उड़ीसा से  धातु की आकर्षक मूर्तियां यह अंतहीन सिलसिला कभी ख़त्म नहीं होता और नहीं ख़त्म होती है कलाकारों की तकलीफ़। कोरोना  महामारी ने  तो सब कुछ और ठप कर दिया  है। कलाकारों के लिए यह संकट का समय है। 
इन्हीं के लिए टी एम कृष्णा कहते  हैं कि कलाकारों के पास भी शर्तिया काम देने वाली कोई योजना होनी चाहिए। बड़े कलाकारों को दिक्कत नहीं है लेकिन काम का न होना साधनहीन कलाकारों को तोड़ रहा है। यह ख़ामख़याली है कि सोशल मीडिया इस परेशानी को दूर करने में सफल है। सब मुफ़्त में ही सुनना पसंद करते हैं। नामचीन कलाकार ज़रूर बेहतर स्थिति में होते हैं जो डिजिटल शोज़ के ज़रिये धन जुटा पा रहे हैं। 

कृष्णा ने इन्हीं ऑनलाइन शोज़ के जरिये पैसा जमा कर कलाकारों को धन उपलब्ध कराया है। उन्होंने इक्यावन लाख ग्यारह हज़ार रूपए मई महीने तक जमा किए और और लगभग डेढ़ हज़ार कलाकार परिवारों को मदद पहुंचाई  लेकिन यह उन्हें नाकाफ़ी लगती है। वे कहते हैं सरकार को मनरेगा जैसी योजना जल्दी लागू करना चाहिए जो इन कलाकारों को सम्मान और कला को नया जीवन दे सके। नरेगा एक बेस मॉडल हो सकता है। कला समाज को उम्मीद ,कल्पना को उड़ान के साथ सवाल करने का साहस देती है और यह तब होता है जब कला से दर्शक जुड़ता है। बिना कला के समाज में  विघटन का  ख़तरा तो है ही संवेदनहीन होने की आशंका भी है। 

ps :सच पूछिए तो इस कठिन समय में पत्रकारों की भी नौकरियां जा रही हैं। बिना किसी पूर्व सूचना के बड़े-बड़े संस्थान एक चिट्ठी देकर उन्हें निकाल रहे हैं। रोज़गार की गारंटी तो उन्हें भी मिलनी ही चाहिए, चाहे काम छोटी तनख़्वाह वाला  ही हो। 

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