गोरखपुर के बाद रायपुर में O2 का 0 ज़ीरो हो जाना


 जब सरकारों के सरोकार अपने नागरिक की ज़िंदगी को बेहतर बनाने के बजाय उसकी देशभक्ति को नापने और प्रेम पर पहरे लगाने में लगे हों तो तब व्यवस्था की साँसें ऐसे ही टूटती हैं। अभी गोरखपुए की साँसें लौटीं ही नहीं थीं कि रायपुर में भी दम तोड़ गईं। वहां सत्तर यहाँ चार मासूम। कर लीजिये जिन-जिन को बर्खास्त करना है लेकिन जब तक अंतिम ज़िम्मेदारी लेनेवाला इसे महसूस नहीं करेगा तब तक व्यवस्था के प्राण यूं ही निकलते रहेंगे। एक बीमार और अधमरा  हुआ तंत्र दिन ब दिन मृत्यु शैया की और ही बढ़ेगा । 
            इसी छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में सरकारी नसबंदी शिविर में 15  महिलाओं की जान चली गयी थी। यहाँ नवंबर 2014 में पांच घंटे में 83 महिलाओं की लेप्रोस्कोपिक सर्जरी कर दी गई थी। कभी माएं  तो कभी बच्चे ये निज़ाम  बस जान लेने पर तुला है। इस बार तो प्रदेश की राजधानी रायपुर के बड़े सरकारी अस्पताल में प्राणवायु ऑक्सीजन की कमी से सांस रुकी हैं। ऑक्सीजन की कमी से जब बच्चे हिलने लगे तब भी नशे में धुत व्यवस्था को क्या होश आना था।  ऑक्सीजन मीटर काफी नीचे था। 

एक बात और जो हैरानी  की सामने आई  है कि मेडिकल ऑक्सीजन पर GST को शून्य की बजाय  1 8 % की श्रेणी में ला दिया  गया है। इंडियन मेडिकल असोसिएशन के अध्यक्ष डॉ के के अग्रवाल के मुताबिक यह असंगत और अन्यायपूर्ण है।  जीवन रक्षक दवाओं को पांच फीसदी के स्लैब में रखा गया है। 
हादसा दर  हादसा क्या वाकई नए निज़ाम से हमें इस बीमार और अधमरे तंत्र में प्राण फूंकने की उम्मीद थी या फिर प्राण वायु ही  ले लेने की???

टिप्पणियाँ

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