औरत को समझने के लिए हजार साल की जिंदगी चाहिए-देवताले
अब जब महाकवि चंद्रकांत देवताले की देह दिल्ली के एक शवदाह गृह में विलीन हो चुकी है तो फिर क्या शेष है जो हमें उनसे कनेक्ट करता है। हम उनके परिवार का हिस्सा नहीं और ना ही हमारा उनसे रोज़ मिलना-जुलना था। जो जोड़ता है वह है उनकी लेखनी और उनका कवि-मन। वे जब भी लिखते मनवीय संवेदनाओं को स्पंदित कर जाते। ऐसी गहराई कि कविता एक ही समय में चाँद, सूरज और फिर पूरा आसमान हो जाती लेकिन फिर भी वे कहते कि मां पर नहीं लिख सकता कविता।क्योंकि मां ने केवल मटर, मूंगफली के नहीं अपनी आत्मा, आग और पानी के छिलके उतारे हैं मेरे लिए। वे लिखते हैं
मैंने धरती पर कविता लिखी है
चन्द्रमा को बदला है गिटार में
समुद्र को शेर की तरह आकाश के
पिंजरे में खड़ा कर दिया
सूरज पर कभी भी कविता लिख दूंगा
मां पर नहीं लिख सकता कविता
बीती सदी जब ढलान पर थी तभी मेरा परिचय ख्यात पत्रकार शाहिद मिर्ज़ा ने कवि चंद्रकांत देवताले जी से करवाया। साल 95 -96 में वह इंदौर भास्कर का परिसर था। बड़े कवि लेकिन लेकिन बच्चों -सा सहज सरल मन। वह दौर ढलान का होकर भी बहुत बेहतर था जब अख़बार बेहतर परिशिष्टों के लिए साहित्यकारों, कलाकारों को याद करते थे। पत्रकार शाहिद मिर्ज़ा साहब इस बात का हमेशा ख्याल रखते कि कैसे नई पीढ़ी को समकालीन रचनाकारों से रूबरू कराया जाए ताकि उनमें सही समझ और पेशे के लिए सम्मान का भाव पैदा हो। कभी व्यक्ति से मिलवाकर तो कभी किताब, कभी कलाकृति भेंट में देकर वे मुस्कुराते हुए सेतुबंध का काम किया करते। इससे पहले मैं भूलूं कि मैं देवताले जी को याद कर रही हूँ, मैं बताना चाहूंगी कि कविता कैसे एक भोले और सच्चे इंसान को नवाज़ती है इसकी मिसाल थे देवताले जी। कवि मन होना ही कुछ ऐसा है, दुनिया किसी भी रफ़्तार से बढ़ रही हो आपका इंसानी यकीन कभी नहीं डगमगाता। वह कभी मानवता का साथ नहीं छोड़ता। क्या हुआ जो अंत में शरीर जर्जर हो रहा हो या याददाश्त किसी बियांबां में भटक रही हो। जो कागज़ पर उतर गया अटल है कायम है। हिंदी कविता को बड़ी ऊंचाई देनेवाला एक कवि ज़िंदा है हमेशा।
डेली न्यूज़ की साप्ताहिक पत्रिका खुशबू को एडिट करते हुए उनकी एक कविता छापकर मैं तो भूल ही गई थी। उन्हें एक छोटा सा चेक गया होगा पत्र की ओर से। दफ्तर के लैंडलाइन पर उनका कॉल आया। बच्चों के बारे में पूछा तो मैंने कहा आपकी एक कविता यमराज की दिशा उनके नौवीं के हिंदी पाठ्यक्रम में भी है। मैं बच्चों से आपको जल्द मिलवाऊंगी। यह मुलाकात नहीं हो सकी फिर भी बच्चे उन्हें जानते हैं समझते हैं अपने कवि
से जुड़े हैं।
साल 95-96 की बात होगी। शाहिद मिर्ज़ा साहब को दीपावली को बोनस संस्थान से मिला था। उन्होंने मित्रो के साथ मिलकर इंदौर में चंद्रकांत देवताले जी का कविता पाठ रखा। देवतालेजी ने बेहतरीन कविताएं सुनाईं। पत्रकार का अपने कवि को यूं सम्मान देना उस शहर की रवायत का हिस्सा रहा होगा शायद। मैं अपनी छोटी बहन के साथ वहां गई थी। पत्रकार और व्यंग्यकार प्रकाश पुरोहित जी भी वहां मिले। देखते ही बोले इसे क्यों बिगड़ रही हो अपने साथ।
देवताले जी के इंदौर स्थित संवाद नगर घर पर भी जाना हुआ। एक कवि बेहद सादगी के साथ अपने अकेलेपन में भी जीवन की रौशनी रचता है। तभी तो लेखिका स्वाति तिवारी लिखती हैं ,उन्हें निमंत्रण देना मतलब --सबसे पहले सवाल हाँ तो मैं क्या करूंगा आकर ? ये क्या ये ------कौन साहित्य में ? इसको क्यों बुलवा लिया ? फिर कहेंगे अच्छा देखता हूँ ---और फिर अक्सर आते ही ,बाद में कहते अच्छा हुआ कार्यक्रम ,अगली बार फिर बुला लेना मुझे याद रख के ---
बाद में वे और शांति और सादगी के लिए थोड़ी दूर स्थित महाकाल की नगरी उज्जैन चले गए। कवि शिव मंगल सिंह सुमन भी यहीं बसते थे। देवताले जी के कविता संग्रह हड्डियों में छिपा ज्वर से एक कवितांश
फिर भी
सिर्फ एक औरत को समझने के लिए
हजार साल की जिंदगी चाहिए मुझको
क्योंकि औरत सिर्फ भाप या बसंत ही नहीं है
एक सिम्फनी भी है समूचे ब्रह्मांड की
जिसका दूध, दूब पर दौड़ते हुए बच्चे में
खरगोश की तरह कुलांचे भरता है
और एक कंदरा भी है किसी अज्ञात इलाके में
जिसमें उसकी शोकमग्न परछाईं
दर्पण पर छाई गर्द को रगड़ती रहती है
कवि के बारे में
चंद्रकांत देवताले (जन्म १९३६) का जन्म गाँव जौलखेड़ा, जिला बैतूल, मध्य प्रदेश में हुआ। उच्च शिक्षा इंदौर से हुई तथा पी-एच.डी. सागर विश्वविद्यालय, सागर से। साठोत्तरी हिंदी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर देवताले जी उच्च शिक्षा में अध्यापन कार्य से संबद्ध रहे हैं। देवताले जी की प्रमुख कृतियाँ हैं- हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, रोशनी के मैदान की तरफ़, भूखंड तप रहा है, हर चीज़ आग में बताई गई थी, पत्थर की बैंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय।
मैंने धरती पर कविता लिखी है
चन्द्रमा को बदला है गिटार में
समुद्र को शेर की तरह आकाश के
पिंजरे में खड़ा कर दिया
सूरज पर कभी भी कविता लिख दूंगा
मां पर नहीं लिख सकता कविता
बीती सदी जब ढलान पर थी तभी मेरा परिचय ख्यात पत्रकार शाहिद मिर्ज़ा ने कवि चंद्रकांत देवताले जी से करवाया। साल 95 -96 में वह इंदौर भास्कर का परिसर था। बड़े कवि लेकिन लेकिन बच्चों -सा सहज सरल मन। वह दौर ढलान का होकर भी बहुत बेहतर था जब अख़बार बेहतर परिशिष्टों के लिए साहित्यकारों, कलाकारों को याद करते थे। पत्रकार शाहिद मिर्ज़ा साहब इस बात का हमेशा ख्याल रखते कि कैसे नई पीढ़ी को समकालीन रचनाकारों से रूबरू कराया जाए ताकि उनमें सही समझ और पेशे के लिए सम्मान का भाव पैदा हो। कभी व्यक्ति से मिलवाकर तो कभी किताब, कभी कलाकृति भेंट में देकर वे मुस्कुराते हुए सेतुबंध का काम किया करते। इससे पहले मैं भूलूं कि मैं देवताले जी को याद कर रही हूँ, मैं बताना चाहूंगी कि कविता कैसे एक भोले और सच्चे इंसान को नवाज़ती है इसकी मिसाल थे देवताले जी। कवि मन होना ही कुछ ऐसा है, दुनिया किसी भी रफ़्तार से बढ़ रही हो आपका इंसानी यकीन कभी नहीं डगमगाता। वह कभी मानवता का साथ नहीं छोड़ता। क्या हुआ जो अंत में शरीर जर्जर हो रहा हो या याददाश्त किसी बियांबां में भटक रही हो। जो कागज़ पर उतर गया अटल है कायम है। हिंदी कविता को बड़ी ऊंचाई देनेवाला एक कवि ज़िंदा है हमेशा।
डेली न्यूज़ की साप्ताहिक पत्रिका खुशबू को एडिट करते हुए उनकी एक कविता छापकर मैं तो भूल ही गई थी। उन्हें एक छोटा सा चेक गया होगा पत्र की ओर से। दफ्तर के लैंडलाइन पर उनका कॉल आया। बच्चों के बारे में पूछा तो मैंने कहा आपकी एक कविता यमराज की दिशा उनके नौवीं के हिंदी पाठ्यक्रम में भी है। मैं बच्चों से आपको जल्द मिलवाऊंगी। यह मुलाकात नहीं हो सकी फिर भी बच्चे उन्हें जानते हैं समझते हैं अपने कवि
से जुड़े हैं।
साल 95-96 की बात होगी। शाहिद मिर्ज़ा साहब को दीपावली को बोनस संस्थान से मिला था। उन्होंने मित्रो के साथ मिलकर इंदौर में चंद्रकांत देवताले जी का कविता पाठ रखा। देवतालेजी ने बेहतरीन कविताएं सुनाईं। पत्रकार का अपने कवि को यूं सम्मान देना उस शहर की रवायत का हिस्सा रहा होगा शायद। मैं अपनी छोटी बहन के साथ वहां गई थी। पत्रकार और व्यंग्यकार प्रकाश पुरोहित जी भी वहां मिले। देखते ही बोले इसे क्यों बिगड़ रही हो अपने साथ।
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चंद्रकांत देवताले 1936 -2017 |
बाद में वे और शांति और सादगी के लिए थोड़ी दूर स्थित महाकाल की नगरी उज्जैन चले गए। कवि शिव मंगल सिंह सुमन भी यहीं बसते थे। देवताले जी के कविता संग्रह हड्डियों में छिपा ज्वर से एक कवितांश
फिर भी
सिर्फ एक औरत को समझने के लिए
हजार साल की जिंदगी चाहिए मुझको
क्योंकि औरत सिर्फ भाप या बसंत ही नहीं है
एक सिम्फनी भी है समूचे ब्रह्मांड की
जिसका दूध, दूब पर दौड़ते हुए बच्चे में
खरगोश की तरह कुलांचे भरता है
और एक कंदरा भी है किसी अज्ञात इलाके में
जिसमें उसकी शोकमग्न परछाईं
दर्पण पर छाई गर्द को रगड़ती रहती है
कवि के बारे में
चंद्रकांत देवताले (जन्म १९३६) का जन्म गाँव जौलखेड़ा, जिला बैतूल, मध्य प्रदेश में हुआ। उच्च शिक्षा इंदौर से हुई तथा पी-एच.डी. सागर विश्वविद्यालय, सागर से। साठोत्तरी हिंदी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर देवताले जी उच्च शिक्षा में अध्यापन कार्य से संबद्ध रहे हैं। देवताले जी की प्रमुख कृतियाँ हैं- हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, रोशनी के मैदान की तरफ़, भूखंड तप रहा है, हर चीज़ आग में बताई गई थी, पत्थर की बैंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सुभद्रा कुमारी चौहान और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंचन्द्रकांत देवताले जी को सादर श्रद्धांजलि, कवि का आत्मीयता से भरा परिचय करने के लिए आभार..उनकी कविता यमराज की दिशा मैंने भी बच्चों को पढ़ाई थी.
जवाब देंहटाएंShukriya harshvardhan ji, anitaji .wakai Yamraj ki disha behtareen kavitaon mein shamil hogi
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