दहेज़ से तीन तलाक़ तक

फ़ैसले के चंद घंटे बाद ही दे दिया तलाक़  
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मेरठ डेटलाइन  से ये ख़बर आज हर अख़बार में प्रकाशित हुई है और उससे पहले तीन तलाक़ के असंवैधानिक हो जाने की सुर्ख़ियों ने हम सबको हर्षाया। बेशक, बेहतरीन, ऐतिहासिक और स्वागत योग्य।  यूं तो दहेज़ लेना भी ग़ैर क़ानूनी है लेकिन कौन परवाह करता है। सब चल रहा है। जब इस ग़ैर क़ानूनी लेन-देन के ख़ुशी-ख़ुशी हो जाने के बाद  कोई समस्या आती है तब सबकी चेतना लौटती है कि देश में दहेज़ के ख़िलाफ़ एक क़ानून भी तो है। यह और बात है कि अपराध जस का तस जारी है लेकिन कानून को ही भोथरा करने की तैयारी पूरी कर ली गयी है । 
         दरअसल  काम कई मोर्चों पर करना है। पहले पहल तो उस मानसिकता का बदलना बहुत ज़रूरी है जहाँ यह कुरीति मान्य है कि लड़की से शादी के बदले हम उससे धन लेंगे और जब मन में आया उसे तज देंगे । परित्यक्ता, छोड़ी हुई जैसे शब्द हमारे ही  समाज के हैं जो कबीलाई सोच को दर्शाते हैं। समस्या को भले ही एक मज़हब, एक समाज या  एक जाति के दायरे में बांध दीजिये लेकिन इसमें  कमज़ोर एक राष्ट्र  ही होता  है। इस मोड़ पर बदलना और संभालना ज़रूरी है क्योंकि फिर एक दिन इतना कुछ बदलेगा कि  हमारी पारिवारिक बुनियाद जिस पर हम फ़ख़्र करते हैं उसकी चूलें ही हिलने लगेंगी । 
    बदलाव के  खाद-पानी से जड़ें सींचीं जानी चाहिए तभी पत्ते हरे होंगे और फूल भी खिलेंगे। 

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